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सिर्फ बच्‍चों में ही नहीं, बड़ों में भी होता है अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर

-समु‍चित उपचार के लिए समय से और सावधानी से पहचानने की जरूरत : सावनी गुप्‍ता

-विश्‍व मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य दिवस-जागरूकता सप्‍ताह (एपीसोड 6)

सावनी गुप्‍ता

सेहत टाइम्‍स

लखनऊ। एडीएचडी (अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर) सिर्फ बच्चों में होने वाली समस्या नहीं है, यह बड़ों में भी पायी जाती है। ज्ञात हो एडीएचडी एक कम ध्यान देने की समस्या है, साथ ही यह भावनाओं को नियंत्रित करने और प्रभावी आत्म-नियमन की भी समस्या है। यह कहना है कपूरथला, अलीगंज स्थित फेदर्स-सेंटर फॉर मेंटल हेल्‍थ की फाउंडर, क्‍लीनिकल साइकोलॉजिस्‍ट सावनी गुप्‍ता का।

विश्‍व मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य दिवस के मौके पर मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य सप्‍ताह की प्रस्‍तुतियों के क्रम में ‘सेहत टाइम्‍स’ से विशेष वार्ता में सावनी ने बताया कि रोजमर्रा की जिंदगी की जरूरतों की पूर्ति के लिए एक सफल जीवन कौशल विकसित करना होता है। सफल जीवन कौशल के लिए आवश्‍यकता होती है आत्‍म-नियमन की, जबकि एडीएचडी वाले लोगों में स्व-नियमन की समस्याएं होती हैं। परिणामस्‍वरूप भावनाओं को प्रबंधित करना मुश्किल हो जाता है, इसलिए वे अधिक महत्वपूर्ण घटनाओं पर ध्यान न देते हुए अत्यधिक व्यवहार और भावनाओं के साथ छोटी घटनाओं पर प्रतिक्रिया कर सकते हैं। सावनी का कहना है कि वयस्कों में भी एडीएचडी का निदान करना महत्वपूर्ण है क्‍योंकि वयस्कों में एडीएचडी के निदान और उपचार की कमी उन्हें परिवार के सदस्यों या दोस्तों के रूप में उत्पादक भूमिकाएँ पूरा करने से रोकती है।  

एडीएचडी से ग्रस्‍त वयस्कों को निर्देशों का पालन करने, जानकारी को याद रखने, अपने ध्‍यान को केंद्रित करने, अपने कार्यों को व्‍यवस्थित करने या कार्य को समय सीमा के भीतर पूरा करने में भी कठिनाई होती है, जो कि व्यवहार संबंधी, भावनात्मक, सामाजिक, व्यावसायिक और शैक्षणिक समस्याओं का कारण बन सकती हैं।

एडीएचडी के प्रकार को जानकर उपचार की योजना बनाना

आपके एडीएचडी के प्रकार को जानना आपके डॉक्टर के लिए सर्वोत्तम उपचार योजना की सटीक पहचान करने के लिए महत्वपूर्ण है। एडीएचडी के प्रकार निम्नलिखित हैं। एक बार निदान हो जाने पर, आपका उपचार शुरू हो सकता है।

एडीएचडी इनअटेन्टिव- इसे एडीडी के रूप में भी जाना जाता है, इसमें रोजाना के कार्यों का करने में फोकस की कमी होती है। आवाज़ या दृश्य उत्तेजना जैसी अप्रासंगिक बाहरी उत्तेजनाओं के कारण व्यक्ति आसानी से विचलित हो सकता है। वे आसानी से ऊब जाते हैं। लंबे समय तक एक गतिविधि पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम नहीं होने के कारण वे उस कार्य को छोड़कर दूसरा कार्य करने में लग सकते हैं।

अतिसक्रिय और आवेगशील एडीएचडी- आवेगशीलता और अतिसक्रियता इस प्रकार के एडीएचडी की पहचान हैं। इसमें अटेन्‍शन यानी ध्यान देने का मुद्दा मुख्य समस्या नहीं हो सकते हैं।

एक और प्रकार है एडीएचडी कम्‍बाइन्‍ड- इस प्रकार के एडीएचडी में व्‍यक्ति के अंदर अतिसक्रियता/आवेग और असावधानी पायी जाती है।

लक्षण

सावनी बताती हैं कि चूंकि वयस्कों में एडीएचडी पर बहुत शोध नहीं हुए हैं इसलिए लक्षणों की पहचान करना अधिक कठिन हो जाता है। एडीएचडी एक विकासात्मक विकार है। इसलिए यह पहले बचपन में और फिर वयस्कता में दिखाई देगा। वह कहती हैं कि एडीएचडी के कुछ लक्षण बच्‍चों-किशोरों और वयस्कों में समान हो सकते हैं जैसे कि बच्चों और किशोरों में देखे जाते हैं, असावधानी, आवेग और अति सक्रियता, वयस्कों में अलग तरह से मौजूद हो सकते हैं। वयस्कता में सक्रियता कम हो सकती है, लेकिन असावधानी बहुत ज्‍यादा  हो सकती है।

एडीएचडी से प्रभावित व्‍यक्ति में असावधानी, आवेग और परिवर्तनशील मात्रा में सक्रियता लम्‍बे समय से होती है, लेकिन चूंकि ये सभी लक्षण सामान्य मानवीय लक्षण हैं, इसलिए एडीएचडी की डायग्‍नोसिस केवल इन सामान्य मानव व्यवहारों की उपस्थिति के आधार पर नहीं की जाती है, बल्कि इन व्‍यवहारों की तीव्रता कितनी है, इससे निर्धारित किया जाता है। एडीएचडी वाले लोगों में ये सामान्य मानवीय विशेषताएं चरम सीमा तक होती हैं, और उन्हें आसानी से नियंत्रित करने की क्षमता कम होती है। एडीएचडी वाले वयस्कों में आमतौर पर देखे जाने वाले लक्षणों की सूची इस प्रकार है:

1.ध्यान केंद्रित करने और केंद्रित रहने में परेशानी होना

2.अव्यवस्था और विस्मृति

3.आवेग

4.भावनात्मक कठिनाइयाँ

5.अतिसक्रियता या बेचैनी

6.लापरवाही

7.किसी चीज को विस्‍तार से समझने के लिए गंभीरता का अभाव

8.प्राथमिकता देने या ध्यान केंद्रित करने में असमर्थता

9.अपनी बारी का इंतजार किये बिना बोलना और दूसरों को बीच में रोकना

10.चुप रहने में असमर्थता

11.मिजाज

12.चिड़चिड़ापन

13.त्वरित टेंपर

14.तनाव को संभालने में असमर्थता

15.अत्यंत अधीर

16.खतरनाक ड्राइविंग जैसा जोखिम लेने वाला व्यवहार। व्यक्तिगत सुरक्षा को महत्वपूर्ण नहीं मान सकते।

सावनी ने बताया कि एडीएचडी की रोकथाम बचपन से ही शुरू होनी चाहिए ताकि इसे वयस्क होने तक जारी रहने से रोका जा सके। एडीएचडी से जुड़ी भावनात्मक, सामाजिक और शैक्षणिक कठिनाइयों जैसे हानिकारक, नकारात्मक, दीर्घकालिक परिणामों को रोकने के लिए एडीएचडी की रोकथाम भी महत्वपूर्ण है।

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