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सिर्फ खुश्‍बू ही नहीं, अस्‍थमा भी दे सकता है डियोडोरेंट

पार्क से लेकर अस्‍पताल तक में बताये गये अस्‍थमा से बचने के उपाय

इंडियन चेस्‍ट सोसाइटी ने केजीएमयू के रेस्‍पाइरेटरी मेडिसिन विभाग के साथ मिलकर मनाया विश्‍व अस्‍थमा दिवस

लखनऊ। जिस डियोडोरेंट को हम अपने शरीर पर खुश्‍बू पाने के लिए लगाते हैं, वह धूल, मिट्टी, धुएं आदि की तरह ही अस्‍थमा होने का कारण भी बन सकता है। विश्व अस्थमा दिवस के अवसर पर आज इंडियन चेस्ट सोसाइटी (यूपी चैप्टर) एवं किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय लखनऊ के रेस्पाइरेटरी मेडिसिन विभाग के तत्वावधान में लोहिया पार्क, चौक मे प्रातः 6 से 8 बजे तक अस्थमा जागरूकता अभियान एवं निशुल्क परामर्श शिविर का आयोजन किया गया जिसमें मार्निग वॉक करने वाले लगभग 122 लोगों की फेफड़े की कार्य क्षमता की जॅाच की गयी तथा किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्पाइरेटरी मेडिसिन विभाग मे विशेष क्रार्यक्रम का भी आयोजन किया गया।

 

इस कार्यक्रम में रेस्पाइरेटरी मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष एवं इंडियन कॉलेज ऑफ एलर्जी अस्थमा एवं एप्लाइड इम्यूनोलॉजी के अध्यक्ष, प्रोफेसर सूर्यकान्त ने बताया कि दमा की बीमारी बचपन में शुरू होती है। बच्चों में दमा के लक्षण जैसे पसली चलना, सर्दी, जुकाम, नाक बहना, सांस फूलना, हॅाफना, खांसी आना, बच्चे का दुबला-पतला एवं कमजोर होना आदि आगे चलकर यही दमा का रूप ले लेता है। इसका एक कारण आनुवांशिक (पारिवारिक) भी है। इस बीमारी मे बच्चों की सांस की नलियां अति संवेदनशील हो जाती है। जैसे छुईमुई का पौधा। वैसे ही धूल धुआं, वर्षा, पराग कण आदि के सम्पर्क में आने पर उनकी सांस की नलियां सिंकुड़ जाती है।

उन्‍होंने बताया कि आज से बीस वर्ष पहले 100 में से 2 ही बच्चों को दमा होता था पर आज यह बढ़कर 15 से 16 हो गया है। इसका सबसे बड़ा कारण खान-पान में बदलाव तथा अनियमित दिनचर्या तथा दूसरा कारण जैसे कुछ बच्चे अपने साथ टैडीबियर रखते हैं उनमें खतरा ज्यादा होता है। अन्य कारणों में तकियों में सेमल की रुई के इस्तेमाल, घर में कुत्ते, बिल्ली आदि जानवर, घर में लगे जाले, पुरानी किताबें, कूलर की घास, लकड़ी के चूल्हे से, बीड़ी के धुएं से और धूल-मिट्टी से, डियोडोरेंट से, अगरबत्ती के धुएं से, मच्छर भगाने की अगरबत्ती का इस्तेमाल मुख्य कारण है। अगर किसी को दमा हो गया हो इसका मुख्य इलाज चिकित्सक की सलाह से इन्हेलर लेना है और इन्हेलर नियमित रूप से लेना चाहिए। छोटे बच्चों तथा गर्भवती महिलाएं भी इन्हेलर चिकित्सा ले सकती हैं।

 

डॉ सूर्यकांत ने बताया कि दमा से बचाव के लिए धूल, मिट्टी, धुएं इत्यादि से बचना चाहिए, वातावरण को प्रदूषण मुक्त तथा वृक्षारोपण करना चाहिए। इस अवसर पर रेस्पाइरेटरी विभाग के अन्य चिकित्सक डॉ राजीव गर्ग, डॉ आरएएस कुशवाहा, डॉ संतोष कुमार, डॉ अजय कुमार वर्मा, डॉ आनन्द श्रीवास्तव, डॉ दर्शन कुमार बजाज, डॉ ज्योति बाजपेई आदि भी उपस्थित थे।  इस अवसर पर अस्थमा के लक्षण,निदान तथा बचाव के बारे में बताया गया तथा मरीजों के प्रश्नों का उत्तर भी दिया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ ज्योति बाजपेई ने किया।