-मानसिक स्वास्थ्य पर गोल्डन फ्यूचर ने आयोजित की संगोष्ठी
-रामकृष्ण मिशन की 75वीं वर्षगांठ पर आयोजित हुआ कार्यक्रम
सेहत टाइम्स
लखनऊ। वयस्कों को होने वाले अनेक मनोरोगों की नींव बचपन में ही पड़ती है, ऐसे में अपने बच्चों को मनोरोगी होने से बचाने के लिए बच्चों की परेशानियों को बचपन में ही समझें और उसका हल निकालें। यह समझना कि बच्चों को किस बात का टेंशन, यह गलत है, बच्चों को भी टेंशन होता है।
यह सलाह गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च के कन्सल्टेंट (एमडी साइक्रियाट्री होम्योपैथी) डॉ गौरांग गुप्ता ने रविवार को रामकृष्ण मठ में आयोजित संगोष्ठी में कही। रामकृष्ण मिशन की 125वीं वर्षगांठ पर मानसिक स्वास्थ्य पर कार्य करने वाली संस्था गोल्डेन फ्यूचर ने ‘अच्छे मानसिक स्वास्थ्य को लेकर रिश्तों के विभिन्न पहलुओं पर विशेषज्ञों की क्या राय है’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया था।
संगोष्ठी में अपने विचार रखते हुए डॉ गौरांग गुप्ता ने कहा कि भारत में पिछले सौ-डेढ़ सौ वर्षों में अनेक क्रांतियां हुई हैं, मौजूदा समय में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर एक क्रांति आयी हुई है। उन्होंने कहा कि आज से 20-30 साल पूर्व लोग अवसाद, चिंता जैसी मानसिक दिक्क्तों से ग्रस्त होने पर इस विषय पर बात करने से कतराते थे, लेकिन आज स्थितियां भिन्न हैं, आज लोग खुलकर यह स्वीकार करते हैं कि कभी वह इसके शिकार थे, बॉलीवुड कलाकार तक जो पहले इन बातों को छिपाते थे, अब खुलकर बताते हैं कि वह इस समस्या से जूझ चुके हैं। उस समय प्रोड्यूसर ऐसे कलाकार को फिल्म में नहीं लेता था, उसे लगता था कि अगर मैंने इसे फिल्म में लिया और मानसिक समस्या के चलते ये कार्य नहीं कर पाये, तो पैसा डूब जायेगा।
उन्होंने कहा कि इसी क्रांति में मैं अपनी बात जोड़ते हुए कहना बताना चाहता हूं कि मैंने अपनी प्रैक्टिस में देखा है कि 5 से 20 वर्ष की उम्र के बच्चों/किशोरों की समस्याओं को लेकर माता-पिता अनभिज्ञ हैं, उन्हें यह पता ही नहीं है कि इस उम्र में उनके बच्चों को किसी प्रकार की मानसिक समस्या हो सकती है, उन्हें लगता है कि इन्हें आखिर कौन सा तनाव है, इन्हें खाना, पढ़ना, सोना ही तो है, उन्होंने कहा कि लेकिन माता-पिता की यह सोच बिल्कुल गलत है।
उन्होंने कहा कि जिन बच्चों को यह शिकायत होती है तो वह रोते नहीं है, बल्कि उसके अंदर जो लक्षण दिखते हैं वे हैं चिड़चिड़ापन, गुस्सा, दुर्व्यवहार आदि। जबकि माता-पिता बच्चों के इन लक्षणों को यंग जनरेशन का व्यवहार समझ कर टाल देते हैं, वे इसकी जड़ में नहीं जाते हैं। डॉ गौरांग ने कहा कि मैंने अपनी क्लीनिकल प्रैक्टिस में यह महसूस किया है कि करीब 10 में से 6 यानी आधे से ज्यादा मामलों में गलती बच्चों की नहीं, बल्कि माता-पिता की होती है, उन्होंने कहा कि गलती से आशय इस बात का है कि माता-पिता बच्चे की परेशानियों को इग्नोर करते हैं। दरअसल माता-पिता नौकरी, भागदौड़, गृहस्थी में इतने उलझे रहते हैं कि वे बच्चों की इन परेशानियों को महसूस नहीं कर पाते हैं। उन्होंने कहा कि जबकि बच्चों की परेशानी की वजहों में जायें तो स्कूल में कोई बच्चा उन्हें परेशान करता है, कमेंट करता है, उसकी खिंचाई करता है, यहां तक कि उसे अपशब्द तक कहता है या बच्चे को पढ़ाई का टेंशन है आदि-आदि।
