-रक्तस्राव रोकने, सांस का रास्ता साफ करने भर से ही बच जायेंगी लाखों जानें : ले. ज. डॉ बिपिन पुरी
-ट्रॉमा से होने वाली मौतों को बचाने के लिए हिन्दी में पुस्तक लिखी डॉ विनोद जैन ने
-केजीएमयू में हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष व निदेशक तथा कुलपति ने किया पुस्तक का विमोचन
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। दुर्घटना होने के बाद होने वाले रक्तस्राव को रोकना और सांस नली में आ रही बाधा को दूर करना अगर एक आम व्यक्ति ने सीख लिया तो बड़ी संख्या में होने वाली मौतों को रोका जा सकेगा। क्योंकि दुर्घटना होने के बाद आमतौर पर रक्तस्राव होता है, इसमें ज्यादा रक्त बहने के चलते मौत हो जाती है या फिर चोट के चलते व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत होती है तो सांस में अवरोध से मृत्यु हो जाती है। ऐसे में डॉक्टर के पास पहुंचने तक मरीज को शुरुआती समय में ये सहायता मिल जाती है तो उसकी जान को बचाया जा सकता है।
यह बात किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के कुलपति ले. ज. डॉ बिपिन पुरी ने केजीएमयू के सर्जरी विभाग प्रोफेसर व अधिष्ठाता पैरामेडिकल साइंसेज डॉ विनोद जैन की लिखी पुस्तक ‘ट्रॉमा, बचाव, उपचार एवं प्रबंधन’ के विमोचन समारोह की अध्यक्षता करते हुए अपने सम्बोधन में कही। उन्होंने कहा कि हिन्दी भाषी राज्यों में हिन्दी भाषा अत्याधिक महत्वपूर्ण है। आम जन तक चिकित्सीय सुविधाओं को पहुंचाने के लिए हिन्दी को प्रमुखता से प्रयोग में लाना होगा। उन्होंने कहा कि प्री-हास्पिटल केयर ट्रॉमा रोगियों के लिए काफी महत्वपूर्ण है तथा इसी से यह तय होता है कि पीड़ित की जान बचाई जा सकती है या नहीं।
उन्होंने कहा कि अगर आमजन को सिर्फ दो बातों के प्रति जागरूक किया जा सके तो काफी मौतों को रोका जा सकता है। रक्तस्राव को रोकने और सांस आने में तकलीफ होने से किस प्रकार से पीड़ित की मदद की जा सकती है। इस बात की जानकारी अगर आमजन को हो तो होने वाली मौतों के आकड़ों को काफी कम किया जा सकता है क्योंकि दुर्घटना होने के बाद सबसे पहले आमजन ही पहुंचता है तब व्यक्ति को डॉक्टर के पास ले जाया जाता है।
आंकड़े बताते हैं कि प्रत्येक वर्ष देश में लगभग 6 लाख लोगों की मौत ट्रॉमा से होती है। ऐसी मौतों की रोकथाम हो सकती है तथा पीड़ित व्यक्ति को उचित समय में उपचार उपलब्ध कराकर उसकी जान बचाई जा सकती है। ‘मेरा सपना ट्रॉमा-मृत्यु-मुक्त-भारत हो अपना’ की सोच लेकर दुर्घटना के बाद का एक घंटा यानी गोल्डन ऑवर की अहमियत को पहचानते हुए डॉ0 विनोद जैन ने ट्रॉमा, बचाव, उपचार एवं प्रबंधन किताब लिखी है, जिसका लोकार्पण आज 6 नवंबर को के0जी0एम0यू0 के ब्राउन हॉल में चिकित्सा विश्वविद्यालय के कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल डॉ0 बिपिन पुरी, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष एवं कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, डॉ सदानंद गुप्त, निदेशक, श्रीकांत मिश्रा एवं सम्पादक डॉ0 अमिता दुबे द्वारा किया गया। इस पुस्तक का प्रकाशन उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा किया गया है।
