-आगरा में आयोजित ‘होमकॉन 2023’ में एक्सपेरिमेंटल होम्योपैथी विषय पर अपने प्रेजेंटेशन में कहा डॉ गिरीश गुप्ता ने
सेहत टाइम्स
लखनऊ/आगरा। अपने शोधों का देश-विदेश में लोहा मनवाने वाले लखनऊ स्थित गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च के संस्थापक व चीफ कंसल्टेंट डॉ गिरीश गुप्ता ने कहा है कि यह जुनून भरा संयोग ही था जिसने उनसे वह करा दिया जो आज की तारीख में होम्योपैथी पर शक करने वालों को वैज्ञानिक सबूत के साथ जवाब देने में सक्षम है। केंद्र सरकार की लैब में परीक्षण कर होम्योपैथिक दवाओं के असर को मनुष्य ही नहीं, पौधों के रोगों पर भी साबित कर होम्योपैथी को प्लेसिबो, साइकोथेरेपी कहने वालों को यह वैज्ञानिक प्रमाण दिया कि होम्योपैथिक दवाओं से लाभ होना साइकोथेरेपी नहीं है, क्योंकि पौधों में नर्वस सिस्टम नहीं होता है।
डॉ गिरीश गुप्ता ने यह बात आगरा में होटल क्रिस्टल सरोवर प्रीमियर में 2 और 3 सितंबर को आयोजित होमकॉन 2023 में एक्सपेरिमेंटल होम्योपैथी विषय पर अपने प्रेजेंटेशन के दौरान कही। इस कॉन्फ्रेंस का आयोजन हैनिमैन एजुकेशनल डेवलपमेंट सोसाइटी ने इंडियन सोसाइटी ऑफ़ होमियोपैथी के सहयोग से किया।
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए डॉ गिरीश ने बताया कि 1979 में जब वे लखनऊ में नेशनल होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज में चौथे वर्ष के छात्र थे। उसी दौरान एक दिन उन्होंने लखनऊ से प्रकाशित अंग्रेजी के समाचार पत्र में किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज (अब विश्वविद्यालय) के मेडिसिन विभाग के एक नामचीन प्रोफेसर चिकित्सक ने होम्योपैथी पर कमेन्ट्स करते हुए इसकी प्रामाणिकता पर सवाल उठाये थे। इन चिकित्सक ने होम्योपैथी को प्लेसिबो थेरेपी, एक्वा थेरेपी और साइको थेरेपी की संज्ञा दी थी। इसके अलावा भी इन चिकित्सक ने होम्योपैथी को लेकर अनेक व्यंग्यात्मक टिप्पणियां की थीं।
डॉ गुप्ता ने बताया कि इसी के बाद उन्होंने यह प्रण किया कि होम्योपैथी के वैज्ञानिक प्रमाण को दुनिया के सामने लाकर रहेंगे जिससे टिप्पणी करने वाले प्रोफेसर सहित हर उस व्यक्ति को जवाब मिले जो होम्योपैथी का मजाक उड़ाता है। उन्होंने बताया कि इसके बाद अनेक बाधाओं को पार करते हुए अंतत: वह दिन भी आया जब तरह-तरह के फंगस जैसे Candida albicans, Aspergillus Niger, Trichophyton, Corvularia lunata, Microsporum को कल्चर कर प्लेट में रखकर उस पर अल्कोहल, सादा पानी और होम्योपैथिक दवा को अलग-अलग डालकर इसकी प्रतिक्रिया देखी गयी, इसमें फंगस पर सादे पानी और अल्कोहल के डालने से कोई प्रभाव नहीं पड़ा जबकि होम्योपैथिक दवा डालने से कल्चर प्लेट में फंगस ठीक होता दिखा। इस तरह से इस एक्सपेरिमेंट से यह साबित हुआ कि जो लोग होम्योपैथिक दवाओं के बजाय प्लेसिबो, अल्कोहल का असर बता रहे थे, वे गलत थे जबकि होम्योपैथिक दवाओं ने फंगस ठीक कर अपनी वैज्ञानिकता साबित की।
कॉन्फ्रेंस को साइंटिफिक अध्यक्ष डॉ एसएम सिंह, साइंटिफिक वाइस चेयरमैन डॉ राजेश गुप्ता तथा साइंटिफिक सेक्रेटरी डॉ वीके जैन ने भी सम्बोधित किया। ऑर्गेनाइजिंग चेयरमैन डॉ आदित्य पारीक ने कहा कि इस कॉन्फ्रेंस का उद्देश्य बड़े पैमाने पर होम्योपैथिक बिरादरी के डायग्नोसिस कार्य में लगे दिग्गजों के साथ-साथ उभरते चिकित्सकों के नैदानिक अनुभवों की एक शृंखला को एक छत के नीचे लाना है। सम्मेलन का विषय होम्योपैथिक को मुख्यधारा चिकित्सा में लाना चुना गया। इसमें देश भर से आये अनेक होम्योपैथिक चिकित्सकों ने हिस्सा लिया। इस मौके पर वाराणसी के डाॅॅ रमेश कुुुुमार भाटिया ने डॉ गिरीश गुप्ता को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया।