-ब्लीडिंग से बचाव के लिए प्रोफिलैक्सिस इंजेक्शन मिल रहा फ्री, स्वयं लगा लेते हैं मरीज
-संजय गांधी पी जी आई के मेडिकल जेनेटिक्स विभाग में मनाया गया हीमोफीलिया दिवस समारोह
सेहत टाइम्स
लखनऊ। हीमोफीलिया के रोगियों के जीवन में एक अलग ही बदलाव आ चुका है। अब ब्लीडिंग होने के बाद इलाज कराने के लिए अस्पताल भागने की स्थिति को रोकना संभव हो चुका है। ब्लीडिंग के लिए जिम्मेदार फैक्टर की कमी न हो जिससे ब्लीडिंग होने की नौबत ही न आये इसके लिए निर्धारित दवा प्रोफिलैक्सिस इंजेक्शन के जरिये मरीज स्वयं ले रहे हैं, इस इंजेक्शन को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन द्वारा फ्री में उपलब्ध कराया जा रहा है।
यह कहना है संजय गांधी पी जी आई के मेडिकल जेनेटिक्स विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ शुभा फडके का। डॉ फड़के का कहना है कि पिछले वर्ष प्रोफिलैक्सिस की उपलब्धता ने मरीजों और इलाज करने वाले डॉक्टरों के जीवन को बदल दिया है। विश्व हीमोफीलिया दिवस समारोह के अवसर पर, संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ के मेडिकल जेनेटिक्स विभाग द्वारा 19 अप्रैल को हीमोफीलिया ए और बी के रोगियों और उनके परिवारों के लिए एक मिलन समारोह और शैक्षिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। डॉ फडके ने एक युवा लड़के की खुद को इंजेक्शन लेते हुए तस्वीर साझा करते हुए बताया कि उन्होंने खुद को एंटीहेमोफिलिक factor देना सीखकर यह स्वतंत्रता हासिल की है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की फंडिंग की बदौलत हीमोफीलिया से पीड़ित कई युवा लड़कों को हीमोफीलिया के लिए रोगनिरोधी चिकित्सा मिल रही है। अब उन्हें नियमित अंतराल पर हीमोफीलिया की दवाएं मिलती रहती हैं और उन्हें जोड़ों और मांसपेशियों में बार-बार रक्तस्राव या मस्तिष्क या पेट में गंभीर जानलेवा रक्तस्राव का खतरा नहीं रहता है।
इस मौके पर मरीजों ने हीमोफीलिया पर विजय की अपनी सफलता की कहानियाँ साझा कीं। हीमोफीलिया से पीड़ित बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं और परीक्षाओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहे हैं। मास्टर आदित्य ने बारहवीं कक्षा में 92% अंक प्राप्त किए और वे डॉक्टर बनना चाहते है। एक मां ने बताया कि उनका 14 साल का बेटा चलने में असमर्थ है और घुटने के जोड़ों में बार-बार खून बहने के कारण वह दिव्यांग हो गया है। एनएचएम समर्थित हीमोफीलिया कार्यक्रम के अंतर्गत वह प्रोफिलैक्सिस पर है और नियमित फिजियोथेरेपी के साथ सामान्य रूप से चलने में सक्षम है। अब उसने फिर से स्कूल जाना शुरू कर दिया है। विभाग के डॉ. आदर्श व डॉ. हसीना इन बच्चों के इलाज पर बारीकी से नजर रख रहे हैं। हरि शुक्ला बच्चों को self infusion सिखाने और उन्हें सामान्य जीवन जीने के लिए सशक्त बनाने वाले प्रमुख व्यक्ति हैं। इस कार्यक्रम में मरीजों को नियमित फिजियोथेरेपी का महत्व भी बताया गया।
उन्होंने बताया कि मेडिकल जेनेटिक्स विभाग 1990 से हीमोफीलिया ए और बी के रोगियों के लिए चिकित्सा सेवा प्रदान कर रहा है। 2009 से पी जी आई और उत्तर प्रदेश के अन्य अस्पतालों में एंटी हीमोफीलिया फैक्टर की उपलब्धता के कारण हीमोफीलिया के उपचार में सुधार हुआ है। विभाग गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा देखभाल प्रदान करने में सहायक रहा है, जिसमें ऑन-डिमांड फैक्टर VIII थेरेपी के साथ-साथ नियमित फिजियोथेरेपी और आनुवंशिक परामर्श और प्रसव पूर्व निदान जैसी अन्य सहायक सेवाएं शामिल हैं।
मेडिकल जेनेटिक्स विभाग की अध्यक्ष डॉ. शुभा फड़के ने बताया कि पिछले वर्ष र्प्रोफिलैक्सिस की उपलब्धता ने मरीजों और इलाज करने वाले डॉक्टरों के जीवन को बदल दिया है।
यह दिन संस्थान में हीमोफिलिया देखभाल के इतिहास में एक और महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, क्योंकि रोगनिरोधी आधार पर गंभीर हीमोफिलिया A वाले छह रोगियों के लिए extended half life (EHL) फैक्टर VIII थेरेपी उपलब्ध हो गई है। यह विश्व हीमोफीलिया दिवस 2024 की थीम के अनुरूप है जो “सभी के लिए समान पहुंच: सभी रक्तस्राव विकारों को पहचानना” है।
डॉक्टरों, फिजियोथेरेपिस्ट और सहायक कर्मचारियों की टीम द्वारा इन रोगियों का मूल्यांकन किया गया और इस दवा की पहली खुराक दी गई। यह इन रोगियों के प्रबंधन में एक बड़ी प्रगति का प्रतीक है, क्योंकि फैक्टर लंबे समय तक रक्त में रह सकता है, जिससे फैक्टर VIII इंजेक्शन की आवृत्ति कम हो जाती है। इसके अलावा अध्ययन में कहा गया है कि यह दवा रक्तस्राव को रोकने में अत्यधिक प्रभावी है।
विभाग की प्रमुख डॉ. शुभा फड़के इस बात पर जोर देती हैं कि इस विकास से ऐसे रोगियों के जीवन की गुणवत्ता में उल्लेखनीय वृद्धि होगी, जो गंभीर हीमोफीलिया के कारण काफी रुग्णता झेलते हैं। एनएचएम द्वारा वित्त पोषित हीमोफिलिया प्रबंधन कार्यक्रम इस बात का उदाहरण है कि कैसे सरकारी सहायता आनुवंशिक विकारों वाले रोगियों के जीवन को बदल सकती है।