-जीसीसीएचआर में वैज्ञानिक तरीके से की जाने वाली शोध को मिलता रहता है राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय जर्नल में स्थान

सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। आजकल की भागमभाग जिंदगी और जीवन शैली के चलते हमारे खान-पान, रहन-सहन के तरीकों पर बहुत असर पड़ा है, जिससे अनेक प्रकार के रोगों ने जन्म लिया है। इसी तरह का एक रोग है गुर्दे का ठीक से काम ना करना या गुर्दे की निष्क्रियता जिसे हम सीआरएफ यानी क्रॉनिक रीनल फेल्योर भी कहते हैं। होम्योपैथी के क्षेत्र में अपनी रिसर्च से अनेक असाध्य माने जाने वाले रोगों को ठीक करने वाले गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च (जीसीसीएचआर) के संस्थापक व वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ गिरीश गुप्ता ने गुर्दा रोगों के भी सैकड़ों मरीजों को ठीक किया है, और किडनी को बचाया है, न सिर्फ बचाया बल्कि डायलिसिस की नौबत भी नहीं आने दी।

विश्व गुर्दा दिवस पर डॉ गिरीश गुप्ता ने ‘सेहत टाइम्स’ को एक विशेष भेंट में बताया कि उन्होंने अभी तक कि अपने रिसर्च में यह पाया है कि जब तक डायलिसिस नहीं होती है तब तक होम्योपैथिक दवाओं से बढ़े हुए सीरम क्रिएटिनिन और ब्लड यूरिया को इसकी नॉर्मल रेंज में लाने का प्रतिशत ज्यादा अच्छा है, लेकिन यदि डायलिसिस हो जाती है तो उसकी सफलता का प्रतिशत इस पर निर्भर करता है कि कितने दिनों से मरीज की डायलिसिस हो रही है।
डॉ गुप्ता ने उदाहरण के लिए एक केस के बारे में बताया कि एटा जिले का रहने वाला 34 वर्षीय युवक उनके पास फरवरी 2015 में आया था। सीआरएफ का यह पेशेंट उनके पास जब आया तब उसे पिछले 1 महीने से खाने के समय उल्टी महसूस होना, कमजोरी और पीठ में दर्द की शिकायत थी। उसकी 22 फरवरी 2015 की ब्लड रिपोर्ट से पता चला कि उसका सिरम यूरिया का लेवल 88, सिरम क्रिटेनाइन 5.6 था। उसके लक्षण, उसका स्वभाव आदि की हिस्ट्री ली गयी तो पता चला कि वह अक्सर सिर दर्द आदि के लिए प्रचलित अंग्रेजी दवायें खा लेता था। प्रॉपर रेपर्टाइजेशन के बाद होम्योपैथिक दवा का चुनाव कर उसका इलाज शुरू किया गया, उन्होंने बताया कि समय-समय पर दवा के साथ उसके रोग पर नजर रखने के लिए लगातार खून की जांच से उसका सिरम यूरिया, गुर्दे का फंक्शन टेस्ट, सिरम क्रिटेनाइन के लेवल पर नजर रखी गयी। करीब 4 साल तक लगातार इलाज के बाद मरीज की अंतिम जांच 17 दिसंबर 2019 को हुई थी, इसमें उसकी रिपोर्ट में सिरम यूरिया 48.4, किडनी का फंक्शन 49 तथा सिरम क्रिटेनाइन 1.96 आ गया था, और उसका गुर्दा सामान्य तरीके से कार्य करने लग गया। मरीज की दवा अभी भी चल रही है।

2015 से 2019 के बीच उपचार के दौरान समय-समय पर कराये गये ब्लड टेस्ट की रिपोर्ट में सिरम यूरिया, सिरम क्रियेटिनाइन और ईजीएफआर का आंकड़ा ग्राफ में
डॉ गुप्ता बताते हैं कि किडनी के रोगों के मुख्य कारणों में ब्लड प्रेशर, मधुमेह, दर्द निवारक व एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक सेवन, मांसाहार तथा मूत्र मार्ग में संक्रमण है। इसके लक्षणों में पेशाब कम होना या बंद हो जाना, चेहरे व पैरों में सूजन, जी मिचलाना और उल्टी, भूख कम लगना तथा कमजोरी आदि हैं। इसकी जांच खून में यूरिया, क्रिएटिनिन तथा गुर्दे की कार्य क्षमता जीएफआर से की जाती है।
ज्ञात हो डॉ गुप्ता के लखनऊ स्थित गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च पर एक-एक मरीज का पूरा रिकॉर्ड उपलब्ध है। इस रिकॉर्ड में मरीज के ठीक होने की पुष्टि वैज्ञानिक तरीके की गयी जांच की रिपोर्ट भी मौजूद है। इन्हीं के आधार पर डॉ गुप्ता के अनेक प्रकार के रोगों पर सफल शोध के रिसर्च पेपर राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय जनरल जर्नल में छपते रहते हैं।

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