-केजीएमयू में उपलब्ध इस सुविधा को लेकर आयोजित हुई सतत चिकित्सा शिक्षा और कार्यशाला
सेहत टाइम्स
लखनऊ। गंभीर रूप से बीमार मरीज की अगर सांसें थम रही हैं, या फिर संक्रमण या किसी भी बीमारी से फेफड़े कार्य करना बंद करने वाले हैं तो ऐसे रोगियों को अगर एक नई और उभरती जीवन रक्षक तकनीक एक्स्ट्रा कोर्पोरियल मेम्ब्रेन ऑक्सीजनेशन (ईसीएमओ) पर रखा जाये तो ऐसे मरीजों के आगे के इलाज के लिए चिकित्सक को भरपूर समय मिल सकता है। हालांकि यह जीवन रक्षक प्रणाली काफी महंगी है, लेकिन किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) में इस तकनीक की सुविधा काफी कम खर्च में उपलब्ध है।
यह बात आज 11 जनवरी को यहां केजीएमयू में ईसीएमओ पर एक सतत चिकित्सा शिक्षा (CME) कार्यक्रम और कार्यशाला में विशेषज्ञों ने कही। उन्होंने बताया कि जीवन रक्षक प्रणाली ECMO का उपयोग गंभीर रूप से बीमार रोगियों की जान बचाने के लिए किया जा रहा है। आयोजित कार्यक्रम में ICU में ईसीएमओ की नवीनतम प्रगति और अनुप्रयोगों पर चर्चा करने के लिए प्रसिद्ध विशेषज्ञ, चिकित्सक और स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर एक साथ आए।
कार्यशाला में इंटेंसिविस्ट, कार्डियोलॉजिस्ट, एनेस्थेसियोलॉजिस्ट, परफ्यूज़निस्ट और स्नातकोत्तर चिकित्सा छात्रों सहित 100 से अधिक प्रतिनिधियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। कार्यक्रम का उद्देश्य स्वास्थ्य पेशेवरों को जीवन रक्षक परिदृश्यों में ईसीएमओ का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल से लैस करना था।
केजीएमयू में बाहर की अपेक्षा कम खर्च पर उपलब्ध है यह सुविधा
इस कार्यक्रम के प्रमुख विशेषज्ञ संकाय में डॉ. अतिहर्ष अग्रवाल, डॉ. शिखा सचान, डॉ. अपूर्व गुप्ता और डॉ. राघवेन्द्र शामिल थे। CME और कार्यशाला का आयोजन एनेस्थिसियोलॉजी विभाग और मेडिसिन विभाग द्वारा किया गया। एनेस्थिसियोलॉजी विभाग की प्रमुख प्रोफेसर मोनिका कोहली ने कहा कि “कार्डियक अरेस्ट में, जब दिल बिल्कुल भी काम नहीं कर रहा होता है, तब भी ईसीएमओ दिल को पूरा सपोर्ट दे सकता है।” ईसीएमओ के प्रभारी प्रोफेसर डी हिमांशु ने कहा, “यह बहुत ही उन्नत तकनीक है जो देश के कुछ ही अस्पतालों में उपलब्ध है और बहुत महंगी है। हालाँकि, KGMU यह सुविधा आधे से एक तिहाई कीमत पर उपलब्ध कराता है। हमने ECMO के ज़रिए गंभीर रूप से बीमार मरीजों का सफलतापूर्वक इलाज किया है।” ईसीएमओ का उपयोग कोविड-19, विषाक्तता, आघात, हृदय गति रुकने और श्वास नली में रुकावट वाले रोगियों के खराब हृदय और फेफड़ों के रोगियों की जान बचाने के लिए किया जाता है। आयोजन टीम के अन्य सदस्यों में प्रोफेसर दिनेश कौशल, डॉ. राजेश रमण, डॉ. अंबुज यादव, डॉ. रति प्रभा, डॉ. करण कौशिक और डॉ. शशांक कन्नौजिया शामिल थे।