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विटिलिगो : स्थायी उपचार के लिए कारणों की जड़ों पर प्रहार करना आवश्यक

-मन पर पहुंची चोट का इलाज करने पर हासिल हुए आश्चर्यचकित परिणाम

-विश्व विटिलिगो दिवस पर होम्योपैथिक चिकित्सकों से विशेष बातचीत

डॉ गौरांग गुप्ता और डॉ गिरीश गुप्ता

सेहत टाइम्स

लखनऊ। आज विश्व विटिलिगो दिवस (25 जून, 2025) है। विटिलिगो, जिसे साधारण भाषा मे सफेद दाग कहा जाता है, सिर्फ भारत की नहीं, विश्वव्यापी समस्या है। यह समस्या जितनी शारीरिक नहीं है, उससे ज्यादा सामाजिक है। अगर किसी को यह समस्या हो जाती है, तो हर व्यक्ति अपनी-अपनी सलाह देने लगता है, चूंकि पीडि़त मन में उठ रहे झंझावातों से इतना परेशान होता है, कि उसे जहां जो बता देता है, वहीं वह चला जाता है, ऐसे में अगर सही चिकित्सक तक पीडि़त पहुंचा तो ठीक है, वरना पीडि़त और परिजनों की चिंता का ग्राफ और बढ़ जाता है। विटिलिगो का होम्योपैथिक दवाओं में क्या इलाज है और यह कितना कारगर है, इस बारे में ‘सेहत टाइम्स’ ने यहां लखनऊ स्थित गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च (जीसीसीएचआर) के चीफ कन्सल्टेंट डॉ गिरीश गुप्ता और कन्सल्टेंट डॉ गौरांग गुप्ता से बात की।

डॉ गिरीश गुप्ता ने कहा कि मेलेनोसाइट्स सेल मेलानिन पिगमेंट बनाते हैं अगर यह पिगमेंट बनने में कमी आताी है या बनना बंद हो जाते हैं तो व्यक्ति विटिलिगो का शिकार हो जाता है। उन्होंने बताया कि पिगमेंट बनने में अवरोध दो कारणों से होता है ऑटो इम्यून या हार्मोनल सिस्टम। ऑटोइम्यून में कुछ अनजान कारणों से इम्यून डिस्टर्ब हो जाता है, स्टिम्युलेट हो जाता है और एंटीबॉडीज बनाने लगता है, ये एंटीबॉडीज शरीर के किसी भी अंग को हिट करते हैं, अगर एंटीबॉडीज ने मेलेनोसाइट्स सेल को हिट कर दिया तो मेलानिन पिगमेंट नहीं बनते हैं या कम बनते हैं। जब विटिलिगो हार्मोनल गड़बडी के चलते होता है तो इसके पीछे वजह होती है कि पिट्यूटरी ग्लैंड में मेलेनोसाइट्स स्टिम्युलेटिंग हॉर्मोन बनता है, यह अगर किसी कारण से बनना कम हो गया तो भी विटिलिगो हो जाता है।

उपचार से पूर्व और उपचार के बाद

मन:स्थिति से जुड़ा है यह रोग

जीसीसीएचआर के कन्सल्टेंट डॉ गौरांग गुप्ता (होम्योपैथी में साइकियाट्री से एमडी) ने बताया कि विटिलिगो होने के दोनों कारणों इम्यून सिस्टम और हार्मोन सिस्टम (पिट्यूटरी ग्लैंड) को कण्ट्रोल करता है ब्रेन और ब्रेन को कण्ट्रोल करता है माइंड यानि मन। ऐसे में सवाल यह उठता है कि किताबों में लिखा है unknown cause, जबकि यहां स्पष्ट है कि cause तो है, इस बात को 200 साल पहले होम्योपैथी ने एक्सप्लोर किया, क्योंकि होम्योपैथी का जो क्लासिकल प्रिंसिपल है, वह होलिस्टिक है यानि ट्रीट दि होल पर्सन, इसमें रोग के उपचार के लिए हम शारीरिक और मानसिक दोनों कारणों को लेते हैं। उन्होंने बताया कि विटिलिगो होने का कारण फिजिकल रीज़न से बहुत कम होता है, अधिकतर यह मेन्टल रीज़न से होता है, क्योंकि इम्यून सिस्टम डिस्टर्ब हो या हार्मोन सिस्टम सप्प्रेस हो, दोनों का कंट्रोल ब्रेन से होता है, ब्रेन को कंट्रोल करता है मन। इसीलिए भावनाएं, गुस्सा, इच्छा, स्वप्न, भ्रम, डर, भय जैसे कारण होते हैं जो माइंड के जरिये ब्रेन पर असर डालते हैं और ब्रेन के जरिये जो न्यूरोट्रांसमीटर बनते हैं, वे या तो इम्यून सिस्टम पर या पिट्यूटरी ग्लैंड पर हिट करते हैं।

