-विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर एमडी साइकियाट्री होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ गौरांग गुप्ता से विशेष वार्ता

सेहत टाइम्स
लखनऊ। इंटरनेट ने दुनिया को व्यक्ति की मुट्ठी में ला दिया है किसी भी चीज की जानकारी चाहिए हो तो सीधा गूगल करो और जानकारी प्राप्त करो, जानकारी लेने का क्षेत्र अनंत है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ विषयों पर आपके द्वारा ली गई जानकारी आपको बीमार कर सकती है, कुछ इसी तरह का एक विषय है बीमारी के बारे में इंटरनेट पर जानकारी हासिल करना।
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च के कंसल्टेंट एमडी साइकियाट्री डॉ गौरांग गुप्ता ने इस विषय पर ‘सेहत टाइम्स’ को बताया कि बहुत से लोग बीमारी के बारे में गूगल करते हैं, इससे उनको जहां अपने सवाल का जवाब मिलता है, वहीं साथ ही उससे जुड़े 10 सवाल और मिल जाते हैं, उन 10 सवालों में हर सवाल के एक जवाब के साथ 10 सवाल फिर मिल जाते हैं और इस तरह से सवाल मल्टीपल होते रहते हैं। डॉ गौरांग बताते हैं कि होता यह है कि गूगल करने वाला व्यक्ति जानकारी पढ़ते-पढ़ते जाने-अनजाने अपने परिजनों या स्वयं को उस बीमारी से जोड़ लेता चलता है, नतीजा यह होता है कि उसे पहले चिंता, घबराहट होती है, इसी घबराहट के चलते होने वाली दूसरी बीमारियां जैसे ब्लड प्रेशर, तनाव जैसी दूसरी बीमारियां होने लगती हैं, यानी जो व्यक्ति अच्छा-खासा स्वस्थ था, वह वाकई बीमार हो जाता है।
डॉ गौरांग बताते हैं कि चूंकि इंटरनेट पर दी गई जानकारियां जनरल होती है। इन जानकारियों में साधारण से लेकर अत्यंत गंभीर स्थितियों का वर्णन होता है, ऐसे में अगर व्यक्ति ज्यादा गंभीर स्थितियों को अपने या परिजनों से जोड़कर देखता है तो उसकी चिंता और घबराहट बढ़ जाती है।
डॉ गौरांग उदाहरण देते हुए बताते हैं कि जैसे किसी ने सिर दर्द के बारे में इंटरनेट पर खोज की तो सिर दर्द होने के कारणों में सर्दी-जुकाम भी हो सकता है, ब्रेन ट्यूमर भी हो सकता है या और भी कोई अन्य कारण हो सकता है। अब उस व्यक्ति को यह चिंता होने लगती है कि उन्हें इनमें से कोई बीमारी तो नहीं है और यही बात उसकी घबराहट और चिंता को बढ़ाती है, और स्वस्थ व्यक्ति भी बीमार होता जाता है। उसे घबराहट, चिंता, भय, बड़ी बीमारी का डर, मृत्यु का डर होने लगता है।
उन्होंने बताया कई लोग गूगल ज्ञान को लेकर अपने मन से ब्लड टेस्ट, अल्ट्रासाउंड भी करा लेते हैं, जो कि उनकी परेशानी का सबब बन जाता है। उदाहरण के लिए यदि ब्लड टेस्ट कराया तो उसमें प्लेटलेट्स की रिपोर्ट भी होती है, थायराइड रिपोर्ट भी होती है, कोलेस्ट्रॉल भी होता है, विटामिन डी, विटामिन 12, कैल्शियम की रिपोर्ट भी होती हैं। अब इनमें से किसी की भी रिपोर्ट मामूली रूप से घटने या बढ़ने पर यह मानने लगता है कि बीमारी तो है। इसी प्रकार अल्ट्रासाउंड कराने में ग्रेड वन का फैटी लिवर अगर शो होता है, या किडनी में सिस्ट शो होती है तो व्यक्ति घबराने लगता है जबकि अगर वह चिकित्सक से सलाह ले तो उसे पता चलेगा कि ब्ल्ड टेस्ट, अल्ट्रासाउंड में यह बहुत साधारण सी चीज हैं और इससे किसी प्रकार से घबराने की जरूरत नहीं होती है।
उन्होंने कहा अगर गर्भवती स्त्री बीमारियों के बारे में गूगल करती है तो यह ज्यादा नुकसान देता है क्योंकि इसका असर गर्भस्थ शिशु पर भी पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि गर्भवती महिलाएं, ब्लड प्रेशर के मरीज, डायबिटीज के मरीज, दिल के रोगी को बीमारियों को लेकर गूगल सर्च करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए।
इस समस्या का समाधान पूछने पर डॉ गौरांग ने बताया कि देखिए किसी भी चीज की जानकारी को गूगल पर सर्च करने में बुराई नहीं है लेकिन हमेशा उससे मिलने वाले परिणामों को जनरल मानना चाहिए उसको स्वयं या परिजन के ऊपर ना लें, यह गलत है क्योंकि गूगल डॉक्टर नहीं है, गूगल से पढ़ कर खुद को एक्सपर्ट ना मानें, डॉक्टर की जानकारी पर शक न करें और नेट की जानकारी को सच न मानें, क्योंकि इस विषय में अधिकृत जानकारी आपका डॉक्टर ही देगा। उन्होंने कहा कि इसलिए गूगल की जानकारी को अपने या परिजनों से न जोड़ें, और अगर इस बात को लेकर आपके मन पर आपका कंट्रोल नहीं है तो मेरा सुझाव है कि ऐसे लोग बीमारी को गूगल पर सर्च न करें तो बेहतर है।

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