-रोगी को सलाह – मनमाने तरीके से अंधाधुंध न खायें एंटीबायोटिक्स
-डॉक्टर्स को सलाह – सेप्सिस को तुरंत पहचानें, शुरू करें प्रॉपर इलाज
-विश्व सेप्सिस दिवस पर केजीएमयू के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग में आयोजित सेमिनार में जुटे अनेक विशेषज्ञ
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। मनमाने तरीके से एंटीबायोटिक का अंधाधुंध सेवन व्यक्ति को जानलेवा सेप्सिस के मुहाने पर ले जा सकता है, इसलिए बेहतर यही है कि अपने या अपनों के बीमार होने पर अपनी खुद की झोलाछाप डॉक्टरी से बचें, समय रहते कुशल चिकित्सक को दिखायें और उसकी सलाह से ही दवाओं का सेवन करें। जिस तरह से दुर्घटना होने पर, हार्ट अटैक आने पर, ब्रेन स्ट्रोक होने पर ‘गोल्डन आवर’ में इलाज का महत्व है, उसी तरह से सेप्सिस के इलाज में भी गोल्डन आवर का महत्व है, अन्यथा इलाज में देरी होने पर मरीज के ठीक होने की संभावना प्रतिघंटा 7.6 प्रतिशत कम होती जाती है।
यह वह जानकारी है जो आज विश्व सेप्सिस दिवस के अवसर पर केजीएमयू के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग में आयोजित सेप्सिस अपडेट-2021 में विशेषज्ञों द्वारा दी गयी। विभागाध्यक्ष डॉ वेदप्रकाश ने यह जानकारी देते हुए बताया कि सेप्सिस अधिकांश संक्रमणों के लिए अंतिम सामान्य मार्ग है जो अंततः मृत्यु की ओर ले जाता है।
ज्ञात हो संक्रमण होने पर बैक्टीरिया को मारने के लिए डॉक्टर एंटीबायटिक दवाएं देते हैं, लेकिन अगर उन दवाओं से रोगी को फायदा नहीं होता है तो इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि रोगी उस एंटीबायटिक के प्रति रेजिस्टेंट हो गया हो, रेजिस्टेंट तभी होगा जब उस दवा का मरीज पहले भी अंधाधुंध उपयोग कर चुका हो, रेजिस्टेंट वह स्थिति होती है जब बैक्टीरिया उस दवा को बर्दाश्त करने की क्षमता विकसित कर लेता है। ऐसे में उसे मारने के लिए दूसरी उससे भी तेज दवाओं की जरूरत पड़ती है। अगर मरीज को समय रहते प्रॉपर दवा नहीं मिली तो सेप्सिस गंभीर अवस्था में पहुंच जाता है उसके अंग बंद होते जाते हैं और मरीज की मृत्यु हो जाती है।
कोविड महामारी के परिप्रेक्ष्य में होने वाले संक्रमण को लेकर विशेषज्ञों का कहना था कि स्वास्थ्य प्रणालियों द्वारा सेप्सिस की रोकथाम और समय रहते रणनीति के अनुसार उपचार पहले से कहीं अधिक जरूरी है, क्योंकि अनुसंधान पुष्टि करता है कि कोविड-19 के चलते होने वाले सेप्सिस से मृत्यु और विकलांगता की स्थिति उत्पन्न हो रही है।
विशेषज्ञों ने कहा कि आज 13 सितंबर को विश्व सेप्सिस दिवस के अवसर पर, इस बात पर जोर देने की आवश्यकता है कि सरकारों, स्वास्थ्य अधिकारियों, पेशेवरों और सभी हितधारकों को सेप्सिस को वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल के रूप में मानना चाहिए। COVID-19 महामारी ने दिखाया है कि संक्रामक रोग – चाहे संचारी हों या नहीं – एक वैश्विक खतरे का प्रतिनिधित्व करते हैं, और यह कि सेप्सिस की रोकथाम और उपचार समाधान का हिस्सा हैं।
डॉ वेद प्रकाश ने बताया कि सेप्सिस की शीघ्र पहचान और स्वास्थ्य सेवा समाज के साथ-साथ आम जनता में एंटीबायोटिक चिकित्सा के विवेकपूर्ण उपयोग के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए इसी तर्ज पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया था।
केजीएमयू के कुलपति ले.ज. डॉ बिपिन पुरी ने इस कार्यक्रम के आयोजन और सेप्सिस के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए विभाग को बधाई दी। उन्होंने यह भी कहा कि यह उचित है कि हम एक आदर्श संस्थान होने के नाते, अन्य अस्पतालों और संस्थानों को सेप्सिस को रोकने के तरीके के बारे में कार्रवाई के माध्यम से दिखायें और यदि ऐसा होता है, तो इसे जल्दी पहचानना और त्वरित प्रबंधन शुरू करना चाहिए क्योंकि इनमें से हर घंटे बहुत महत्वपूर्ण है। इस संबंध में विभिन्न शैक्षणिक गतिविधियों के माध्यम से सेप्सिस की रोकथाम, पहचान और प्रबंधन के बारे में नियमित अद्यतन बहुत महत्वपूर्ण है।
कार्यक्रम में लोहिया संस्थान के एनेस्थीसिया और क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर व विभागाध्यक्ष डॉ दीपक मालवीय, संजय गांधी पीजीआई के आपातकालीन चिकित्सा विभाग के प्रोफेसर एवं प्रमुख डॉ आरके सिंह, केजीएमयू के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ प्रशांत गुप्ता, पल्मोनरी और क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग, केजीएमयू, के विभागाध्यक्ष डॉ वेद प्रकाश और केजीएमयू के माइक्रोबायोलॉजी विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ शीतल वर्मा ने महत्वपूर्ण विषयों पर जानकारी दी। इस मौके पर विभिन्न विभागों के संकाय सदस्य भी उपस्थित रहे।