25 अगस्त को सभी अवैध पैथोलॉजी सेंटरों का नाम सहित विवरण देने के सरकार को आदेश
देश भर में गैरकानूनी तरीके से चल रही पैथोलॉजी के खिलाफ शिकंजा कसते हुए बीती दिसम्बर 2017 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद से इसकी गूंज अन्य राज्यों में भी हुई है। गुजरात हाईकोर्ट के बाद अब पटना हाईकोर्ट ने भी आमजन के जीवन से खिलवाड़ कर रहीं पैथोलॉजी पर सख्त नाराजगी जतायी है और राज्य सरकार से अनाधिकृत रूप से अप्रशिक्षित लोगों द्वारा चलायी जा रही पैथोलॉजी की नाम सहित सूचना 25 अगस्त को न्यायालय में प्रस्तुत करने के आदेश दिये हैं।
पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति मुकेश आर शाह और न्यायमूर्ति डॉ रविरंजन की पीठ ने 21 अगस्त को इंडियन एसोसिएशन ऑफ पैथोलॉजिस्ट्स एंड माइक्रोबायोलॉजिस्ट्स व एक अन्य द्वारा दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को यह आदेश दियें। याचिकाओं में बिहार में अवैध रूप से चल रहे पॉलीक्लीनिक्स, डायग्नोस्टिक सेंटर, नर्सिंग होम, छोटे-मझोले व बड़े अस्पतालों के चलने की शिकायत की गयी थी। इनमें मुख्य रूप से अप्रशिक्षित लोगों द्वारा चलायी जा रही पैथोलॉजी के बारे में शिकायत की गयी थी। ये पैथोलॉजी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विपरीत बिना एमसीआई से पंजीकृत पैथोलॉजिस्ट धड़ल्ले से चला रहे हैं यही नहीं इन पैथोलॉजी में काम करने वाले टेक्नीशियन्स भी आवश्यक योग्यताधारक नहीं हैं।
कोर्ट ने कहा कि यह आश्चर्यजनक है कि गुजरात हाईकोर्ट के एक विस्तृत फैसले के बाद 2011 में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा बनाये गये नियम के अनुसार कोई भी टेक्नीशियन या अन्य व्यक्ति स्वतंत्र रूप से पैथोलॉजी का संचालन नहीं कर सकता है। पैथोलॉजी में एमसीआई में पंजीकृत पैथोलॉजिस्ट्स होना आवश्यक है जो कि वहां की जा रही योग्य टेक्नीशियनों की जांच पर अपनी नजर रखेगा तथा जांच रिपोर्ट पर हस्ताक्षर पंजीकृत पैथोलॉजिस्ट के ही होने आवश्यक हैं। इसके बावजूद पूरे बिहार में इसकी अवहेहना की जा रही है। यही नहीं अयोग्य लोग न सिर्फ जांच कर रहे हैं बल्कि जांच रिपोर्ट पर दस्तखत भी कर रहे हैं जो कि नागरिकों के जीवन के साथ खिलवाड़ है।
बिहार के निदेशक हेल्थ सर्विस की ओर से 8 फरवरी, 18 को कोर्ट में दिये गये काउंटर हलफनामे में कहा गया था कि बिहार सरकार के संयुक्त सचिव द्वारा समस्तीपुर को छोड़कर सभी सिविल सर्जनों को 21 नवम्बर 17 को आवश्यक निर्देश दे दिये गये थे उसके बाद 26 दिसम्बर, 17 को एक मेमो जारी करके सभी सिविल सर्जनों से रिपोर्ट मांगी गयी थी।
इसके बाद हाईकोर्ट में बिहार सरकार के संयुक्त सचिव स्वास्थ्य विभाग द्वारा जमा किये गये हलफनामें में बताया गया था कि राज्य के लगभग 22 जिेलों में अवैध रूप से पैथोलॉजी संचालित की जा रही हैं। जिन जिलों में ये पैथोलॉजी संचालित हो रही हैं उनमें पटना में 58, भागलपुर में 79, बांका में 50, पश्चिम चम्पारण 79, सीतामढ़ी 67, नालंदा में 43, भोजपुर में 128, दरभंगा 233, पूर्णिया में 41, पूर्वी चम्पारण में 13, कटिहार में 75, सहरसा में 89, औरंगाबाद में 68, वैशाली में 38, समस्तीपुर में 54, खगड़िया में 7, जहानाबाद में 14, मुंगेर में 18, मधेपुरा में 27, जमुई में 9 हैं जबकि मधुबनी और सीवान से रिपोर्ट नहीं मिली है।
हाई कोर्ट ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को नागरिकों के जीवन से खिलवाड्र की इजाजत नहीं दी जा सकती है, स्वास्थ्य हर नागरिक का मौलिक अधिकार है। मेडिकल टेस्टिंग लैब स्वास्थ्य हित प्रणाली की रीढ़ की हड्डी हैं। अदालत ने कहा व्यापक जनहित में गुजरात हाईकोर्ट के 17 सितम्बर, 2010 के फैसले के अनुसार एमसीआई द्वारा निर्धारित गाइडलाइन के अनुसार सभी पैथोलॉजी, नर्सिंग होम्स आदि को निर्धारित नियमों का पालन करना आवश्यक है।