प्रांतीय चिकित्सा संवर्ग के चिकित्सकों ने सुनाया राज्यपाल के सामने अपना दुखड़ा
लखनऊ। क्या आप जानते हैं कि उत्तर प्रदेश में मरीजों को देखने के लिए संविदा पर रखे जा रहे चिकित्सकों का वेतन ढाई लाख रुपये प्रतिमाह है, जो मुख्य सचिव के वेतन से भी ज्यादा है। संविदा पर रखे जा रहे चिकित्सकों का दायित्व सिर्फ इतना है कि वे ओपीडी में आने वाले मरीजों को देखने की आठ घंटे की ड्यूटी करेंगे बाकी कुछ नहीं, यही नहीं उन्हें निजी प्रैक्टिस करने के लिए मरीजों का बढ़िया ठिकाना मिल जाता है। संविदा वाले चिकित्सकों की न तो पोस्टमार्टम में ड्यूटी लगती है और न ही इमरजेंसी में, जबकि इसके विपरीत नियमित नियुक्ति वाले चिकित्सक को सब कुछ करना पड़ता है। निजी प्रैक्टिस करने की भी छूट नहीं है।
जाहिर है नियमित चिकित्सकों को तो यह सब नहीं अच्छा लगेगा। इसीलिए आज प्रांतीय चिकित्सा सेवा संघ के महामंत्री डॉ अमित सिंह के नेतृत्व में चिकित्सकों के एक प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल राम नाईक के सामने अपनी इस पीड़ा के साथ ही अन्य समस्यायें तथा संवर्ग की बेहतरी के लिए विभिन्न उपायों पर विस्तार से चर्चा की। अच्छी बात यह है कि राज्यपाल ने पीड़ा को गंभीरता से सुनकर सरकार से बात करने का आश्वासन दिया है, अब देखिये आगे क्या होता है।
डॉ अमित सिंह ने दुरूह परिस्थितियों में भी अपना 100 प्रतिशत से ज्यादा कार्य करने के लिए संवर्ग के चिकित्सकों की सराहना करते हुये अन्य राज्यों एवं केन्द्र के समान विभिन्न भत्तों पर सरकार द्वारा अनावश्यक शिथिलता बरतने एवं अभी तक ना लागू करने पर चिकित्सकों के धैर्य का बान्ध टूटने के कगार पर पहुचने की बात कही, उन्होने यह भी बताया कि किन्ही अज्ञात कारणों से जहां 24 घण्टे जी-तोड़ कार्य करने वाले संवर्ग के चिकित्सकों के जायज अधिकार देने में हीला-हवाली की जा रही है वहीं एनएचएम के द्वारा बिडिंग के माध्यम से मुख्य सचिव के प्रतिमाह के वेतन से भी अधिक रुपये ढाई लाख प्रतिमाह संविदा पर विशेषज्ञ चिकित्सक रखे जा रहे हैं, वो भी मात्र आठ घण्टें कार्य करने के लिए।
उन्होंने कहा कि ये चिकित्सक संवर्ग के चिकित्सकों की उपेक्षा करके इस तरीके के कृत्य सरकारी सेवाओं को पूर्णतः समाप्त करने में अहम रोल अदा करेगें, जिसका सीधा-सीधा नुकसान आम-जनमानस एवं गरीब जनता का होगा। शासन द्वारा चिकित्सकों के लिए प्रदत्त भत्तों पर अभी तक कोई निर्णय ना होने तथा चिकित्सकों के लिए स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति का विकल्प भी समाप्त कर देने से प्रदेश के चिकित्सक अपने आप को बन्धुआ मजदूर की भांति महसूस कर रहे हैं। ऐसे में किसी भी अप्रिय निर्णय की स्थिति में आम-जनमानस को होने वाली परेशानी को लेकर संघ व्यथित एवं चितिंत है। संवर्ग के चिकित्सक शनैः शनैः आन्दोलन के लिेए अग्रसारित हो रहे है एवं चिकित्सकों में घोर निराशा तथा कुण्ठा व्याप्त है।
उपाध्यक्ष डॉ विकासेन्दु अग्रवाल ने बताया कि अन्य राज्यों एवं केन्द्र की तुलना में उ0प्र0 के चिकित्सक सुविधा विहीन माहौल में भी कम वेतन तथा भत्तों के बिना कई गुना अधिक कार्य करने को विवंश हैं। जहां महाराष्ट्र राज्य में वहां के चिकित्सको को मूल वेतन का 35 प्रतिशत नॉन प्रैक्टिसिंग वेतन दिया जा रहा है, वहीं उ0प्र0 के चिकित्सकों को सातवें वेतनमान के अनुसार नान प्रैक्टिसिंग अलाउंस न मिलने से प्रतिमाह हजारों रूपये का नुकसान हो रहा है जिससे चिकित्सकों में हताशा और रोष व्याप्त हो रहा है।
पूर्व महासचिव डॉ सचिन वैश्य ने बताया कि, अन्य राज्यों में विशेषज्ञ चिकित्सकों को बढ़े हुये वेतन के साथ-साथ अन्य आकर्षक भत्ते भी दिये जा रहे हैं लेकिन उ0प्र0 में चिकित्सकों के हितों की लगातार अनदेखी की जा रही है, जो एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है एवं नित प्रतिदिन चिकित्सकों तथा संवर्ग के लिये किये जा रहे अव्यावहारिक प्रयोग संवर्ग के लिये चिन्तनीय है।
सम्पादक डॉ बीपी सिंह ने बताया कि मुख्य सचिव के अनेकों बार जारी किये गये शासनादेशों के क्रम में जहां प्रदेश के सभी अन्य विभागों में प्रोन्नति का कार्य समाप्त हो गया है वही स्वास्थ्य विभाग में शासन स्तर पर बैठे जिम्मेदारों के कान पर जूं तक नही रेंग रही है यह स्थिति वर्तमान में शासन की कार्यप्रणाली और मंशा पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह है।
प्रतिनिधिमण्डल में महासचिव डॉ अमित सिंह, उपाध्यकक्ष डॉ विकासेन्दु अग्रवाल सम्पादक, डॉ बीपी सिंह, पूर्व महासचिव डॉ सचिन वैश्य, उपाध्यक्ष महिला डॉ निरूपमा सिंह, उपाध्यक्ष डॉ भावतोष शंखधर, अपर महामंत्री डॉ अनिल त्रिपाठी के अतिरिक्त संयुक्त निदेशक डॉ डीके सिंह इत्यादि भी मौजूद रहे।