जीवन जीने की कला सिखाती कहानी – 37
प्रेरणादायक प्रसंग/कहानियों का इतिहास बहुत पुराना है, अच्छे विचारों को जेहन में गहरे से उतारने की कला के रूप में इन कहानियों की बड़ी भूमिका है। बचपन में दादा-दादी व अन्य बुजुर्ग बच्चों को कहानी-कहानी में ही जीवन जीने का ऐसा सलीका बता देते थे, जो बड़े होने पर भी आपको प्रेरणा देता रहता है। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के वृद्धावस्था मानसिक स्वास्थ्य विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ भूपेन्द्र सिंह के माध्यम से ‘सेहत टाइम्स’ अपने पाठकों तक मानसिक स्वास्थ्य में सहायक ऐसे प्रसंग/कहानियां पहुंचाने का प्रयास कर रहा है…
प्रस्तुत है 37वीं कहानी – सेवा धर्म ही असली भक्ति
एक शहर में अमीर सेठ रहता था। वह बहुत फैक्ट्रियों का मालिक था।
एक शाम अचानक उसे बहुत बैचेनी होने लगी। डॉक्टर को बुलाया गया सारी जांचें करवा लीं, परन्तु कुछ भी नहीं निकला। उसकी बैचेनी बढ़ती गयी।
उसके समझ में नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है। रात हुई, नींद की गोलियां भी खा ली पर न नींद आने को तैयार और ना ही बैचेनी कम होने का नाम ले।
वो रात को उठकर तीन बजे घर के बगीचे में घूमने लगा। घूमते-घूमते उसे लगा कि बाहर थोड़ा सा सुकून है तो वह बाहर सड़क पर पैदल निकल पड़ा।
चलते-चलते हजारों विचार मन में चल रहे थे। अब वो घर से बहुत दूर निकल आया था और थकान की वजह से एक चबूतरे पर बैठ गया।
.उसे थोड़ी शान्ति मिली तो वह आराम से बैठ गया।
इतने में एक कुत्ता आया और उसकी चप्पल उठाकर ले गया। सेठ ने देखा तो वह दूसरी चप्पल उठाकर कुत्ते के पीछे भागा।
कुत्ता पास ही बनी झुग्गी-झोपडि़यों में घुस गया। सेठ भी उसके पीछे था, सेठ को करीब आता देखकर कुत्ते ने चप्पल वहीं छोड़ दी और चला गया।
सेठ ने राहत की सांस ली और अपनी चप्पल पहनने लगा। इतने में उसे किसी के रोने की आवाज सुनाई दी।
वह और करीब गया तो एक झोपड़ी में से आवाज आ रही थी।
उसने झोपड़ी के फटे हुए बोरे में झांक कर देखा तो वहां एक औरत फटेहाल मैली सी चादर पर दीवार से सटकर रो रही हैं।
और ये बोल रही है, हे भगवान मेरी मदद कर ओर रोती जा रही है।
सेठ के मन में आया कि यहां से चले जाओ, कहीं कोई गलत ना सोच लें।
वो थोड़ा आगे बढ़ा तो उसके दिल में खयाल आया कि आखिर वो औरत क्यों रो रहीं हैं, उसको तकलीफ क्या है ?
और उसने अपने दिल की सुनी और वहां जाकर दरवाजा खटखटाया।
उस औरत ने दरवाजा खोला और सेठ को देखकर घबरा गयी। सेठ ने हाथ जोड़कर कहा तुम घबराओ मत, मुझे तो बस इतना जानना है कि तुम रो क्यों रही हो।
औरत की आखों से आंसू टपकने लगे और उसने पास ही गुदड़ी में लिपटी हुई 7-8 साल की बच्ची की ओर इशारा किया।
और रोते-रोते कहने लगी कि मेरी बच्ची बहुत बीमार है उसके इलाज में बहुत खर्चा आएगा।
मैं तो घरों में जाकर झाड़ू-पोछा करके जैसे-तैसे हमारा पेट पालती हूं। मैं कैसे इलाज कराऊं इसका ?
सेठ ने कहा, तो किसी से मांग लो। इसपर औरत बोली मैने सबसे मांग कर देख लिया खर्चा बहुत है कोई भी देने को तैयार नहीं।
सेठ ने कहा तो ऐसे रात को रोने से मिल जायेगा क्या ?
औरत ने कहा कल एक संत यहां से गुजर रहे थे तो मैंने उनको मेरी समस्या बताई तो उन्होंने कहा बेटा…
तुम सुबह 4 बजे उठकर अपने ईश्वर से मांगो। बोरी बिछाकर बैठ जाओ और रो-गिड़गिड़ा के उससे मदद मांगो वो सबकी सुनता है तो तुम्हारी भी सुनेगा।
मेरे पास इसके अलावा कोई चारा नहीं था। इसलिए मैं उससे मांग रही थी और वो बहुत जोर से रोने लगी।
यह सब सुनकर सेठ का दिल पिघल गया और उसने तुरन्त फोन लगाकर एम्बुलेंस बुलवायी और उस लड़की को एडमिट करवा दिया।
डॉक्टर ने डेढ़ लाख का खर्चा बताया तो सेठ ने उसकी जवाबदारी अपने ऊपर ले ली, और उसका इलाज कराया।
उस औरत को अपने यहां नौकरी देकर अपने बंगले के सर्वेन्ट क्वाटर में जगह दी और उस लड़की की पढ़ाई का जिम्मा भी ले लिया।
सेठ कर्म प्रधान तो था पर नास्तिक था। अब उसके मन में सैकड़ों सवाल चल रहे थे।
क्योंकि उसकी बैचेनी तो उस वक्त ही खत्म हो गयी थी जब उसने एम्बुलेंस को बुलवाया था।
वह यह सोच रहा था कि आखिर कौन सी ताकत है जो मुझे वहां तक खींच ले गयीं ? क्या यही ईश्वर हैं ?
और यदि यह ईश्वर है तो सारा संसार आपस में धर्म, जात-पात के लिए क्यों लड़ रहा है क्योंकि ना मैने उस औरत की जात पूछी और ना ही ईश्वर ने जात-पात देखी।
बस ईश्वर ने तो उसका दर्द देखा और मुझे इतना घुमाकर उस तक पहुंचा दिया।
अब सेठ समझ चुका था कि कर्म के साथ सेवा भी कितनी जरूरी है क्योंकि इतना सुकून उसे जीवन में कभी भी नहीं मिला था !
तो दोस्तों मानव और प्राणी मात्र की सेवा का धर्म ही असली भक्ति है
यदि ईश्वर की कृपा पाना चाहते हो तो इंसानियत अपना लो और समय-समय पर उन सबकी मदद करो जो लाचार या बेबस हैं। क्योंकि ईश्वर इन्हीं के आस-पास रहता हैं।