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स्वास्थ्य सेवाएं ऐसी हों जो पर्यावरण को नुकसान न पहुंचायें : पार्थ सारथी सेन

-जिला स्तरीय कार्य योजना बनाने के लिए आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला प्रारम्भ

सेहत टाइम्स

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण पार्थ सारथी सेन शर्मा ने कहा है कि स्वास्थ्य विभाग का दायित्व केवल उपचार तक ही सीमित नहीं है। हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि स्वास्थ्य सेवाएं स्वयं भी पर्यावरण को क्षति पहुँचने वाले कोई कार्य न करें। उन्होंने कहा कि “जिला स्तरीय कार्य योजना बनाते हुए हमे यह ध्यान रखना होगा कि वह प्रासंगिक एवं व्यावहारिक हो एवं राष्ट्रीय दिशानिर्देशों का पालन करते हुए जिले की आवश्यकताओं एवं परिस्थितियों के अनुरूप हो”। उन्होंने कहा कि प्लान में लोगों द्वारा किए जाने वाले छोटे प्रयासों को भी शामिल करना आवश्यक है और साथ ही फ्रन्टलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का क्षमता वर्धन एवं जागरूकता कार्यक्रम भी इसमें शामिल किए जाने चाहिए।

श्री शर्मा ने यह बात यहां जलवायु परिवर्तन एवं मानव स्वास्थ्य व ‘ग्रीन एंड क्लाइमेट रेजिलिएंट हेल्थकेयर’ पर जिला स्तरीय कार्य योजना (ऐक्शन प्लान) बनाने के लिए दो दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ करते हुए कही। कार्यशाला का आयोजन 28 अक्टूबर को लखनऊ में उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य विभाग एवं यूनिसेफ के संयुक्त प्रयास से किया गया। इस कार्यशाला में 75 जिलों के स्वास्थ्य विभाग के जिला ​सर्विलांस अधिकारी एवं पब्लिक हेल्थ विशेषज्ञों ने भाग लिया तथा जिला स्तरीय कार्य योजना बनाने के लिए प्रशिक्षण प्राप्त किया।

जलवायु परिवर्तन के बच्चों पर प्रभाव को दर्शाती फिल्म का लोकार्पण

कार्यशाला में उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं के सौरिकरण (सोलराइज़ेशन) पर एक दस्तावेज़ एवं फिल्म का भी लोकार्पण पार्थ सारथी सेन शर्मा, स्वास्थ्य मंत्रालय की प्रतिनिधि एवं तकनीकी अधिकारी नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (NCDC) जयश्री नंदी, निदेशक संचारी रोग उत्तर प्रदेश डॉ आर पी एस सुमन(MoHFW), राज्य नोडल अधिकारी नेशनल प्रोग्राम फॉर क्लाइमेट चेंज एण्ड ह्यूमन हेल्थ डॉ विकासेंदु अग्रवाल, यूनिसेफ उत्तर प्रदेश के कार्यकारी प्रमुख एवं प्रोग्राम मैनेजर डॉ अमित मेहरोत्रा द्वारा किया गया। इसके साथ ही यूनिसेफ द्वारा बनाई गई जलवायु परिवर्तन के बच्चों पर प्रभाव को दर्शाती हुई फिल्म का भी लोकार्पण किया गया।

निदेशक संचारी रोग उत्तर प्रदेश डॉ आर पी एस सुमन ने कहा कि उचित तैयारी से जोखिम को कम किया जा सकता है। उन्होंने हीट वेव के समय स्वास्थ्य विभाग द्वारा किए गए प्रयासों के विषय में बताया कि कैसे समय से पूर्व अनुमान लगा कर तैयार रहने से प्रदेश में मृत्यु को कम करने में विभाग सफल रहा।

40 सीएचसी व 32 पीएचसी का हो चुका है सौरिकरण

जयश्री नंदी ने उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं के सोलराइज़ेशन की सराहना की एवं जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के प्रति लोगों में जागरूकता लाने पर जोर दिया। प्रदेश में चरणबद्ध तरीके से यूनिसेफ के तकनीकी सहयोग से स्वास्थ्य सेवाओं का सोलराइज़ेशन किया जा रहा है। अब तक प्रदेश के 40 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र एवं 32 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का सौरिकरण किया जा चुका है।

यूनिसेफ उत्तर प्रदेश के कार्यकारी प्रमुख डॉ अमित मेहरोत्रा ने प्रदेश सरकार के जिला कार्ययोजना बनाए जाने के प्रयास की सराहना करते हुए कहा,” जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बच्चों के स्वास्थ्य एवं जीवन पर सबसे अधिक होता है। इसी दृष्टि से यूनिसेफ द्वारा भी इस क्षेत्र में सरकार के साथ मिल कर प्रयास किए जा रहे हैं।“ डॉ मेहरोत्रा ने बताया की यूनिसेफ द्वारा प्रदेश के सभी 75 जिलों में 44000 मीना मंचों के साथ जलवायु परिवर्तन पर कार्य किया जा रहा है जिसका विशेष जोर व्यवहार परिवर्तन एवं जागरूकता पर है।

डॉ विकासेंदु अग्रवाल ने कार्यक्रम के उद्देश्य के बारे में बताया कि किस प्रकार जिला स्तरीय प्लान से जलवायु परिवर्तन के मानव पर पड़ने वाले प्रभावों को कम किया जा सकता है और कौन से महत्वपूर्ण बिंदुओं को इसमें शामिल किया जाना अनिवार्य है।

तो पांच वर्ष तक के बच्चों की मौतें 26 फीसदी कम हो जायेंगी

यूनिसेफ की स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ कनुप्रिया सिंघल ने जलवायु परिवर्तन के बच्चों पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा करते हुए कहा की 90%बच्चे किसी न किसी प्रकार के वायु प्रदूषण से प्रभावित हैं। उन्होंने कहा कि पर्यावरण जोखिम को कम कर के पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु को 26% तक रोका जा सकता है। डॉ सिंघल ने युवाओं की प्रतिभागिता एवं सामुदायिक जागरूकता पर जोर दिया। कार्यशाला में यूनिसेफ के स्वास्थ्य अधिकारी डॉ विजय अग्रवाल सहित स्वास्थ्य विशेषज्ञों एवं नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोलर एनर्जी के अधिकारियों ने भी हिस्सा लिया।

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