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चिकित्सकों के साथ ही नर्स, पैरामेडिक्स, स्टूडेंट्स को भी दी जायेगी स्पेशल ट्रॉमा ट्रेनिंग

-भारत के साथ ही अमेरिका, फिलीपीन्स, इंग्लैण्ड, बांग्लादेश और श्रीलंका के 11 इंटरनेशनल फैकल्टी आ रहे हैं प्रशिक्षण देने

-इंडियन सोसाइटी ऑफ ट्रॉमा एंड एक्यूट केयर का तीन दिवसीय वार्षिक सम्मेलन ‘ट्रॉमा 2024’ 8 नवम्बर से

सेहत टाइम्स

लखनऊ। आगामी 8 से 10 नवम्बर तक आयोजित किये जाने वाला ‘ट्रॉमा 2024’ सम्मेलन एक प्रमुख शैक्षणिक मील का पत्थर साबित होगा क्योंकि पीएचसी-सीएचसी से लेकर सभी अस्पतालों में दुर्घटना में घायल होकर इमरजेंसी में पहुंचे व्यक्ति को जल्दी से जल्दी शुुरुआती प्रथम गोल्डन आवर में इलाज मिले, इसके लिए इमरजेंसी ट्रॉमा में ड्यूटी करने वाले सिर्फ चिकित्सक ही नहीं, नर्स सहित देखभाल करने वाले अन्य पैरामेडिक्स पेशेवरों को भी देश-विदेश के नामी ट्रॉमा प्रशिक्षकों द्वारा विशेष देखरेख का प्रशिक्षण दिया जायेगा, क्योंकि घायल अवस्था में आये व्यक्ति का सर्वप्रथम सामना नर्स, पैरामेडिक्स से होता है, ऐसे में इनको विशेष देखरेख का प्रशिक्षण दिये जाने से ज्यादा से ज्यादा लोगों की मौत को बचाना संभव हो सकेगा। ज्ञात हो अकेले भारत में प्रतिवर्ष डेढ़ लाख लोगों की मौत सिर्फ सड़क दुर्घटना में हो जाती है, और अगर ट्रॉमा की दूसरी दुर्घटनाओं को मिला लिया जाये तो करीब तीन से साढ़े तीन लाख लोगों की मौत प्रतिवर्ष हो जाती है, जो कि एक बड़ी संख्या है।

यह जानकारी ट्रॉमा सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो संदीप तिवारी ने किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के ट्रॉमा सर्जरी विभाग द्वारा अटल बिहारी वाजपेयी कन्वेंशन सेंटर में आयोजित किये जा रहे इंडियन सोसाइटी ऑफ ट्रॉमा एंड एक्यूट केयर (आईएसटीएसी) के 14वें वार्षिक सम्मेलन और आईएसटीएसी के यूपी चैप्टर का दूसरे वार्षिक सम्मेलन ट्रॉमा 2024 के बारे में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में दी। उन्होंने बताया कि सम्मेलन का उद्घाटन 9 नवंबर को सुबह 09ः30 बजे अटल बिहारी वाजपेयी कन्वेंशन सेंटर, लखनऊ में होगा। उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि ब्रजेश पाठक, उप मुख्यमंत्री और कैबिनेट मंत्री, चिकित्सा शिक्षा, चिकित्सा और स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, उत्तर प्रदेश सरकार हैं और विशिष्ट अतिथि मयंकेश्वर शरण सिंह, राज्य मंत्री चिकित्सा शिक्षा, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, मातृ एवं शिशु कल्याण हैं। प्रेस कॉन्फ्रेंस में सम्मेलन के आयोजन अध्यक्ष डॉ संदीप तिवारी के साथ ही सह आयोजन अध्यक्ष प्रो समीर मिश्रा, आयोजन सचिव डॉ अनीता सिंह व डॉ यादवेन्द्र धीर, डॉ वैभव जायसवाल भी उपस्थित रहे।

डॉ तिवारी ने बताया कि इस सम्मेलन में अमेरिका, फिलीपीन्स, इंग्लैण्ड, बांग्लादेश और श्रीलंका के 11 इंटरनेशनल फैकल्टी आ रहे हैं। सम्मेलन में प्रशिक्षण देने के लिए देश-विदेश के नामी ट्रॉमा प्रशिक्षकों में प्रसिद्ध संकाय सदस्य जैसे डॉ. मयूर नारायण (यूएसए), डॉ. ओलिविया (यूएसए), डॉ. डैन व्हाइटली (यूएसए), और डॉ. एम.सी. मिश्रा (भारत), प्रोफेसर सुषमा सागर (एम्स, नई दिल्ली), प्रोफेसर सुबोध कुमार (एम्स, नई दिल्ली), प्रोफेसर अमित गुप्ता (एम्स, नई दिल्ली) व्याख्यान प्रस्तुत करेंगे, अंतर्दृष्टि साझा करेंगे और कार्यशालाओं में भाग लेंगे।

प्रो तिवारी ने बताया कि इस सम्मेलन में पूरे देश से 450 से 500 चिकित्सकों के शामिल होने का अनुमान है। ये सभी अपने-अपने विचारों का आदान-प्रदान करेंगे, इसके बाद इस सम्मेलन की रिपोर्ट प्रदेश सरकार को सौंपी जायेगी, ताकि ट्रॉमा प्रबंधन सुधार के लिए क्या-क्या कदम उठाये जाने की जरूरत है, इस बारे में सरकार आवश्यक कदम उठा सके। उन्होंने बताया कि सम्मेलन की एक और खास बात यह है कि इसमें एमबीबीएस और बीडीएस कर रहे छात्रों को भी हैंड्स ऑन प्रशिक्षण दिया जायेगा। इन मेडिकल और डेंटल स्टूडेंट्स को जो प्रशिक्षण दिये जायेंगे उनमें – बुनियादी आघात प्रबंधन और वेंटिलेटरी समर्थन – रक्तस्राव नियंत्रण और स्थिरीकरण तकनीक – आघात के रोगियों के लिए स्थिरीकरण- जीवन-घातक चोटों को पहचानना और उन पर प्रतिक्रिया देना और आघात टीमों के भीतर प्रभावी संचार और समन्वय शामिल है।

वीडियो न बनायें, बहता रक्त रोकें

प्रो तिवारी ने कहा ​कि कई बार जब रोड पर एक्सीडेंट हो जाता है तो लोग फोटो खींचने, वीडियो बनाने लगते हैं, मेरी आम जनता से अपील है कि ऐसी स्थिति देखें तो सबसे पहले घायल व्यक्ति का खून बहना बंद करने की कोशिश करें, इसके लिए पांच मिनट तक खून निकलने वाले स्थान को दबाये रखें, अथवा रूमाल, अंगोछा आदि किसी भी कपड़े से उस घाव को बांध दें। ऐसा करके आप बहुत से लोगों की जान बचाने में सक्षम होंगे। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य है कि ट्रॉमा को लोग बीमारी नहीं मानते है, हार्ट अटैक, डायबिटीज जैसी बीमारियों को तो मानते हैं लेकिन मेरी अपील है ​कि ट्रॉमा एक ऐसी बीमारी है जो पूरे विश्व में होने वाली मौतों का चौथा कारण है, जबकि आमजन को ट्रॉमा प्रबंधन की ट्रेनिंग देकर 80 प्रतिशत मौतों को रोका जा सकता है।

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