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पैथोलॉजी रिपोर्ट का महत्व पैरामीटर को जानना ही नहीं, बल्कि रोग की सही पहचान करना है

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार पैथोलॉजी रिपोर्ट्स MCI पंजीकृत पैथोलोजिस्ट की ही मान्य

 

 

डॉ. हीरा लाल शर्मा

लखनऊ. पैथोलॉजी में होने वाले टेस्ट की रिपोर्ट का महत्व सिर्फ उनके पैरामीटर को जानना ही नहीं है बल्कि रोग की सही पहचान करना है, और रोग की सही पहचान करने में एक पैथोलोजिस्ट की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. अर्थात अगर रोग की पहचान सही नहीं हुई तो उपचार के बावजूद रोग ठीक नहीं हो सकता है. अब आपको बताते हैं कि सच्चाई इससे कितनी दूर है. एक मोटे अनुमान के अनुसार औसतन सिर्फ 20 प्रतिशत पैथोलॉजी ऐसी हैं जिनमें रिपोर्ट आवश्यक योग्यता रखने वाले यानी एमसीआई पंजीकृत डिग्रीधारी पैथोलोजिस्ट तैयार करते हैं, जबकि 80 प्रतिशत रिपोर्ट अयोग्य (झोलाछाप) लोग तैयार करते हैं. पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट का एक निर्णय इस विषय में आया है जिसके अनुसार अब पैथोलॉजी रिपोर्ट देने वाले का एमसीआई पंजीकृत डिग्रीधारी पैथोलोजिस्ट होना अनिवार्य है.

 

यह जानकारी एसोसिएशन ऑफ पैथोलॉजिस्ट और माइक्रोबायोलॉजिस्ट उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष डॉ. हीरा लाल शर्मा ने देते हुए बताया कि बहुत बार ऐसा होता है कि मरीज लम्बे समय तक इलाज कराता रहता है लेकिन रोग ठीक नहीं होता है, इसकी एक बड़ी वजह यह भी हो सकती है कि उसके रोग की डायग्नोसिस ही ठीक न हुई हो. उन्होंने बताया कि देश की राजधानी दिल्ली से सटे गाजियाबाद शहर का ही उदाहरण अगर ले तो करीब 350 पैथोलॉजी हैं जबकि पैथोलोजिस्ट सिर्फ 43 हैं, ऐसे में अंदाजा लगाना कठिन नहीं है कि 300 से ऊपर की संख्या में पैथोलॉजी चलाने वाले लोग जनता की सेहत के साथ कितना खिलवाड़ कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि कमोबेश यही स्थिति सभी जगहों की है.

 

उन्होंने कहा कि इस विषय में आम लोगों में भी जागरूकता फैलाने की जरूरत है. अपनी कार्यशैली के बारे में बताते हुए उन्होंने बताया कि मशीन से जांच के बाद उनसे प्राप्त पैरामीटर की एनालिसिस करके रोग का सही ढंग के डायग्नोसिस करना ही अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, इसकी जटिलता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि कभी-कभी हम लोगों को रेडियोलाजिस्ट और मरीज को देखने वाले चिकित्सक के साथ बैठकर डिस्कशन करने की भी जरूरत पड़ जाती है, उसके बाद डायग्नोसिस तैयार हो पाती है. बहुत बार लोग सही इलाज न हो पाने के लिए उपचार करने वाले चिकित्सक को दोषी ठहरा देते हैं लेकिन दरअसल होता यह है कि मरीज की डायग्नोसिस ही सही नहीं हो पाती है तो इलाज का फायदा कैसे होगा.

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