-केजीएमयू के प्लास्टिक सर्जन प्रो.दिव्य नारायण उपाध्याय ने फिर किया ‘कुछ हट के’
सेहत टाइम्स
लखनऊ। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के प्रोफेसर डॉ दिव्य नारायण उपाध्याय ने अपनी लेखनी के कौशल को एक और पुस्तक में जीवंत किया है। उन्होंने आदि शंकराचार्य पर आधारित अंग्रेजी में लिखी नयी पुस्तक ‘फाइंडिंग शंकरा’ ‘Finding Shankara’ में जिस प्रकार अपनी लेखन शैली को प्रस्तुत किया है वह यह दर्शाता है कि मानव शरीर को तराशने वाले हाथों में जब चाकू-कैंची की जगह कलम आती है तो ये हाथ उत्कृष्ट साहित्य भी तराश सकते हैं।

अपनी इस नयी पुस्तक के बारे में डॉ उपाध्याय ने बताया कि मुझे अपनी रोमांचक नई पुस्तक, “फाइंडिंग शंकरा” साझा करते हुए खुशी हो रही है। यह आदि शंकराचार्य की नाट्यकृत जीवनी, एक सम्मोहक कथा है जो भारत के महानतम आध्यात्मिक दूरदर्शी लोगों में से एक के जीवन और विरासत को जीवंत करती है।
उन्होंने बताया कि पवित्र यात्राओं, दार्शनिक बहसों और गहन आत्म-साक्षात्कार के क्षणों के माध्यम से, यह पुस्तक आदि शंकराचार्य के असाधारण जीवन का वर्णन करती है, जिन्होंने वेदांत को पुनर्जीवित किया, कर्मकांड को चुनौती दी और भारत की आध्यात्मिक पहचान को नया रूप दिया।
उन्होंने कहा कि संक्षेप शंकर दिग्विजय जैसे प्रामाणिक स्रोतों पर आधारित और 300 से अधिक फुटनोट्स और आठ अनुवादित स्तोत्रों से समृद्ध, यह कृति गहन शोध और आकर्षक कहानी कहने का मिश्रण है। इस पुस्तक की एक विशिष्ट विशेषता दक्षिणाम्नाय श्री शारदा पीठम द्वारा दस पर मान्यता की आधिकारिक मुहर लगना है।
उन्होंने बताया कि ‘फाइंडिंग शंकरा’ अकादमिक और काल्पनिक दुनिया के बीच की खाई को पाटती है, अंतर्दृष्टि और प्रेरणा दोनों प्रदान करती है। यह पाठकों को उनके बताए रास्ते पर चलने, उनके विचारों के अनुसार सोचने और अद्वैत वेदांत के शाश्वत ज्ञान को एक ऐसे तरीके से पुनः खोजने के लिए आमंत्रित करता है जो सुलभ और गहन रूप से मार्मिक दोनों हो। डॉ दिव्य ने पुस्तक को पढ़ने की अपील करते हुए कहा कि हम इस कृति, जो न केवल शंकराचार्य के असाधारण जीवन का उत्सव मनाती है, बल्कि पहचान, आध्यात्मिकता और एकता के चिरस्थायी प्रश्नों को भी प्रतिध्वनित करती है, पर आपके विचारों की प्रतीक्षा कर रहे हैं।