आमजन को ध्यान में रखकर लिखी है हिन्दी में किताब
कार्यक्रम में पुस्तक के लेखक एवं अधिष्ठाता, पैरामेडिकल साइंसेस, डॉ विनोद जैन ने बताया कि ज्यादातर हिन्दी भाषी राज्यों में व्यक्ति अपनी बीमारी के बारे में हिन्दी में बताता है लेकिन चिकित्सक उनके सवालों के जवाब या दवाईयों के बारे में अंग्रेजी में बताते है, जिससे पीड़त व्यक्ति समझ न पाने के कारण उन दवाईयों अथवा चिकित्सकों के दिशा-निर्देशों का सही से पालन नहीं कर पाता है और उनका मर्ज और बढ़ जाता है या उनको इससे नुकसान हो सकता है। इसी उद्देश्य से उन्होंने यह किताब हिन्दी में लिखी है ताकि आमजन को इसका पूरा लाभ मिल सके।
सरल भाषा में लिखी पुस्तक बहुत उपयोगी : डॉ सदानन्द गुप्त
इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के कार्यवाहक अध्यक्ष एवं कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, डॉ सदानंद गुप्त ने डॉ विनोद जैन की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि जिस सरल भाषा और कठिन परिश्रम से आमजन के हित के लिए उन्होंने हिन्दी भाषा में यह पुस्तक लिखी है यह आमजन के लिए काफी लाभकारी सिद्ध होगी। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में हिन्दी भाषा को साहित्य की भाषा बना दिया गया है, जो कि गलत है। अगर किसी भाषा को साहित्य की भाषा बना दिया जाता है तो उसका विकास रुक जाता है। इसके साथ ही उन्होंने सभागार में उपस्थित अतिथियों से अनुरोध किया कि वह अपने-अपने क्षेत्रों के विशेषज्ञों को हिन्दी में पुस्तक लेखनी का कार्य प्रारम्भ करना चाहिए। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान उनके प्रकाशन का कार्य करेगा।
उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के निदेशक एवं विशिष्ट अतिथि श्रीकांत मिश्रा ने कहा कि चिकित्सीय संबंधी जितनी भी पुस्तक लिखी गई हैं वह ज्यादातर संस्कृत में है। हिन्दी में इनकी मात्रा न के समान है, जबकि सभी विषयों में हिन्दी में पुस्तकों का होना देश के लिए ज्यादा लाभकारी होगा। दूसरी विशिष्ट अतिथि उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की संपादक एवं विशिष्ट अतिथि डॉ अमिता दुबे ने डॉ विनोद जैन द्वारा लिखित पुस्तक पर चर्चा करते हुए उसके बारे में विस्तृत जानकारी दी।
शोध में ड्राइविंग के दौरान मोबाइल का प्रयोग दुर्घटना का एक बड़ा कारण सामने आ रहा
कार्यक्रम का समापन ट्रॉमा सर्जरी के प्रोफेसर समीर मिश्रा के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ हुआ। इस अवसर पर उन्होंने एक शोध का हवाला देते हुए जानकारी दी कि हाल ही में उनके द्वारा किए जा रहे शोध के शुरुआती रुझानों में यह बात सामने आई है कि सड़क पर होने वाली ज्यादातर दुर्घटनाओं का प्रमुख कारण मोबाइल का उपयोग है। उन्होंने ड्राइविंग के समय मोबाइल का उपयोग न करने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि इस शोध के परिणामों को अंतिम रूप देने में करीब तीन माह का समय लगने का अनुमान है। अंतिम आंकड़ों के साथ विस्तृत रिपोर्ट तभी बतायी जा सकेगी। इस कार्यक्रम का सफल संचालन शालिनी गुप्ता, मंजरी शुक्ला, बीनू दुबे एवं राघवेंद्र शर्मा के सहयोग द्वारा किया गया।