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बोन मैरो ट्रांसप्‍लांट के लम्‍बे समय तक कार्य करने की दिशा में महत्‍वपूर्ण रिसर्च

केजीएमयू के शिक्षक डॉ सत्‍येन्‍द्र कुमार सिंह ने ऐसी जीन का पता लगाया जो बोन मैरो ट्रांसप्‍लांट में होगी मददगार  

फोटो साभार ‘सेल स्टेम सेल’

लखनऊ। किंग जॉर्ज चिकित्‍सा विश्‍व विद्यालय (केजीएमयू) के एक शिक्षक असिस्‍टेंट प्रोफेसर डॉ सत्‍येन्‍द्र कुमार सिंह ने ऐसी जीन की खोज की है जो बोन मैरो ट्रांसप्‍लांट के समय स्‍टेम सेल की कार्यक्षमता को बढ़ाता है। उम्‍मीद है आने वाले समय में यह मरीजों के लिए लाभदायक सिद्ध होगा। हालांकि अभी यह रिसर्च की गयी यह प्रक्रिया चूहों पर सफल पायी गयी है। अब इसका परीक्षण मनुष्‍यों पर किया जायेगा। आपको बता दें डॉ सत्‍येन्‍द्र स्‍टेम सेल एंड सेल कल्‍चर लैब, सेंटर फॉर एडवांस रिसर्च में असिस्‍टेंट प्रोफेसर पद पर कार्यरत हैं। डॉ सत्‍येन्‍द्र ने जिस जीन की खोज की है उसका नाम है इड-1(Id-1 )।

 

इस बारे में डॉ सतेन्‍द्र सिंह ने बताया कि उन्‍होंने अपनी पीएचडी जर्मनी के यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल ऐसन के प्रो जॉर्ज इलियाकिस की प्रतिष्ठित रेडियेशन बायोलॉजी लैब से पूरी की। इसके बाद वह पोस्‍ट डॉक्‍टरेट ट्रेनिंग के लिए अमेरिका के नेशनल कैंसर इंस्‍टीट्यूट चले गये। वहीं पर उन्‍होंने अपनी यह रिसर्च की। उनकी यह रिसर्च अमेरिका के कई प्रतिष्ठित विज्ञान पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है। उन्‍होंने बताया कि उनकी यह रिसर्च स्‍टेम सेल रिसर्च की प्रतिष्ठित पत्रिका सेल स्‍टेम सेल के अगस्‍त के अंक में प्रकाशित की गयी है।

 

डॉ सत्‍येन्‍द्र ने बताया कि रिसर्च में पाया गया कि Id-1 जीन का जो स्‍वभाव है वह उसी तरह है जैसे कि गाड़ी में एक्सिलरेटर का। जिस प्रकार गाडी की स्‍पीड को मेन्‍टेन करने के लिए एक्सिलरेटर को घुमाने या दबाने का कार्य हम सेकंडों के लिए करते हैं, अगर लगातार घुमाते रहें या दबाते रहे तो गाड़ी की स्‍पीड अनियंत्रित हो सकती है और दुर्घटना होने की संभावना भी बढ़ जाती है। इसी प्रकार यह जीन Id-1 हमारे शरीर में अपनी कार्यशील अवस्‍था में आधा घंटा रहता है। अगर ज्‍यादा देर यह एक्टिव रहे तो शरीर को नुकसान पहुंच सकता है।

 

उन्‍होंने बताया कि बोन मैरो ट्रांसप्‍लांट में जब जब दूसरे का बोन मैरो मरीज को चढ़ाया जाता है तो अब तक जरूरत के हिसाब से क्रियाशील होने वाला यह जीन दूसरी बॉडी में पहुंच कर उस बॉडी के हिसाब से एडजस्‍ट होने के लिए ज्‍यादा एक्टिव हो जाता है जिसकी वजह से ट्रांसप्‍लांट प्रक्रिया लम्‍बे समय तक कार्य नहीं करती है। उन्‍होंने बताया कि हमने चूहों पर इस जीन Id-1 को ज्‍यादा एक्टिव होने से रोकने के लिए दवा जैक स्‍टैट को बोन मैरो ट्रांसप्‍लांट के समय ही डाल दिया गया। इससे यह हुआ इस प्रक्रिया के बिना जो बोन मैरो ट्रांसप्‍लांट किया गया था वह 80 सप्‍ताह तक चला जबकि जिन चूहों में बोन मैरो ट्रांसप्‍लांट के समय Id-1 जीन को नियंत्रित करने वाली दवा डाली गयी थी वह बोन मैरो ट्रांसप्‍लांट 122 सप्‍ताह चला।

 

डॉ सत्‍येन्‍द्र इस समय केजीएमयू में मुंह के कैंसर में पर्सनलाइज्‍ड मेडिसिन एवं रीजैनरेटिव मेडिसिन की भूमिका पर रिसर्च कर रहे हैं। उन्‍होंने कुलपति प्रो एमएलबी भट्ट, सेंटर फॉर एडवांस रिसर्च की फैकल्‍टी इंजार्ज प्रो अमिता जैन, रिसर्च सेल के फैकल्‍टी इंचार्ज प्रो आरके गर्ग को रिसर्च में सहयोग देने के लिए आभार जताया है।

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