– शहरी के साथ ग्रामीण इलाकों में भी पहुंच चुकीं मानसिक बीमारियों को दूर करने के लिए केजीएमयू का सुझाव
– मनोचिकित्सा विभाग के किये गये सर्वेक्षण में पता चली हैं चौंकाने वाली जानकारियां
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। सामान्य स्वास्थ्य सेवाओं से किसी भी जुड़े हेल्थ वर्कर, आशा, आंगनवाड़ी कार्यकत्रियों को भी सामान्य मानसिक बीमारियों जैसे उलझन, नशे की बीमारी, अवसार जैसे मानसिक रोगों की पहचान करने का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये, जिससे कि वे मानसिक रोगों के लक्षणों को पहचान कर लोगों को उपचार के लिए उचित चिकित्सक के पास जाने की सलाह दे सकें।
यह बात गुरुवार को किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के मनोचिकित्सा विभाग द्वारा उत्तर प्रदेश की सामुदायिक प्रतिनिधि जनसंख्या में तनाव एवं तनाव से मुकाबला विषय पर हुए सर्वेक्षण की प्रसार कार्यशाला में विभागाध्यक्ष प्रो पीके दलाल ने अपने सम्बोधन में कही। इस कार्यशाल में विभाग द्वारा डॉ दलाल ने नेतृत्व में डॉ सुजीत कुमार कर एवं डॉ एसके सिंह के सहयोग से किये गये सर्वेक्षण के आंकड़ों की जानकारी देते हुए इससे निपटने पर विचार किया गया।
डॉ दलाल ने बताया कि तनाव, अवसाद, घबराहट जैसे लक्षणों के बारे में इन आशा, आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को प्रशिक्षण जिलों में मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत नियुक्त किये गये साइक्राइटिस्ट, साइकोलॉजिस्ट और उनकी टीम देगी। सरकार को यह सुझाव दिया जायेगा कि हेल्थ वर्कर, आशा और आंगनबाड़ी कार्यकत्री घरों का दौरा करके टीकाकरण जैसे अंदाज में यह जानकारी लेंगी कि उनके घर में कोई उलझन, नशे की बीमारी या अवसाद के लक्षणों का शिकार तो नहीं है। इसके बाद वे ऐसे मरीजों को जिला मानसिक स्वास्थ्य इकाई पर भेजने की सलाह दें।
सर्वेक्षण रिपोर्ट के बारे में बताते हुए डॉ पीके दलाल ने कहा कि लोगों को तनाव क्यों है, इसका कारण क्या है और इस प्रकार के तनाव से बचने के लिए लोग क्या उपाय करते हैं यह पता लगाने के लिए वर्ष 2017 से 2019 के बीच एक और सर्वेक्षण करवाया गया। उन्होंने बताया कि प्रदेश के चार जिलों (झांसी, महाराजगंज, लखीमपुर-खीरी एवं मुजफ्फर नगर) के सभी सामाजिक एवं आर्थिक क्षेत्रों से जुड़े 12080 (बारह हजार अस्सी) लोगों को इस सर्वेक्षण में शामिल किया गया और उनकी राय ली गई। उन्होंने इस सर्वेक्षण का उद्देश्य 13 वर्ष से लेकर 75 वर्ष आयु तक की सामुदायिक आबादी में तनाव, तनाव से मुकाबला करने की क्षमता, सामाजिक सहायता एवं सहयोग, अवसाद और इंटरनेट की लत (सोशल मीडिया की लत) का अध्ययन करना था। उन्होंने बताया कि इन कारणों के अलावा विभिन्न जीवन शैली संबंधित कारकों (नशे का प्रयोग, मनोरंजन के साधन आदि) को भी मापा गया। इसके साथ ही उन्होंने जानकारी दी कि यह सर्वेक्षण यू0पी0 हेल्थ सिस्टम स्ट्रेंथनिंग प्रोजेक्ट द्वारा समर्थित था और विश्व स्वास्थ्य संगठन के माध्यम से सर्वेक्षण की रिपोर्ट राज्य सरकार के समक्ष पेश की जाएगी।