उन्होंने कहा कि मैं एक उदाहरण बताता हूं कि दो माह पूर्व एक सात साल के बच्चे को उसके माता-पिता सफेद दाग की शिकायत लेकर आये। डॉ गौरांग ने बताया कि मैंने उनके माता-पिता से कहा कि सफेद दाग किसी न किसी चिंता, तनाव के कारण होता है, तो उन्होंने अविश्वास भरे लहजे में कहा कि इसे तीन साल पहले चार वर्ष की उम्र से यह शिकायत शुरू हुई है, इसे कौन का तनाव हो सकता है।
डॉ गौरांग ने बताया कि मैंने बच्चे के माता-पिता को डर, कोई घटना, किसी सदस्य से बिछड़ना जैसे तनाव के कई कारणों के बारे में बताया। इसके बाद जब हिस्ट्री लेना शुरू किया तो पता चला कि जब बच्चे की उम्र चार वर्ष थी, तब उसकी मां गर्भवती थीं, उस समय परिस्थितियोंवश डिलीवरी के लिए उसकी मां छह माह तक अपने मायके में रही, यही नहीं दो-तीन माह बाद पिता भी पत्नी के साथ अपनी ससुराल में रहे, जबकि यह बच्चा बाबा-दादी के पास रहा, उन दिनों वह दिनभर रोता रहता था, दुखी रहता था। यहां यह कारण सामने आया कि माता-पिता से अचानक हुई दूरी से बच्चे को इतना मानसिक तनाव हुआ कि उसे सफेद दाग की शिकायत हो गयी।
इससे पूर्व गोल्डेन फ्यूचर के संस्थापक शोभित नारायण अग्रवाल ने मंच का संचालन दायित्व निभाते हुए आये हुए अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य एक गंभीर मुद्दा है, इसे समझें और समस्याओं का समाधान करें। शोभित ने आये हुए अतिथियों और स्पीकर्स का परिचय देते हुए संगोष्ठी के विषय पर प्रकाश डाला। उन्होंने गोल्डेर फ्यूचर की कार्यप्रणाली के बारे में भी जानकारी दी।
नूरमंजिल साइक्रियाटिक सेंटर की क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ अंजली गु्प्ता ने कार्यक्रम में पति-पत्नी के बीच होने वाले तनाव के कारणों और तनाव की समाप्ति के लिए किये जाने वाले प्रबंधन के बारे में जानकारी दी जबकि हीलर, सोशल एक्टिविस्ट डॉ सीमा यादव ने बेटियों और माता-पिता के बीच किस प्रकार के सम्बन्ध रहने चाहिये, इस पर प्रकाश डाला। गौरव प्रकाश ने कोविड की वजह से आयी परिवार में परेशानियों का समाधान करने के बारे में अपने सुझाव दिये। उन्होंने मानसिक स्वास्थ्य की गंभीरता के विषय में बात करते हुए बताया कि अवसाद से ग्रस्त देशों में भारत का दूसरा स्थान है। उन्होंने कहा कि जनसंख्या और मनोचिकित्सक के अनुपात हमारे देश में बहुत ज्यादा है यानी मनोचिकित्सकों की बहुत कमी है।
रामकृष्ण मठ के अध्यक्ष तथा विेवेकानंद पॉलीक्लीनिक के संचालक स्वामी मुक्तिनाथानंद ने रामकृष्ण मिशन की 125वीं वर्षगांठ पर आयोजित इस कार्यक्रम में रामकृष्ठ मठ के इतिहास के बारे में बताया। इस मौके पर एक पैनल डिस्कशन भी हुआ जिसमें लखनऊ विश्वविद्यालय की डॉ अर्चना शुक्ला, सिटी मॉन्टेसरी स्कूल की डॉ कल्पना त्रिपाठी, पति-पत्नी कल्याण समिति के डॉ योगेन्द्र प्रताप सिंह और आर्ट ऑफ लिविंग के अध्यापक समर्थ नारायण ने हिस्सा लिया।