मीठी गोलियों में है बड़ा दम, बरसात में सबसे ज्यादा खतरा होता है संक्रामक रोगों का
लखनऊ। आजकल झमाझम बरसात हो रही है, बरसात आती है तो सबसे ज्यादा खतरा संक्रामक रोगों का होता है। पानी का जमाव मच्छर पैदा करता है, हवा में भी नमी होती है जो कीटाणुओं को पनपने देने में सहायक होता है। होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति में संक्रामक रोगों का इलाज पूरी तरह संभव है। बरसात के मौसम में चिकनपॉक्स, मीजल्स, जर्मन मीजल्स, और इंफ्लुएंजा जैसी बीमारियां तेजी से फैलती हैं। चिकनपॉक्स में हाथ और पैर के तलवे छोड़कर पूरे शरीर में ओस की बूंद की तरह दाने निकलते है। वहीं मीजल्स में गले में खराश और आंखों से पानी निकलने के कारण पूरे शरीर में लाल रंग के चक्कते पड़ जाते हैं।
यह जानकारी देते हुए केन्द्रीय होम्योपैथी परिषद के सदस्य व होम्योपैथी चिकित्सक डॉ.अनिरूद्ध वर्मा ने बताया कि मीजल्स वायरस जनित संक्रमण हैं, इसमें हल्के बुखार के साथ पूरे शरीर में चकत्ते निकल आते हैं। होम्योपैथी में इसका कारगर इलाज हैं। उन्होंने बताया कि यह संक्रामक बीमारी है। एक तरह का कीटाणु इस रोग में मौजूद रहता है।
लक्षण-
सर्दी लगना, बुखार, सिर दर्द, पलकों का भारीपन एवं दर्द, आंख, नाक से पानी गिरना, छींक, खांसी और बदन दर्द इस रोग के लक्षण हैं।
उपचार – बुखार रहने पर गर्म पानी, गर्म दूध पीने को देना चाहिए। फलों में बहुत थोड़ी मात्रा में अनार का रस देना चाहिए।
रोगी को पूरी तरह से आराम मिलना चाहिए। साथ ही उसे परिवार के अन्य सदस्यों के संसर्ग से बचना चाहिए, क्योंकि यह एक संक्रामक रोग है। अंतः रोगी का थूक, बलगम वगैरह सावधानी से दूर फेंक देना चाहिए। डॉ वर्मा ने बताया कि होम्योपैथी में वायरल बुखार एवं संक्रामक रोगों पर नियंत्रण के लिए भी कारगर दवाएं उपलब्ध हैं। इस पद्धति में कोई भी रोग लाइलाज नहीं माना जाता। उन्होंने बताया कि खासकर वायरल संक्रमण में जेलसेनियम, अपेट्रोनियम, इंफ्लुएंजियम, रस्टाक एवं आर्सेनिक नामक दवाएं काफी कारगर हैं।
डॉ. वर्मा ने बताया कि होम्योपैथी में रोग का नहीं बल्कि रोगी का इलाज किया जाता है। इस चिकित्सा पद्धति में लक्षणों के आधार पर चिकित्सा की जाती है। जिसमें संक्रामक रोगों के मामले में लाभकारी परिणाम देखने को मिला है।