Saturday , November 23 2024

दिमाग पर जंग न लगने दें, मोबाइल पर निर्भरता कम करें

-विश्‍व मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य दिवस पर आईटी कॉलेज में डिजिटल ड्रग पर आयोजित चर्चा में विशेषज्ञ की सलाह

सावनी गुप्‍ता, क्‍लीनिकल साइकोलॉजिस्‍ट

सेहत टाइम्‍स

लखनऊ। अपने स्‍मार्ट मोबाइल फोन को अपने कंट्रोल में रखें, न कि आप उसके कंट्रोल में रहें। छोटी-छोटी बातों को याद रखने के लिए मोबाइल पर निर्भर न हों, अपनी शिकायत का इजहार अपनी उदास डीपी लगाकर नहीं बल्कि खुद मिलकर सम्‍बन्धित व्‍यक्ति से बात करके करें। कम से कम अपने घर-परिवार के सदस्‍यों का फोन नम्‍बर स्‍वयं याद रखें तथा अपना एटीएम पिन तक देखने के लिए मोबाइल पर निर्भर होने की आदत अगर हो तो छोड़ दें, अपने मस्तिष्‍क को काम पर लगायें, अन्‍यथा आपके मस्तिष्‍क में ‘जंग’ लगती रहेगी जिससे आपको कमजोर याददाश्‍त, चिड़चिड़ेपन, चिंता जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है और आप डिजिटल ड्रग एडिक्‍शन (मोबाइल फोन की लत) से ग्रस्‍त लोगों की गिनती में शामिल हो सकते हैं।

मौजूदा दौर के इस ज्‍वलंत विषय पर चर्चा करते हुए यह बेहतरीन सलाह फेदर (सेंटर फॉर मेंटल हेल्‍थ) की फाउंडर व क्‍लीनिकल साइकोलॉजिस्‍ट सावनी गुप्‍ता ने यहां आईटी कॉलेज में पीजी डिपार्टमेंट ऑफ सोशियोलॉजी के वी फॉर चेंज क्‍लब द्वारा विश्‍व मानसिक दिवस के अवसर पर बीती 15 अक्‍टूबर को आयोजित एक चर्चा में दी। पावर प्‍वाइंट के जरिये ब्रेन के फंक्‍शन और उस पर पड़ने वाले मनोवैज्ञानिक प्रभाव के बारे में विस्‍तार से बताते हुए सावनी ने कहा कि आजकल बड़ी संख्‍या में लोग जिन शिकायतों को लेकर मेंटल हेल्‍थ एक्‍सपर्ट के पास आते हैं उनमें याद रखने में दिक्‍कत होना, मूड स्विंग गड़बड़ होना, एकाग्रता में कमी होना, चिंताग्रस्‍त रहना, उदासी जैसी दिक्‍कतें शामिल हैं।

उन्‍होंने बताया कि मोबाइल के ज्‍यादा इस्‍तेमाल से लगातार सिरदर्द, आंखों की रोशनी कम होना, गलत ढंग से बैठने के कारण शरीर में दर्द, चिंता, सामाजिक जीवन से दूरी, अवसाद, अकेलापन, मनोवैज्ञानिक प्रभाव में याददाश्‍त कमजोर होना, एकाग्रता में कमी, मूड खराब रहना, चिड़चिड़ापन, आक्रामक व्‍यवहार जैसी परेशानियां हो जाती हैं। सावनी ने बताया कि इन सबमें सबसे कॉमन डिस्‍ऑर्डर्स जो पाये जाते हैं उनमें चिंता, अवसाद, अनिद्रा, मोटापा और दुर्घटनाओं (फोन पर बात करने के दौरान गाड़ी चलाने, फोन पर बात करते-करते सड़क पार करना) के केस सुनायी पड़ते हैं।

सर्वाधिक स्‍क्रीन टाइम पर रहते हैं 16 से 24 वर्ष के लोग

सावनी ने बताया कि ताजा रिपोर्ट्स के आंकड़ों के अनुसार 16 से 24 वर्ष के लोगों का स्‍क्रीन टाइम सबसे ज्‍यादा 56 प्रतिशत है, जबकि 25 से 34 वर्ष की आयु वाले 55 प्रतिशत, 35 से 44 वाले 47 प्रतिशत, 45 से 54 वाले 30 प्रतिशत, 55 से 64 वाले 16 प्रतिशत और 65 से 75 वर्ष वाले 12 प्रतिशत लोग मोबाइल यूज करते हैं।

आखिर क्‍यों हो जाते हैं लोग मोबाइल के लती

डिजिटल ड्रग एडिक्‍शन होने के न्‍यूरो बायोलॉजिकल कारण हैं। आकर्षक और नयी-नयी चीजों, जानकारियों को देखकर हमारे शरीर में एक न्‍यूरो ट्रांसमीटर डोपामीन रिलीज होता है, इस डोपामिन के रिलीज होने से व्‍यक्ति के अंदर अत्‍यंत आनंद की अनुभूति होती है। उन्‍होंने बताया कि स्‍टडी में यह पाया गया है कि चूंकि ब्रेन का फंक्‍शन तो हमेशा से एक ही रहा है तो पुरातन काल में डायनासोर के जमाने में मानव अपनी सुरक्षा के लिए नये-नये तरीके इजाद करता था, जिसकी सफलता देखकर शरीर में न्‍यूरो ट्रांसमीटर डोपामीन रिलीज होते थे, और वह एक अलग प्रकार की खुशी महसूस करता था। इसके विपरीत अब आजकल के जमाने में भागदौड़ भरी जिन्‍दगी से पैदा हुई परेशानियों को दूर करने के लिए व्‍यक्ति मोबाइल पर इंटरनेट के माध्‍यम से नयी-नयी चीजें, कार्यक्रम, अविष्‍कार, म्‍यूजिक, चुटकुले, मन को आकर्षित करने वाला साहित्‍य, फोटोज, दिल को छू लेने वाली चीजें देखता है तो उसके अंदर वही न्‍यूरो ट्रांसमीटर डोपामि‍न रिलीज होता है, जो उसे एक अलग ही आनंद देता है, धीरे-धीरे यह प्रक्रिया बढ़ती जा जाती है जो कि पहले उसके व्‍यवहार में और फि‍र लत में बदल जाती है।

