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हेमोफीलिया रोग के प्रति लोगों में जागरूकता की बहुत कमी

-वर्ल्ड हीमोफ़िलिया डे की पूर्व संध्‍या पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित

सेहत टाइम्‍स

लखनऊ। आनुवांशिक रोग हेमोफीलिया के प्रति बहुत जागरूकता की आवश्‍यकता है। इसका अंदाजा इस आंकड़े से लगाया जा सकता है कि चूंकि यह 10,000 लोगों में एक व्‍यक्ति को होता है, इस हिसाब से भारत की जनसंख्‍या के नजरिये से देखें तो देश में हेमोफीलिया से ग्रस्‍त लोगों की संख्‍या करीब 1,30,000 है लेकिन इसके चिन्हित रोगियों की संख्‍या सिर्फ 20 प्रतिशत है, यानी 80 फीसदी हेमोफीलिया के मरीजों को अभी चिन्हित भी नहीं किया जा सका है। उत्‍तर प्रदेश में हेमोफीलिया के चिन्हित मरीजों की संख्‍या 2200 है।

वर्ल्ड हेमोफ़िलिया डे 17 अप्रैल की पूर्व संध्या पर यहां एक होटेल में हेमोफ़ीलिया सोसाययटी लखनऊ और क्लिनिकल हीमेटॉलॉजी विभाग केजीएमयू के संयुक्‍त तत्वावधान में जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसकी अध्यक्षता केजीएमयू के हेमेटोलॉजी विभाग के मुखिया डॉ ए के त्रिपाठी ने की। इस मौके पर एसजीपीजीआई के डॉ राजेश कश्यप, केजीएमयू के डॉ एस पी वर्मा तथा हेमोफ़ीलिया सोसायटी के सचिव विनय मनचंदा मुख्य रूप से उपस्थित थे। इसमें हेमोफ़ीलिया के 70 मरीज़ों ने हिस्सा लिया। 

डॉ त्रिपाठी ने अपने सम्‍बो‍धन में बताया कि हेमोफ़ीलिया एक आनुवांशिक रोग है। इसका मतलब है कि यह जन्म से पाया जाने वाला रोग है जो प्रति दस हजार पैदा होने वाले बच्चों में सिर्फ़ एक को होता है। उन्‍होंने कहा कि जागरूकता की कमी होने के कारण सिर्फ 20 फीसदी रोगियों की पहचान होने के पीछे का मुख्‍य कारण आम लोगों में तथा डॉक्‍टर एवं स्वास्थ्य कर्मियों में हीमोफ़ीलिया रोग की सही और उचित जानकारी की कमी होना है। 

बीमारी के बारे में बताते हुए डॉ एके त्रिपाठी ने बताया कि हमारे रक्त में अनेक प्रकार के प्रोटीन पाए जाते हैं। इनमें कुछ ऐसे होते हैं जो रक्त स्राव को रोकते हैं। ये प्रोटीन रक्त स्राव की जगह थक्का (clot ) बनाने में सहायक होते हैं। इसलिए इन्हें clotting factors कहा जाता है जो 13

प्रकार के होते हैं। फ़ैक्टर आठ (VIII) की कमी होने की दशा को हीमोफ़िलिया A तथा फ़ैक्टर नौ (IX) की कमी होने को हीमोफ़ीलिया B कहा जाता है । 

प्रो त्रिपाठी ने कहा कि हीमोफ़ीलिया से पीड़ित बच्चों में लक्षण प्रायः बचपन से ही शुरू हो जाते हैं। चोट लगने पर या स्वतः जोड़ों में रक्त स्राव की वजह से दर्द एवं सूजन होता है । घुटने (knee), कलायी (wrist) , टखनों (ankle) के जोड़ प्रायः प्रभावित होते हैं । बच्चे का चलना फिरना मुश्किल हो जाता है । बार बार रक्त स्राव होने से जोड़ ख़राब होने लगते हैं, सिकुड़ जाते हैं जिससे बच्चा अपाहिज हो सकता है । पेट मैं या ब्रेन में ब्लीडिंग होने से जान को ख़तरा रहता है । 

कैसे संदेह करें कि किसी बच्चे को हीमोफ़िलिया है ?

-चोट लगने पर रक्त स्राव जल्दी रुक न रहा हो 

-ऐसी तकलीफ़ घर में भाई को हो या ननिहाल में मामा या नाना को रहा हो । 30 से 40 प्रतिशत मरीज़ों में फ़ैमिली हिस्ट्री नहीं मिलती है।

जोड़ों में दर्द के साथ सूजन हो जाती हो

शरीर में खाल के नीचे रक्त जमने से नीला पड़ जाता हो 

मसूढ़ो से देर तक रक्त स्राव

नाक से ख़ून आना 

पेशाब से ख़ून आना 

कौन सी जांच कराएं?

