-जौनपुर के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने अधिवक्ता की याचिका पर दिये एफआईआर दर्ज करने के निर्देश
-कोविड संक्रमण से ग्रस्त अधिवक्ता की बहन को ऑक्सीजन होने के बाद भी नहीं देने का आरोप
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। जौनपुर के जिलाधिकारी, मुख्य चिकित्सा अधिकारी, जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक, व एक डॉक्टर समेत 5 लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया है। मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के आदेश के बाद जिला अधिकारी मनीष कुमार वर्मा, जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ एके शर्मा, चिकित्सक और तत्कालीन सीएमओ राकेश कुमार के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है। अदालत ने शहर कोतवाली पुलिस से आगामी 19 सितंबर को रिपोर्ट तलब की है।
दीवानी न्यायालय के अधिवक्ता रामसकल यादव की दरखास्त पर सीजेएम ने मंगलवार को जौनपुर डीएम मनीष कुमार वर्मा, सीएमएस डॉ. एके शर्मा, चिकित्सक, तत्कालीन सीएमओ डॉ, राकेश कुमार समेत पांच लोगों पर हत्या का वाद दर्ज किया है। इलाज में लापरवाही के कारण कोरोना संक्रमित महिला की मौत मामले में यह कार्रवाई की गई है। शिकायत के बाद भी कार्रवाई क्यों नहीं की गई, इस बारे में कोर्ट ने कोतवाली पुलिस से 19 सितंबर को रिपोर्ट तलब की है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार दीवानी न्यायालय के अधिवक्ता रामसकल यादव का कहना है प्रशासन के सख्त निर्देश के चलते कोई भी प्राइवेट अस्पताल कोरोना के मरीजों को नहीं देख रहा था। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान 29 अप्रैल को रामसकल यादव की कोरोना संक्रमित बहन को सांस लेने में दिक्कत होने के बाद जिला अस्पताल की इमरजेंसी में भर्ती कराया गया। उस दिन उन्हें ऑक्सीजन दी गई तथा अगले दिन चंद्रावती को बेड नंबर 7 पर शिफ्ट कर दिया गया।
उनका आरोप है कि सूचना देने पर भी सीएमएस ने चंद्रावती देवी को ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं कराई जबकि हॉस्पिटल में ऑक्सीजन उपलब्ध थी। यही नहीं सीटी स्कैन के लिए मरीज को बाहर ले जाने की बात कहने पर उन्हें बेड न देने की धमकी दी गई। अधिवक्ता का कहना है कि इन्हीं सबके बीच चंद्रावती का ऑक्सीजन लेवल घटकर 60 रह गया।
इसके अतिरिक्त 7 इंजेक्शन लगाए जाने थे लेकिन सिर्फ दो इंजेक्शन लगाया जाए। रामसकल के अनुसार कोविड मरीजों के लिए बने हेल्पलाइन नंबरों पर कॉल की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। इसके बाद 3 मई को चंद्रावती ने दम तोड़ दिया। अधिवक्ता ने आरोप लगाया है कि अस्पताल के सीएमएस, ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर व नर्स रसूखदार लोगों के मरीजों को ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध करा रहे थे जबकि सामान्य मरीज ऑक्सीजन के अभाव में दम तोड़ रहे थे।
अधिवक्ता का कहना है कि प्राइवेट अस्पतालों में कोरोना के मरीज भर्ती न किए जाने की गाइडलाइन जिला प्रशासन द्वारा जारी की गई थी तो ऐसी स्थिति में इलाज की संपूर्ण जिम्मेदारी जिलाधिकारी, मुख्य चिकित्सा अधिकारी तथा जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक पर थी, जिन्होंने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई। अधिवक्ता ने डॉक्टरों की लापरवाही का एक वीडियो वह अन्य सबूत कोतवाल व एसपी को उपलब्ध कराये, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई इसके बाद उन्होंने न्यायालय की शरण लेना उचित समझा, जहां से मुकदमा दर्ज कराने के आदेश जारी किये गये।