सावनी ने बताया कि पुराने समय में मानव फि‍जिकली वर्ल्‍ड में रहते हुए की गयी गतिविधियों के जरिये खुशियां प्राप्‍त करता था, नये अविष्‍कार से उसके शरीर में डोपामि‍न रिलीज होता था, जबकि आजकल भागमभाग के चलते जिन्‍दगी में पैदा हुए तनाव से बचने के लिए व्‍यक्ति घर में बिस्‍तर पर आराम से लेटकर वर्चुअल वर्ल्‍ड में रहकर सिर्फ मोबाइल स्‍क्रीन देखकर वही डोपामिन प्राप्‍त कर लेता है, फि‍जिकल एक्टिविटी समाप्‍त हो गयी है जो कि शरीर के लिए नुकसानदायक सिद्ध हो रही है।  

व्‍यक्ति को अपने वश में कर लिया है स्‍मार्ट फोन ने

सावनी ने कहा कि छोटी से छोटी जगह पर भी इंटरनेट उपलब्‍ध होने, स्‍मार्ट फोन में फंक्‍शन और फीचर्स बढ़ने से एडिक्‍शन की समस्‍याएं भी बढ़ रही हैं। सोशल, इमोशनल और प्रोफेशनल सभी प्रकार के जीवन पर मोबाइल फोन का कब्‍जा हो गया है। आजकल अपने स्‍मार्ट फोन पर आप अपने प्रोग्राम फि‍क्‍स कर सकतें हैं, सामान की लिस्‍ट तैयार करना, किसी की बर्थडे याद रखना, आपको कब क्‍या खाना है, कितना चलना है, आपका ऑक्‍सीजन लेवल सभी चीज का उत्‍तर आपके स्‍मार्ट फोन में है। दिमाग को जोर देने की जरूरत ही नहीं पड़ रही है, यहां तक कि बैंक के एटीएम का चार डिजिट का पासवर्ड भी लोग याद न रखकर मो‍बाइल में फीड कर लेते हैं।

क्‍या करना चाहिये

सेल्‍फ हेल्‍प मैथड का इस्‍तेमाल कर इस लत से बचा जा सकता है। उन्‍होंने बताया कि स्‍मार्ट फोन के एक फीचर में यह जानकारी भी होती है कि आपने कितनी देर मोबाइल इस्‍तेमाल किया है, ऐसे में इस फीचर को ऑन रखकर देखें और पहले एक सीमा तय करें कि आप रोज फोन का कितनी देर इस्‍तेमाल करेंगे, जब वह सीमा पूरी हो जाये, फोन का इस्‍तेमाल बंद कर दें। लोग एक्‍सरसाइज भी फोन को देखकर करते हैं,  ऐसा न करें, सावनी ने बताया कि ऐसा भी देखा जाता है कि लोग अपनी भावनाएं भी मोबाइल में स्‍टेटस के जरिये दिखाते हैं, बजाये इसके कि जिससे नाराजगी है, उससे मिलकर बात कह कर नाराजगी दूर करें। इसके अलावा जिन ऐप के इस्‍तेमाल करने में ज्‍यादा समय खर्च होता है उसे फोन से अनस्‍टॉल कर दें। आपस में फि‍जिकली रूप से मिलकर बातें करें, और अपने लिए सेफ जोन तैयार करें। उन्‍होंने कहा कि अगर ब्रेन के लर्निंग फंक्‍शन का इस्‍तेमाल नहीं होता है, तो यह ठीक नहीं है। उन्‍होंने कहा कि ब्रेन भी एक मसल है, इसका जितना इस्‍तेमाल किया जायेगा उतना ही मजबूत होगी। उन्‍होंने कहा कि मोबाइल के एडिक्‍शन और उससे होने वाली दिक्‍कतों से ग्रस्‍त लोग बताये गये उपायों को मजबूत इच्‍छाशक्ति के साथ अपनायें और यदि अपनाने में असमर्थता हो तो वे किसी मनोवैज्ञानिक या दूसरे मानसिक रोग विशेषज्ञ से मिलकर अपनी समस्‍या बता सकते हैं।

इस मौके पर आईटी कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ वी प्रकाश ने सावनी गुप्‍ता के लेक्‍चर की प्रशंसा कर उन्‍हें सम्‍मानित करते हुए कहा कि उन्‍होंने आज की ज्‍वलंत समस्‍या को लेकर जो महत्‍वपूर्ण जानकारियां दी हैं वे निश्चित ही सभी के लिए उपयोगी हैं। उन्‍होंने आशा व्‍यक्‍त की कि छात्राएं आज के लेक्‍चर से न सिर्फ स्‍वयं बल्कि दूसरों को भी जागरूक करेंगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Time limit is exhausted. Please reload the CAPTCHA.