-केजीएमयू, लोहिया संस्थान व एरा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के 132 मरीजों पर तीसरे चरण का सफल ट्रायल, उत्पादन के लिए कम्पनी को सौपा गया फॉर्मूला
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। वैश्विक महामारी कोरोना के उपचार में एक महत्वपूर्ण सफलता हासिल करते हुए लखनऊ स्थित केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-सीडीआरआई) के वैज्ञानिकों ने कोरोना के सफल उपचार के लिए देश की पहली एंटीवायरल ड्रग उमिफेनोविर की खोज की है। इस दवा का तीसरा और फाइनल ट्रायल पूरा हो चुका है, इसे 132 मरीजों पर सफल पाया गया है। अब इसे टेबलेट के रूप में आगे के उत्पादन के लिए गोवा की एक निज कम्पनी को सौंप दिया गया है, जल्दी ही मार्केट में यह दवा उपलब्ध होगी।
मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि सीडीआरआई के निदेशक प्रो तपस कुंडू के अनुसार 16 दवाओं में से वैज्ञानिकों की टीम ने उमिफेनोविर को ट्रायल के लिए चुना। उन्होंने बताया कि चूंकि उमिफेनोविर का इस्तेमाल रूस, चीन समेत अन्य देशों में एन्फ्लूएंजा व निमोनिया के इलाज में 20 वर्षों से हो रहा है। इसलिए इसका प्राथमिक ट्रायल करने की आवश्कयता नहीं थी, हम लोगों ने इसके तीसरे चरण के ट्रायल के लिए किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, डॉ राम मनोहर लोहिया संस्थान और निजी क्षेत्र के एरा मेडिकल कॉलेज के कोरोना के बिना लक्षण वाले (एसिम्प्टोमेटिक), मध्यम लक्षण तथा कम गंभीर मरीजों को चुना। उन्होंने बताया कि तीनों संस्थानों के विशेषज्ञों के साथ मिलकर यह ट्रायल ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया की ओर से इमरजेंसी अनुमति मिलने के बाद 3 अक्टूबर 2020 से 28 अप्रैल 2021 के बीच किया गया। इसमें पहली और दूसरी लहर से प्रभावित मरीज शामिल थे।
वैज्ञानिकों का कहना है कि डेल्टा प्लस वैरिएंट में भी इस एंटीवायरल ड्रग के काम करने की पूरी उम्मीद है, क्योंकि डेल्टा वैरिएंट के मरीजों में भी इसे असरदार पाया गया है। प्रो. कुंडू के अनुसार उमिफेनोविर को प्रथम दृष्टया गर्भवतियों और बच्चों में भी प्रभावी पाया गया है, लेकिन इन पर अभी ट्रायल पूरा नहीं हुआ है, इसे पूरा किया जायेगा।
निदेशक के अनुसार तीन चरणों के ट्रायल के बाद इसे बिना लक्षणों वाले व मध्यम एवं कम गंभीर मरीजों के इलाज में प्रभावी पाया गया है। इस तरह के कोरोना मरीजों में वायरस के असर को पांच दिन में करीब-करीब समाप्त कर लिया गया। इसके लिए उमिफेनोविर की 800 एमजी की डोज दिन में दो बार दी गयी।
उन्होंने बताया कि इस ट्रायल में 18 से 75 वर्ष तक की आयुवर्ग के लोगों को रखा गया। उन्होंने बताया कि दवा बनाने की इस तकनीक को गोवा की मेसर्स मेडिजेस्ट को सौंपी गयी है ताकि इसे टैबलेट और सिरप के रूप में बाजार में उतारा जा सके। उन्होंने कहा कि इसकी कीमत भी बहुत ज्यादा होने की उम्मीद नहीं है।
उन्होंने बताया कि इस ट्रायल में सीडीआरआई के डॉक्टरों व केमिस्टों के साथ ही केजीएमयू के चिकित्सा अधीक्षक डॉ डी हिमांशु, लोहिया संस्थान के चिकित्सा अधीक्षक डॉ विक्रम सिंह तथा ऐरा मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ एमएमए फरीदी शामिल रहे।
अध्ययन के परिणामों से पता चला कि हल्के, मध्यम या बिना लक्षण वाले रोगियों में दिन में दो बार Umifenovir (800mg) की दो खुराक देने के बाद वायरल लोड औसतन पांच दिनों में शून्य हो गया। मरीजों को किसी भी तरह के दुष्प्रभाव का अनुभव नहीं हुआ और उनके लक्षण भी गंभीर नहीं हुए।”
प्रोफेसर कुंडू ने कहा, “सीएसआईआर-आईएमटी, चंडीगढ़ के सहयोग से सीडीआरआई द्वारा किए गए अध्ययनों से यह भी पता चला है कि उमिफेनोविर मानव कोशिकाओं में SARS-Cov2 वायरस के प्रवेश को रोकती है।” उन्होंने कहा है कि संस्थान इसका पेटेंट करा रहा है क्योंकि कोरोना में इसका उपयोग पहले नहीं किया गया है।
सीडीआरआई के मुख्य वैज्ञानिक प्रो आर रविशंकर, जिन्होंने वैज्ञानिकों की टीम का नेतृत्व किया, ने कहा: “उमीफेनोविर कोविद-19 रोगियों के इलाज के लिए किफायती होगी क्योंकि यह वर्तमान दवा की तुलना में लगभग 50-54% सस्ती है। अध्ययन में शामिल तीन अस्पतालों के विशेषज्ञों का भी कहना है कि यह दवा गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए सुरक्षित है। उनका कहना है कि हम बच्चों के लिए और पाउडर के रूप में भी उमीफेनोविर की संभावना देख रहे हैं ताकि इसे पफ इनहेलर के रूप में इस्तेमाल किया जा सके।