सीतापुर से भी नहीं लिया सबक, जान बचाने के लिए लोकल पर्चेस भी कराने की जहमत नहीं उठाई

लखनऊ. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भले ही प्रदेशवासियों की जरूरतों को लेकर बहुत कुछ करना चाहते हैं इसके लिए अधिकारीयों को निर्देशित भी करते रहते हैं लेकिन अधिकारी मुख्यमंत्री की बातों पर तवज्जो नहीं देते हैं, तथा सरकार की मंशा पर पानी फेर रहे हैं. इस रवैये से उत्तर प्रदेश में चिकित्सा व्यावस्था पुख्ता करने के योगी सरकार के दावों की हवा निकलती दिख रही है.
लापरवाही का आलम यह है कि इसी उत्तर प्रदेश का एक जिला सीतापुर आजकल कुत्तों के आतंक से जूझ रहा है, दर्जन भर से ज्यदा बच्चों की जान जा चुकी है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी सीतापुर का दौरा कर चुके हैं. इसके बावजूद अधिकारियों की ये लापरवाही हैरान करने वाली है. ताजा मामला उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले का है. फर्रुखाबाद के जहानगंज में बच्ची को आवारा कुत्तों ने काटा था एक 12 साल की मासूम की जान इसलिए चली गयी क्योंकि उसे कुत्ते ने काट लिया था और कुत्ते के काटने पर कई सरकारी अस्पतालों में गयी, लेकिन ऐंटी रैबीज इंजेक्शन किसी अस्पताल में नहीं मिला, चूँकि परिवार गरीब है नतीजा यह हुआ कि न तो प्राइवेट अस्पताल जा सका और न ही परिवार इंजेक्शन नहीं खरीद सका और उसकी बच्ची ने तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार फर्रुखाबाद के जहानगंज थाना क्षेत्र के गांव रतनपुर निवासी श्रीनिवास की 12 साल की बच्ची प्रिया 24 अप्रैल को घर से खेत की ओर जा रही थी. इस दौरान पीछे से आवारा कुत्तों ने उस पर हमला कर दिया. जानलेवा हमले में वह बुरी तरह लहूलुहान हो गई. जैसे ही परिजनों को घटना की जानकारी हुई तो वह उसे इलाज के लिए क्षेत्र के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) ले गए. लेकिन वहां उन्हें बच्ची के लिए ऐंटी रैबीज इंजेक्शन नहीं मिला.
वहां ऐंटी रैबीज इंजेक्शन नहीं मिलने पर परिजन बच्ची को कमालगंज की सीएचसी ले गए. लेकिन दुर्भाग्यवश वहां भी उसे ऐंटी रैबीज इंजेक्शन नहीं मिला. बेटी का इलाज सीएचसी में संभव ना पाकर परिजन उसे जिला अस्पताल डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल ले गए. लेकिन हद तो तब हो गयी जब वहां भी उन्हें ऐंटी रैबीज इंजेक्शन और इलाज नहीं मिला. दुःख की बात यह है कि किसी भी सरकारी अस्पताल ने बच्चे की जान बचाने के लिए ऐंटी रैबीज इंजेक्शन की लोकल पर्चेस करने की जरूरत भी नहीं समझी. बताया जाता है कि इसके बाद जब बच्ची की हालत गंभीर हुई तो परिजन उसे दोबारा लोहिया अस्पताल लेकर पहुंचे. परिजनों के मुताबिक इस बार डॉक्टरों ने उसका इलाज करने से ही मना कर दिया. इसके चलते बच्ची की तड़प-तड़प कर मौत हो गई. मामले में लोहिया अस्पताल के सीएमएस डॉक्टर बीबी पुष्कंर का कहना है कि रैबीज के इंजेक्शन अभी नहीं आ रहे थे क्योंकि आसपास के जनपदों के लोग भी यहां लगवाने आते हैं, इसलिये खत्म हो गए थे.
इंजेक्शन की उपलब्धता हर हाल में होनी चाहिए
इस तरह की इमरजेंसी वाली दवाएं अस्पतालों में ख़त्म होने की नौबत कैसे आ जाती है. क्यों नहीं थोड़ा स्टॉक बचने पर आपूर्ति कर ली जाती है. अगर बच्ची को समय से इंजेक्शन मिल जाता तो उसकी जान बच सकती थी. जबकि ऐसे ऑर्डर्स पहले से हैं कि ऐंटी रैबीज इंजेक्शन छोटे से छोटे सरकारी अस्पताल में रखा जाना है. यह कहना अनुचित नहीं होगा कि जीवन रक्षक दवाओं की, जान बचाने के लिए लोकल पर्चेस की व्यवस्था है और उसके लिए पर्याप्त धनराशि उपलब्ध होती है. सोचकर देखिये कि आज अगर इस गरीब बच्ची की जगह कोई प्रभावशाली नेता या अधिकारी का बच्चा होता तो क्या अस्पताल उसके साथ भी यही लापरवाही वाला रवैया अपनाता?

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