रक्त की कुछ प्रारम्भिक जाँचों जैसे प्रोथ्राम्बिन टाइम (PT) और APTT से हीमोफ़िलिया होने का संकेत मिल सकता है। हीमोफ़ीलिया में PT नोर्मल होता है जबकि APTT बढ़ा रहता है । इन जाँचों की व्यवस्ता प्रायः सभी अस्पतालों में होती है। मिक्सिंग स्टडीज़ से फिर यह पता लगाया जाता है कि फ़ैक्टर VIII या फ़ैक्टर IX में किस फ़ैक्टर की कमी है। फ़ैक्टर लेवल से यह भी पता लगाया जाता है की अमुक फ़ैक्टर की कितनी कमी है । लेवल के अनुसार हीमोफ़िलिया को गम्भीरता के आधार पर वर्गीकरण किया जाता है ।

फ़ैक्टर लेवल ५ % से अधिक गम्भीर नही (mild )

फ़ैक्टर लेवल १-५ % गम्भीर (moderate )

फ़ैक्टर लेवल १% से कम अति गम्भीर (severe)

माइल्ड मरीज़ों में कभी कभी समस्या होती है विशेषकर चोट लगने पर जबकि अति गम्भीर मरीज़ों में ब्लीडिंग की समस्या बार बार होती है।

हीमोफ़िलिया के उपचार में निम्लिखित बातें महत्वपूर्ण हैं ;

सही जानकारी एवं जागरूकता

प्राथमिक घरेलू उपचार

फ़ैक्टर 

फ़िज़ीओथेरपी 

जागरूक होने से हीमोफ़िलिया की पहचान जल्दी की जा सकती है जिससे इससे होने वाली जटिलताओं से बचा जा सकता है । diagnosis होने के पश्चात मरीज़ के माता पिता या अभिभावक को बीमारी के बारे में सारी जानकारी दी जानी चाहिए । इससे उनमें व्याप्त भ्रम या भय को दूर किया जा सकता है तथा पीड़ित बच्चे की मानसिक, शारीरिक देखभाल अच्छी तरह हो सकती है । 

प्राथमिक उपचार 

प्रभावित अंग को आराम दें (rest )

बर्फ़ से सेंक करें

गरम सेंक न करें

आवश्यकतानुसार शीघ्र फ़ैक्टर लगवाएँ

हीमोफ़ीलिया का उपचार फ़ैक्टर हैं जैसे हीमोफ़ीलिया A में फ़ैक्टर VIII एवं हीमोफ़िलिया B में फ़ैक्टर IX । ये फ़ैक्टर intravenous दिए जातें हैं। इनकी खुराक की मात्रा मरीज़ के वज़न तथा रोग की गम्भीरता के अनुसार की जाती है । इन्हें दिन में एक या दो बार तथा कई दिनो तक देना पड़ सकता है ।

जोड़ों की सही दशा में रखने में फ़िज़ीयोथेरपी काफ़ी कारगर है।

वैसे हीमोफ़िलिया का सही इलाज है फ़ैक्टर को नियमित रूप से देते रहना जिससे रक्त स्राव होने ही न पाए व मरीज़ के जोड़ ठीक रहें व वह अपनी ज़िंदगी सामान्य रूप से जी सके (prophylactic therapy )। दुनिया के अधिकांश देशों में यह प्रचलित है। पर फ़ैक्टर काफ़ी महँगा होने के कारण अपने देश में अधिकतर मरीज़ों के लिया यह सम्भव नही हो पाया है। यह बतातें चलें की हीमोफ़िलिया के उपचार के लिए फ़ैक्टर्ज़ सरकार द्वारा मुफ़्त में दी जाती हैं। 

Mild हीमोफ़िलिया में फ़ैक्टर न मिल पाने की अवस्था में tranexamic acid टैब्लेट लाभदायक हो सकती है ।

हीमोफ़िलिया के इलाज के लिए कुछ लोग ब्लड चढ़ा देते हैं । यह नही करना चाहिए क्योंकि इससे कोई फ़ायेदा नही है, वरन संक्रमण का ख़तरा  हो सकता है ।

Intramuscular इंजेक्शन भी नही लगाना चाहिए क्योंकि इससे माँस पेशीयों में ख़ून का स्राव हो सकता है । 

उपचार के नए आयाम:

नए तरह के फ़ैक्टर आने वाले हैं जिनको रोज़ लगने के बजाए २-३ हफ़्ते में केवल एक बार लगाया जा सकता है ।

जीन थेरपी के द्वारा मरीज़ के शरीर मुख्यतर लिवर में फ़ैक्टर बनाने की क्षमता उत्पन्न की जा रही है। निकट भविष्य में इस विधि से हीमोफ़िलिया पूरी तरह ठीक किया जा सकता है। डॉ शुक्‍ला ने कहा कि के जी मेडिकल विश्व विद्यालय में हीमोफ़िलिया के सम्पूर्ण उपचार की सुविधा है, जिसमें फ़ैक्टर की उपलब्धता, फ़िज़ीओथेरपी, काउन्सलिंग आदि शामिल है।

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