खुद के इलाज और झोलाछाप के चक्कर में न पड़ें, योग्य डॉक्टर को दिखायें
लखनऊ। पाइल्स की शिकायत होने पर डर और शर्म छोड़ें, बात करें और योग्य चिकित्सक को दिखायें, जरूरी नहीं है ऑपरेशन करना ही पड़े क्योंकि लगभग 70 से 80 फीसदी लोगों का उपचार सिर्फ दवा से हो जाता है बाकी 20 से 30 प्रतिशत लोगों को ही सर्जरी की जरूरत पड़ती है। खुद का इलाज या झोलाछाप से इलाज के चक्कर में केस खराब और कर लेते हैं। यही नहीं कभी-कभी व्यक्ति कैंसर का शिकार होता है लेकिन वह समझता है कि यह पाइल्स है ऐसे में यदि वह सर्जन से मिले तो कैंसर होने की स्थिति में भी उसका इलाज जल्दी शुरू होने का लाभ यह होता है कि कैंसर ठीक होने की संभावना काफी रहती है लेकिन अगर वह 7-8 माह तक खुद ही या झोलाछाप का इलाज करता है तो वह समय और गंवाता है तब तक कैंसर एडवांस स्टेज में पहुंच जाता है, नतीजा यह होता है कि मरीज के बचने की संभावना बहुत कम हो जाती है।
यह बात किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्व विद्यालय के सर्जन प्रो अरशद ने सर्जरी विभाग के 107वें स्थापना दिवस पर आयोजित सतत चिकित्सा शिक्षा के चौथे दिन अपने प्रेजेन्टेशन के दौरान बतायी।
डॉ अरशद ने बताया कि 50 फीसदी लोगों को जीवन में कभी न कभी पाइल्स यानी बवासीर की शिकायत जरूर होती है। लेकिन लोगों में यह भ्रांति बैठी हुई है कि सर्जन को दिखाया तो ऑपरेशन कर देंगे, इस चक्कर में लोग झोलाछाप के चक्करों में पड़े रहते हैं, नतीजा यह होता है कि काफी लोग बाद में ठीक न होने पर सर्जन के पास पहुंचते हैं तो केस और बिगड़ चुका होता है। इसके अलावा एक और वजह है शर्म। लोग शर्म के कारण पाइल्स के बारे में बात करने पर झिझकते हैं, इसी का फायदा उठाकर झोलाछाप अपनी दुकान चलाते हैं।
डॉ.अरशद ने बताया कि फिस्टुला और पाइल्स के 50 प्रतिशत मरीजों में गैस बनने की समस्या कामन होती है। गैस बनने की वजह से आंतों की सक्रियता प्रभावित होती है और भोजन पचाने का अवसर नहीं मिलता है। यही कब्ज पाइल्स का मुख्य कारण बनता है।
उन्होंने सलाह दी कि पर्याप्त मात्रा में पानी पीयें, रेशेदार यानी सब्जियां, फल, रसदार फल का भी सिर्फ रस ही न पीयें बल्कि पूरा फल खायें जिससे रस के साथ ही रेशेदार पदार्थ भी पेट में जायेंगे। व्यायाम या टहलें जरूर, जिससे कि कब्ज की शिकायत न हो। ,