-टाइप-2 डायबिटीज के रोगियों पर हुईं अनेक स्टडीज पर डॉ केपी चंद्रा की कमेंट्री आइरिस पब्लिशर्स के जर्नल में प्रकाशित
धर्मेन्द्र सक्सेना
लखनऊ। टाइप-2 डायबिटीज को अगर खत्म करना है तो सबसे पहले मोटापे को कम करना होगा, एक स्टडी में देखा गया है कि डायबिटीज से ग्रस्त जिन व्यक्तियों का मोटापा कम कर दिया गया उन्हें डायबिटीज से भी छुटकारा मिल गया तथा उनका ब्लड शुगर बिना किसी दवा के नियंत्रित हो गया।
यह महत्वपूर्ण जानकारी गोमती नगर लखनऊ स्थित चंद्रा डायबिटीज क्लीनिक के डॉ केपी चंद्रा ने ‘सेहत टाइम्स’ को देते हुए बताया कि उनकी एक कमेंट्री आइरिस पब्लिशर्स के जर्नल एंडोक्राइनोलॉजी एंड डायबिटीज : ओपन एक्सेस जर्नल में बीती 10 जनवरी, 2023 को प्रकाशित हुई है। इस कमेंट्री में डॉ केपी चंद्रा ने इस विषय में की गयी अनेकों स्टडी के अध्ययन के निचोड़ का जिक्र करते हुए बताया है कि मेटाबोलिज्म से जुड़ी डायबिटीज, ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों को रिवर्स करने में शरीर का वजन और लिवर का फैट कम करने की मुख्य भूमिका पायी गयी है।
इस बारे में डॉ केपी चंद्रा ने बताया कि सबसे पहले यह जानने की आवश्यकता है कि डायबिटीज क्या है, दरअसल डायबिटीज की पैथोफीजियोलॉजी को समझें तो पता चलता है कि यह एक मेटाबोलिक एब्नॉर्मलिटी है, मेटाबोलिक एब्नॉर्मलिटी का मूल नियम एबीसीडी यानी एडिपोसिटी बेस्ड क्रॉनिक डिजीज है, कोई भी बीमारी डायबिटीज, ब्लड प्रेशर या हार्ट की बीमारी, जब प्रकट होती है, उससे करीब 10 वर्ष पहले उसकी शुरुआत हो चुकी होती है लेकिन दिखती नहीं है, शरीर में धीरे-धीरे इसका इन्फ्लामेशन होता रहता है, जिससे शरीर के सभी सिस्टम धीरे-धीरे कमजोर होते रहते हैं।
डॉ चंद्रा ने बताया कि जैसे अगर खानपान हमारा ठीक नहीं है, हाई कैलोरी डाइट लगातार खा रहे हैं तो फैट जमा होता रहता है, यह फैट विसरा में जमा होता जाता है, जिससे इन्फ्लामेशन होता रहता है, यह ऐसे हार्मोन्स निकालता है कि जो हमारी बॉडी को हमेशा तनाव देता रहता है। क्रॉनिक स्ट्रेस के कारण क्रॉनिक इन्फ्लामेशन होता है। उन्होंने बताया कि इन्फ्लामेशन से जब वाहिनियों (वेसल्स) में नुकसान होगा तो धीरे-धीरे ब्लड प्रेशर बढ़ना शुरू होगा। इसका असर हार्ट पर होगा तो हार्ट की बीमारी, पैंक्रियाज में होगा तो इंसुलिन का सीक्रेशन और इंसुलिन का एक्शन गड़बड़ होता है जिससे इंसुलिन रेजिस्टेंस होता है और डायबिटीज हो जाती है, लिवर में जब फैट जमा होता है तो वहां शुगर ज्यादा बनने लगती है जिससे ब्लड शुगर का लेवल बढ़ जाता है।
डॉ चंद्रा ने बताया कि बहुत सी रिसर्च हुई हैं जिनमें पाया गया है कि जब शरीर का वजन कम कराया गया तो देखा गया कि ब्लड प्रेशर और ब्लड शुगर अपने आप ठीक हो गयी। यह भी देखा गया है कि वजन कम करने के लिए जब डाइट को कम किया गया तो फैट के साथ मसल्स भी कमजोर हो गयी लेकिन फैट का प्रतिशत कम नहीं हुआ, इसलिए वजन कम करने का ऐसा उपाय अपनाना चाहिये जिससे मसल्स को नुकसान न हो, सिर्फ बॉडी फैट कम हो वजन घटने, फैट कम होने से हमारी मेटाबोलिक एब्नॉर्मलिटी घटने लगती हैं, परिणामस्वरूप डिजीज रिवर्स होने लगती है।
