-एसजीपीजीआई में इलाज के दौरान सुई चुभने के बाद संक्रमण से बचाने का प्रोटोकॉल विकसित
-प्रभावित कर्मी के प्राथमिक उपचार से लेकर फॉलोअप ट्रीटमेंट तक जिम्मेदारी निभाएगा अस्पताल प्रशासन विभाग
-विश्व एड्स दिवस पर इलाज के दौरान संक्रमण से बचाव पर नर्सों के लिए कार्यशाला आयोजित
सेहत टाइम्स
लखनऊ। समय बदल रहा है, पिछले दिनों वैश्विक महामारी कोविड से बचाने में पीपीई (personal protective equipment) किट की महत्वपूर्ण भूमिका को हमने देखा, कुछ इसी तरह एक और संक्रमण की बीमारी एचआईवी/एड्स से ग्रस्त व्यक्ति का इलाज करने के दौरान सावधानी बरतने के बाद भी यदि हेल्थ वर्कर को सुई चुभ जाये तो उसे संक्रमण से बचाने के लिए पीईपी (post exposure prophylaxis) प्रबंधन किया जाता है। इसी प्रक्रिया को एक प्रोटोकॉल का रूप देते हुए संजय गांधी पीजीआई में एक सिस्टम विकसित किया गया है।
यह जानकारी देते हुए संस्थान के अस्पताल प्रशासन विभाग के विभागाध्यक्ष व SHICCOM के सदस्य सचिव डॉ हर्षवर्धन ने बताया कि विश्व एड्स दिवस के अवसर पर स्टाफ नर्सों के लिए मिनी ऑडिटोरियम मे अस्पताल संक्रमण नियंत्रण समिति (एचआईसीसी) द्वारा एक जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में संस्थान के निदेशक प्रो आरके धीमन को आमंत्रित किया गया। उन्होंने एचआईवी/एड्स और संक्रामक रोगों की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। डॉ. वी.के. पालीवाल, चिकित्सा अधीक्षक ने एचआईवी एड्स की तुलना में एनएसआई पर विचार-विमर्श किया, इसके बाद मुख्य चिकित्सा अधीक्षक एवं अध्यक्ष, SHICCOM प्रो गौरव अग्रवाल, ने इस वर्ष विश्व एड्स दिवस की थीम-इक्वलाइज पर अपने विचार रखे। डॉ. ऋचा मिश्रा,एडिशनल प्रोफेसर., विभाग माइक्रोबायोलॉजी विभाग ने पोस्ट एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस विषय पर विचार-विमर्श किया। इस मौके पर डॉ आरके सिंह भी उपस्थित रहे। जागरूकता कार्यक्रम में 150 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
डॉ हर्षवर्धन ने बताया कि विश्व स्तर पर, स्वास्थ्य कर्मियों में रक्त-जनित संक्रमण का प्राथमिक कारण Needle Stick Injury सुई चुभने से घाव है। एक स्वास्थ्य कार्यकर्ता को संक्रमित सुई से एचआईवी होने करने का खतरा 0.1%-0.4% ही होता है। उन्होंने कहा कि Centre for Disease Control के अनुसार, Needle Stick Injury के केवल 10% मामलों की ही सूचना दी जाती है। इसी को ध्यान में रखते हुए, SHICCOM के तत्वावधान में SGPGI में NSI cell बनाया गया है। डॉ हर्षवर्धन ने बताया कि हमने संस्थान में एक पायलट सर्वे किया जिसमें इस व्यवस्था को लागू करके देखा गया था, इस सर्वे में पाया गया कि दो माह में 23 हेल्थ वर्कर्स ने रिपोर्ट की जिन्हें उपचार के दौरान सुई चुभी थी।
वैज्ञानिक सत्र में डॉ. आर. हर्षवर्धन ने सुई चुभने की घटनाओं को रोकने में स्वास्थ्य कर्मचारी की शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देते हुए कहा कि इसके लिए चार स्तर पर व्यवस्था की गयी है। इसके तहत ऐसी घटना होने पर स्वास्थ्य कर्मी द्वारा केंद्रीय नियंत्रण कक्ष पर सूचना देनी होती है, इसके बाद अस्पताल प्रशासन विभाग का चिकित्सक उस स्वास्थ्य कर्मी को संक्रमण से बचाने के लिए किये जाने वाले प्राथमिक उपचार से लेकर फॉलोअप तक की पूरी व्यवस्था कराता है, इसके लिए अस्पताल प्रशासन विभाग इमरजेंसी मेडिसिन विभाग, माइक्रोबायोलॉजी विभाग और गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग से तालमेल स्थापित रखता है।
उन्होंने बताया कि सुई चुभने पर सबसे पहले देखा जाता है कि जिस मरीज का उपचार करते समय सुई चुभी है, वह मरीज एचआईवी, हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइसिटस सी से ग्रस्त तो नहीं है, यदि इन बीमारियों से पहले से ग्रस्त है तो उस हिसाब से प्रोटेक्शन लिया जाता है और यदि नहीं ज्ञात है तो इसकी जांच के लिए माइक्रोबायोलॉजी विभाग और गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग से मदद ली जाती है। उन्होंने बताया कि इस व्यवस्था के लिए जिस टीम का गठन किया गया है उसमें डॉ विनय पाठक, डॉ ऋचा मिश्रा, डॉ अमित गोयल और दिखिल शामिल हैं।
डॉ हर्षवर्धन ने बताया कि वर्ष 1988 में प्रारंभ हुए विश्व एड्स दिवस प्रत्येक वर्ष 1 दिसंबर को मनाया जाता है और यह दुनिया भर के लोगों के लिए एचआईवी के खिलाफ लड़ाई में एकजुट होने का एक अवसर है। इस वर्ष की थीम है “समानता”। यानी हमें एचआईवी ग्रस्त लोगों को मुख्य धारा में रखते हुए उनके साथ भेदभाव न रखते हुए उनके साथ समान व्यवहार करना है।