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कड़े कानून के अभाव में दशकों से चल रहा है नकली दवा के कारोबार का खेल

-दवा व्यापार मण्डल (गिरिराज), लखनऊ ने की कफ सिरप से हुई मौतों के सौदागरों को कड़ी से कड़ी सजा की मांग

सुरेश कुमार

सेहत टाइम्स

लखनऊ। दवा व्यापार मण्डल (गिरिराज), लखनऊ, सम्बद्ध इकाई- लखनऊ व्यापार मण्डल और सीडीएफयूपी ने हाल ही में मिलावटी कफ सिरप के सेवन के कारण विभिन्न राज्यों में हुई बच्चों की आकस्मिक मृत्यु पर दुख व्यक्त करते हुए कहा है कि यह घटना भारत के ड्रग्स क्वालिटी रेग्युलेटरी सिस्टम में गंभीर खामियों को उजागर करती है, इस पर गहन ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है। इसके लिए कड़े कानून लागू करने की आवश्यकता है, जिससे कि मानवता के दुश्मनों की इस कुकृत्य को करने से पहले रुह कांप जाये।

दवा व्यापार मंडल (गिरिराज) के प्रवक्ता सुरेश कुमार ने यह जानकारी देते हुए बताया ​कि इस प्रकार की दुखद घटनाएं घटित होने के बाद सरकारी कदम उठाए जरूर जाते हैं, लेकिन बार-बार ऐसी घटनाएं होने से स्पष्ट है कि देश में कड़े कानून लागू नहीं हैं। WHO और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी इस पर चिंता जता चुकी हैं।

उन्होंने बताया कि राजस्थान में उत्पन्न कफ सिरप से तीन बच्चों की मृत्यु हुई, और इसी बैच के सिरप से देश के अलग-अलग हिस्सों में कई बीमारियों के मामले सामने आए। तत्पश्चात, मध्य प्रदेश में किडनी की बीमारी से 20 से भी ज्यादा बच्चों की मृत्यु हो गई थी। दोनों मामलों में, सिरप में औद्योगिक सॉल्वेंट डाई-एथिल ग्लाइकोल (DEG) की असामान्य रूप से उच्च मात्रा पाई गई थी। भारत में कफ सिरप की गुणवत्ता की समस्या कोई नई बात नहीं है। पिछले कई दशकों में अलग-अलग बार DEG के कारण बच्चों की मौतें हो चुकी हैं, जैसे 1998 में 36 बच्चों की मौत और 2019 में जम्मू में 11 शिशुओं की मौत। भारत से निर्यात हुए दवाओं के कारण गाम्बिया और उज्बेकिस्तान जैसे देशों में भी मौतें हुई हैं।

उन्होंने बताया कि CDSCO ने स्वीकार किया है कि कम-से-कम तीन कफ सिरप में DEG पाया गया: Coldrif, Respisfre TR और ReLife। कुछ सिरप में तो DEG की मात्रा 48% तक पाई गई। भारत सरकार ने 2022 से निर्यात किए जाने वाले ड्रग्स में गुणवत्ता की जांच अनिवार्य की है, पर malheureusement यह नियम देश में बिकने वाली दवाओं पर लागू नहीं होता। भारतीय कंपनियों द्वारा गुणवत्ता मानकों का उल्लंघन सामान्य बात बन चुकी है, और सख्त जांच के अभाव में स्प्युरियस एवं मिलावटी दवाइयाँ खुलेआम बाजार में बिकती हैं।

सुरेश कुमार ने कहा कि पिछले दस वर्षों में 3200 से अधिक दवाइयों को NSQ और 267 दवाइयों को मिलावटी घोषित किया गया है। हमारी मांग है कि ऐसे निर्माताओं के लाइसेंस तुरंत निरस्त होने चाहिए और कड़ी सजा दी जानी चाहिए। सभी दवाइयों की आपूर्ति गुणवत्ता और सुरक्षा की विस्तृत जांच के बाद ही की जानी चाहिए। लाइसेंसिंग एवं गुणवत्ता नियंत्रण का कठोर ढांचा जरूरी है ताकि मिलावटी दवाएं लोगों की जिंदगी के लिए खतरा न बनें।

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