स्थायी परिणाम के लिए स्थायी उपचार जरूरी

डॉ गिरीश गुप्ता ने बताया कि आजकल कई तरह की दवाएं बाजार में उपलब्ध हैं, जिनसे अस्थायी लाभ तो होता है लेकिन अगर इसका उपचार जड़ से न हो तो यह फिर से होने लगता है। उन्होंने बताया कि अस्थायी लाभ की बात करें तो इसमें प्रभावित जगह पर ऐसी दवा लगा दी जाती है कि उसमें पिगमेन्ट फिर से बनने लगे, ऐसी बहुत सी दवाएं बाजार में आती हैं, जिन्हें लगाकर धूप दिखा दी तो मेलानिन पिगमेंट बनने लगते हैं, लेकिन जैसे ही दवा लगाना बंद करेंगे फिर से सफ़ेद दाग बनने लगेंगे क्योंकि आप रोग के कारणों पर हिट नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि होम्योपैथी में भी जो डॉक्टर्स इस रोग के कारणों पर न जाकर ल्यूकोडर्मा की दवाएं देते हैं, उनसे भी अगर लाभ हुआ तो भी टेम्परेरी राहत मिलती है, यानी दवा खाते रहे तो ठीक, खाना बंद की तो रोग फिर उभर आता है। इसलिए स्थायी समाधान के लिए आवश्यक है कि रोग की जड़ों पर प्रहार वाला उपचार किया जाये।

डॉ गौरांग ने बताया कि मन से जुड़े कारणों जैसे डर, मानसिक आघात, किसी की मृत्यु का दुःख, वित्तीय हानि या लम्बे समय तक शोकाकुल रहना, कोर्ट केस हार जाना, तलाक, संतान की मृत्यु, डरावने सपने, अधूरी महत्वाकांक्षा जैसे कारण मन पर प्रभाव डालते हैं जिनसे केमिकल बनते हैं जो पिट्यूटरी ग्लैंड पर असर डालते हैं। ऐसे व्यक्ति के इलाज के लिए अगर मानसिक कारण दूर करने की दवा देंगे तो जो न्यूरोट्रांसमीटर बन रहे हैं, जो केमिकल बन रहे हैं, और इम्यून और पिट्यूटरी पर हिट कर रहे हैं, वे बनना बंद हो जायेंगे और डैमेज रुक जायेगा और फिर से मेलानिन पिगमेंट बनना शुरू हो जाते हैं।

डॉ गिरीश गुप्ता ने बताया कि विटिलिगो का सम्‍बन्‍ध मन यानी मानसिक सोच से होता है, इस बात को अब ऐलोपैथी के चिकित्‍सक भी मानने लगे है, हालांकि होम्‍योपैथी के तो सिद्धांत में ही यह शामिल है कि इलाज रोग का नहीं बल्कि रोगी का होता है। हमारे केद्र पर विटिलिगो का उपचार करने वाले मरीजों के किसी भी खानपान पर भी कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाया, जबकि बहुत से लोग कहते हैं कि खट्टा न खाओ, मीठा न खाओ, सफ़ेद चीजें न खाओ। यह सब मिथ्या है, डाइट पर प्रतिबन्ध की थ्योरी बहुत पुरानी हो गयी है, अब यह प्रासंगिक नहीं है।

स्टडी का हो चुका जर्नल में प्रकाशन

विटिलिगो पर की गयी डॉ गिरीश गुप्ता की स्‍टडी, जो कि एशियन जर्नल ऑफ होम्‍योपैथी के फरवरी 2016 के अंक में छपी है, के बारे में उन्‍होंने बताया कि 753 लोगों की स्‍टडी में 90 मरीजों को बहुत लाभ हुआ जबकि 288 मरीजों को कुछ कम लाभ हुआ, 268 की स्थिति दवा से न तो अच्‍छी हुई और न ही खराब हुई, जबकि 107 लोगों को कोई लाभ नहीं हुआ। उन्‍होंने कहा कि इस तरह देखा जाये तो कुल 378 (90 प्‍लस 288) मरीजों यानी लगभग 50 प्रतिशत मरीजों को दवा से लाभ हुआ।

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