डॉ पीके दलाल ने सर्वेक्षण के बाद आए चौंकाने वाले परिणामों के बारे में जानकारी दी और बताया कि पिछले एक वर्ष के दौरान 90 फीसदी से अधिक व्यक्तियों ने तनाव का अनुभव किया जिसमें आर्थिक परेशानी तनाव का मुख्य कारण रही। इसके साथ ही किशोरों में पढ़ाई को लेकर तनाव सबसे ज्यादा पाया गया। इसके साथ ही इस सर्वे में यह बात भी सामने आई कि तनाव का सामना करने वाले 90 फीसदी व्यक्तियों में से अधिकांश तनाव से मुकाबला करने में सक्षम थे। डॉ पीके दलाल ने बताया कि कम सामाजिक सहायता, अवसाद और दिनचर्या में असंतुष्ट व्यक्तियों द्वारा अधिक तनाव अनुभव किया गया तथा किशोरों एवं शिक्षित लोगों द्वारा अधिक मात्रा में सामाजिक सहायता का अनुभव किया गया।
इस अवसर पर केजीएमयू मनोचिकित्सा विभाग के डॉ सुजीत कुमार कर ने बताया कि समुदाय में नशीले पदार्थो का सेवन 27.6 फीसदी, चबाया जाने वाला तंबाकू 10.6 फीसदी, बीड़ी-सिगरेट 10.3 प्रतिशत, शराब 0.6 फीसदी भांग अथवा उसके प्रकार, 0.1 फीसदी अफीम ओपिओइड अधिक मात्रा में पाया गया। डॉ सुजीत कुमार कर ने बताया कि एक तिहाई से भी कम लोग खाली समय में शारीरिक गतिविधियों में लिप्त रहते हैं, ऐसे में जीवन शैली से संबंधित विकारों का खतरा बढ़ सकता है।
यह भी देखेंं- मानसिक रोगों का इलाज करने के लिए केजीएमयू दे रहा चिकित्सकों को विशेष प्रशिक्षण
अध्ययन में पाया गया कि हर पांचवां व्यक्ति लम्बे समय से चली आ रही किसी न किसी बीमारी से ग्रस्त है, इनमें ज्यादातर को उच्च रक्तचाप या खून की कमी की शिकायत है। सर्वेक्षण में पाया गया कि इंटरनेट के उपयोग का सबसे आम कारण सोशल मीडिया का उपयोग है। प्रति 10 में से एक व्यक्ति इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का अत्यधिक गैर पेशेवर तरीके यानी प्रतिदिन तीन घंटे से ज्यादा उपयोग करता है। इंटरनेट का प्रयोग करने वाले हर छह में से एक व्यक्ति को सोशल मीडिया विकार होने की संभावना हो सकती है। सोशल मीडिया विकार उन व्यक्तियों में ज्यादा पाया गया जो मध्यम स्तर के तनाव का अनुभव करते हैं और अपनी दैनिक गतिविधियों से संतुष्ट नहीं रहते। शिक्षित, अविवाहित और उच्च आय वर्ग में ज्यादातर लोगों में दैनिक गतिविधियों को लेकर संतुष्टि देखी गयी।
यह भी पढ़ें- चौंकाने वाले आंकड़े : 90 प्रतिशत से ज्यादा लोग तनाव में जी रहे
केवल एक चौथाई लोगों को तनाव और संबंधित विकारों के लिए स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं की उपलब्धता के बारे में पता था। इस मौके पर एक स्मारिका का भी विमोचन किया गया। कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के मानसिक रोग प्राधिकरण के नोडल ऑफीसर डॉ सुनील पांडेय, केजीएमयू के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ एसएन संखवार, डॉ जीपी सिंह सहित मानसिक रोग विभाग के सभी शिक्षक, कर्मचारी मौजूद थे।