एक उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि यह देखा गया है कि किसी के लिवर में 15 से 20 प्रतिशत फैट है तो उसे इंसुलिन रेजिस्टेंस की दिक्कत हो जाती है फलस्वरूप डायबिटीज हो जाती है, लेकिन जब लिवर का फैट का प्रतिशत घटाकर 5 से कम कर लिया गया तो इंसुलिन का सीक्रेशन बढ़ गया, इंसुलिन का एक्शन बढ़ गया नतीजा डायबिटीज रिवर्स हो गयी।
डॉ चंद्रा बताते हैं कि हम जो भी खाते हैं वह लिवर में जाता है इसलिए लिवर को पहला फर्स्ट पास मेटाबोलिज्म कहा जाता है इसीलिए कहा गया है कि नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज (एनएएफएलडी) ऐसी जटिल बीमारी है जो सभी मेटाबोलिक डिजीज की जड़ है। एनएएफएलडी और मोटापा साथ-साथ चलता है, इस प्रकार ये दोनों चीजें ही बीमारी का कारण हैं।
डॉ चंद्रा ने बताया कि जब मरीज का वेट और फैट कम कराया तो डायबिटीज रिवर्स हो गयी। कमेंट्री में मैंने लिखा है कि इस सम्बन्ध में जो रिसर्च हुई हैं, जिसमें डायरेक्ट ट्रायल, स्टॉम्प ट्रायल जैसे कई ट्रायल हजारों की जनसंख्या पर किये जा चुके हैं जिनसे यह फैक्ट सामने आया है कि वजन चाहें जैसे यानी बेरियाट्रिक सर्जरी से, मेडिसिन से, जीवनशैली से या डायट में सुधार करके 15 प्रतिशत तक वजन घटा लेते हैं और लिवर में फैट 5 प्रतिशत से कम कर लेते हैं तो सभी मेटाबोलिज्म डिजीज ब्लड शुगर, ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल घटाने का उपचार एकसाथ हो जाता है।
15 मरीज ऐसे, जो अब न दवा ले रहे, न इंसुलिन
उन्होंने बताया कि उनके पास कम से कम 15 मरीज ऐसे हैं जिनका वजन कम कराकर उनकी डायबिटीज रिवर्स की गयी है, इन्हें डायबिटीज की कोई दवा भी नहीं लेनी पड़ रही है। एक 40-42 वर्ष की महिला जो 78 किलो की थी, और इंसुलिन लेती थीं, उनका तीन महीने में वजन कम करके 62 किलो कराया गया है, और अब वह कोई भी दवा नहीं ले रही हैं।
एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने बताया कि मोटापा तय करने के लिए बॉडी मास इंडेक्स का फॉर्मूला इंडियन, एशियन और यूरोपियन का अलग-अलग है। उन्होंने बताया कि दरअसल हम भारतीय थिन फैट इंडियन हैं। हम लोग दुबले हैं लेकिन बॉडी फैट ज्यादा है दुबले हैं, इसी कारण अपेक्षाकृत हमारा वजन कम होने के बावजूद हम डायबिटीज के शिकार हो रहे हैं। डॉ चंद्रा ने बताया कि डब्ल्यूएचओ के अनुसार विश्व के पैमाने के अनुसार बीएमआई 25 से कम नॉर्मल, 25 से 30 को ओवरवेट और 30 से ज्यादा बीएमआई को मोटापा मानते हैं, जबकि भारत के परिप्रेक्ष्य में यह 23 से कम को नॉर्मल, 23 से 25 को ओवर वेट और 25 से ज्यादा को मोटापा मानते हैं।
उन्होंने कहा कि खानपान और जीवनशैली पर बहुत कुछ निर्भर करता है, पहले हमारे यहां 50 साल उम्र में डायबिटीज होती थी, अब यह दो दशक पहले होने लगी है। अब हम पिज्जा, बर्गर, चाउमिन जैसे फास्ट फूड खाकर कार्बोहाइड्रेड ज्यादा ले रहे हैं, जबकि व्यायाम कम कर रहे हैं, पैदल कम चल रहे हैं, साइकिल कम चलाते हैं यानी कुल मिलाकर फिजिकल एक्टिविटी कम है, इसीलिए मेटाबोलिज्म बिगड़ रहा है और हम डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, हार्ट की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं।