-आत्महत्या की रोकथाम : एक साझा ज़िम्मेदारी

सेहत टाइम्स
लखनऊ। आत्महत्या सिर्फ़ जीवन ख़त्म करने का कदम नहीं है, बल्कि यह अक्सर लम्बे समय से चली आ रही पीड़ा, अकेलापन और अनसुनी मदद की पुकार का परिणाम होता है। ज़्यादातर लोग मौत नहीं चाहते, बल्कि वे उस असहनीय दर्द से निकलना चाहते हैं जिसमें वे फँसे हुए महसूस करते हैं। इसलिए रोकथाम का असली रास्ता है—उन्हें फिर से उम्मीद, जुड़ाव और जीवन का अर्थ दिलाना।
यह कहना है फेदर्स की रजिस्टर्ड क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट सावनी गुप्ता का। विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस के मौके पर ‘सेहत टाइम्स’ के साथ विशेष बातचीत में सावनी ने कहा कि आत्महत्या के चेतावनी संकेतों को पहचानना बहुत ज़रूरी है। लगातार उदासी, लोगों से दूरी बनाना, अचानक व्यवहार में बदलाव या यह महसूस कराना कि वे बोझ हैं—इन संकेतों को कभी नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। अक्सर एक सच्ची और संवेदनशील बातचीत किसी की ज़िंदगी बचा सकती है।
उन्होंने कहा कि लेकिन यह काम केवल मनोवैज्ञानिक या डॉक्टर का नहीं है। परिवार, शिक्षक, दोस्त, दफ़्तर और पूरा समाज—सबकी ज़िम्मेदारी है। मानसिक स्वास्थ्य पर खुलकर बात करना, कलंक और शर्म को कम करना और समय पर मदद उपलब्ध कराना ही मज़बूत सुरक्षा जाल तैयार करता है।
सबसे अहम बात यह है कि हर आँकड़े के पीछे एक इंसान होता है—किसी का बेटा, बेटी, दोस्त या साथी। उनकी ज़िंदगी की क़ीमत और संभावनाएँ हैं। अगर हम चुप्पी की जगह संवेदना दें और निराशा की जगह उम्मीद, तो हम कई कहानियों का अंत बदल सकते हैं।
संदेश
इस मौके पर लोगों को संदेश देते हुए सावनी ने कहा कि “आत्महत्या किसी कहानी का अंत नहीं है, बल्कि यह एक पुकार है—हमसे सुनने की, हाथ बढ़ाने की, और यह याद दिलाने की कि हर जीवन जीने योग्य है।”…“एक संवेदनशील बातचीत, एक हाथ बढ़ाना, एक पल की सुनवाई—किसी की ज़िंदगी बचा सकता है।
आत्महत्या रोकथाम सबकी ज़िम्मेदारी है।”…
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