-विभाग के स्थापना दिवस पर पहुंचे प्रमुख सचिव ने दिया पीपीपी मॉडल पर मशीन लगाने का सुझाव
सेहत टाइम्स
लखनऊ। संजय गांधी पीजीआई के न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग को निकट भविष्य में नया पेट स्कैनर मिलने की संभावना है। दरअसल पीपीपी मॉडल पर पेट स्कैनर लगाने का सुझाव विभाग के 35वें स्थापना दिवस के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा पार्थसारथी सेन शर्मा ने अपने भाषण में दिया। निदेशक डॉ आरके धीमन की अध्यक्षता में 21 सितम्बर को आयोजित स्थापना दिवस समारोह में न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग की सराहना करते हुए पार्थसारथी सेन शर्मा ने मरीज की जांच के लिए वेटिंग टाइम कम करने की जरूरत बताते हुए विभाग में पीपीपी मॉडल पर नया पेट स्कैनर लगाने का सुझाव दिया है।
टेलीमेडिसिन विभाग के पूर्व इंचार्ज डॉ एसके मिश्रा ने टेलीमेडिसिन सेवाओं को न्यूक्लियर मेडिसिन और अन्य जनस्वास्थ्य में इस्तेमाल को कैसे बढ़ावा दिया जा सकता है, पर स्थापना व्याख्यान दिया।
मुख्यमंत्री के मुख्य सलाहकार अवनीश अवस्थी ने यूपी में मेडिकल हेल्थ सेक्टर को बढ़ावा देने की सरकार की प्रतिबद्धता पर ज़ोर दिया और न्यूक्लियर मेडिसिन और हेल्थ सेक्टर में शोध, पेटेंट और पीपीपी को बढ़ावा देने पर ज़ोर दिया। सीएम के सलाहकार जीएन सिंह ने बायोफार्मा सेक्टर की तरह न्यूक्लियर मेडिसिन ओषधि की उन्नति को बायोफार्मा सेक्टर के विस्तार में सम्मिलित करने और इस क्षेत्र में प्रदेश में पैरामेडिकल स्टाफ ट्रेनिंग की महत्वपूर्ण भूमिका पर ज़ोर देते हुए प्रदेश की प्रगति में इसे शामिल करने की आवश्यकता बतायी।
न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग के हेड डॉ संजय गंभीर ने आये हुए अतिथियों का स्वागत करते हुए विभाग के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग की शुरुआत वर्ष 1989 में दो प्लानर गामा कैमरों, हेडटोम; सिर के लिए एक समर्पित SPECT प्रणाली और एक डुअल फोटॉन एक्स-रे बोन डेंसिटोमीटर के साथ हुई थी। यह उस समय इस क्षेत्र का एकमात्र न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग था और यूपी और पड़ोसी राज्यों के लोगों को नैदानिक के साथ-साथ चिकित्सीय सेवाएं भी प्रदान करता था। विभाग उचित लागत पर विभिन्न रेडियो आइसोटोप का उपयोग करके प्रति वर्ष दस हजार से अधिक नैदानिक और चिकित्सीय प्रक्रियाएं करता है। तब से, विभाग ने इस क्षेत्र में विकास के साथ तालमेल बनाए रखा है और प्रगति जारी रखी है। विभाग की उपलब्धियों की जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि विभाग SPECT-CT की नई तकनीक को शामिल करने के लिए आगे बढ़ा और ऐसी तीन प्रणालियों का अधिग्रहण किया। सामान्य ऑन्कोलॉजी और न्यूरो-एंडोक्राइन ट्यूमर के लिए PET-CT इमेजिंग को जोड़ने के बाद, विभाग देश के अग्रणी केंद्रों में गिना जाता है जो रोगियों के लिए ऐसी उन्नत इमेजिंग सेवाएं प्रदान करते हैं। साइक्लोट्रॉन सुविधा की स्थापना से रोगियों की संख्या में वृद्धि हुई है और साथ ही विभिन्न रोगों के निदान के लिए 11सी-मेथियोनीन, 11सी-कोलाइन, 13एन-एनएच3, 18एफ-एफईएस, गा-68 आधारित पेप्टाइड्स जैसे नए रेडियो लेबल वाले ट्रेसर पेश किए गए हैं।
कॉपर-64 (64Cu), जिरकोनियम-89 (89Zr), गैलियम-68 (68Ga) और 124I-आयोडीन रेडियो-आइसोटोप के उत्पादन के साथ हम देश में पहले स्थान पर हैं और दुनिया भर में बहुत कम केंद्रों में ऐसी सुविधा है। उत्पादित Cu-64 का उपयोग निदान के लिए किया गया था और इस आइसोटोप की चिकित्सीय रेडियो आइसोटोप के रूप में उपयोग की क्षमता के कारण इसकी चिकित्सीय क्षमता का जल्द ही पता लगाया जाएगा।
उन्होंने बताया कि इन-हाउस रेडियो-फार्मास्युटिकल उत्पादन के चलते हमने लिवर कैंसर के रोगियों के लिए महंगी आयातित थैरेपी के स्थान पर किफायती उपचार थैरेपी I-131 Lipidol therapeutic therapy विकसित कर चुके हैं। इस कदम से इस थेरेपी की लागत 6 लाख से घटकर 40 हजार प्रति उपचार हो जाने की संभावना है।
उन्होंने बताया कि नए दस बिस्तरों वाले रेडियोधर्मी आइसोलेशन वार्ड के माध्यम से रोगी सेवाओं में वृद्धि ने कार्सिनोमा थायरॉयड और न्यूरो-एंडोक्राइन ट्यूमर के लिए भर्ती की प्रतीक्षा अवधि को कम कर दिया है, जिन्हें 1-131 और Lu-177-DOTA थेरेपी जैसे विशेष रेडियोन्यूक्लाइड थेरेपी की आवश्यकता है। ये विशेष उपचार हैं और वर्तमान में इनके लिए प्रतीक्षा समय 3 महीने या उससे अधिक है क्योंकि SGPGIMS उत्तर प्रदेश और पूर्वी भारत में इन उपचारों का प्रमुख केंद्र है। कोरिलेटिव इमेजिंग और रेडियोन्यूक्लाइड थेरेपी में नए PDCC पाठ्यक्रम की शुरुआत और न्यूक्लियर मेडिसिन टेक्नोलॉजीज में मास्टर के पांच बैचों के उत्तीर्ण होने से राज्य के मानव संसाधन में वृद्धि हुई है। रेडियो-फार्मास्युटिकल उत्पादन और प्रशिक्षित जनशक्ति में अग्रणी होने के लिए दो साल पहले रेडियो-फार्मेसी और आणविक इमेजिंग में एम.एससी. को जोड़ा गया था। रोगी देखभाल के अलावा विभाग ने दुनिया भर के विभिन्न शोध संस्थानों जैसे आईआईटी-के, सीडीआरआई-लखनऊ, एएमयू-अलीगढ़, अल्बर्टा विश्वविद्यालय, कनाडा के साथ मिलकर अनुसंधान और विकास करने के लिए अपने प्रयास किए और आईएईए-वियना, डीएसटी-नई दिल्ली, आईसीएमआर-नई दिल्ली, एमएचआरडी-नई दिल्ली, डीबीटी-नई दिल्ली जैसी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय वित्त पोषण एजेंसियों से अनुदान प्राप्त किया।