उबाल कर पानी पीना श्रेयस्कर, लेकिन पीने से पहले…
पानी जिसके बिना जीवन की कल्पना भी सम्भव नहीं है, कड़कड़ाती सर्दियां हों या चिलचिलाती गर्मियां या फिर हो बरसात का मौसम, प्यास पानी से ही बुझती है। लेकिन पानी अगर गंदा हो तो स्वाद के साथ ही सेहत भी खराब करता है, इसीलिए पानी के शोधन की प्रक्रिया अपनायी जाती है। शोधन के लिए क्या कदम उठाये जाते हैं, उसके क्या अच्छे–बुरे परिणाम होते हैं, बुरे परिणामों से बचने के लिए क्या करना चाहिये, ये सारी बातें अपने इस लेख में बता रही है, मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के अम्बाह पीजी कॉलेज की माइक्रोबायोलॉजिस्ट लक्ष्मी सैनी…
‘जल से ही जीवन है’.. जल के बिना जीवन की कल्पना भी असंभव है.. पृथ्वी पर लगभग 3/4 भाग पानी से घिरा हुआ है। जिसमें से 97% पानी खारा, जो कि पीने योग्य नहीं है। पीने योग्य पानी केवल 3% है, इसमें से भी 2% पानी ग्लेशियर एवं बर्फ के रूप में मौजूद है। इस प्रकार सही मायने में मात्र 1% पानी ही मानव के लिए उपयोग हेतु उपलब्ध है।
मानव जीवन का जल के साथ एक बहुत ही गहरा रिश्ता है। हम यह भी भली-भांति से जानते हैं, कि प्रत्येक पानी पीने योग्य नहीं होता। किंतु हम उसे पीने योग्य बनाते हैं। अगर पानी पीने योग्य नहीं होता अर्थात स्वच्छ नहीं होता तो वह जल से पैदा होने वाली अनेक बीमारियां जैसे कॉलरा, डिसेंट्री तथा टाइफाइड आदि (water borne diseases, like cholera, dysentery and typhoid) का कारण बनता है। कुछ बीमारियां इतनी घातक होती हैं, जिनसे लाखों की संख्या में जान की हानि तक होती है। मनुष्य समय के साथ-साथ जैसे – जैसे बुद्धिजीवी होता गया पानी के शुद्धिकरण के कई तरीकों को अपनाने लगा। वर्तमान में बाजारों में जल शुद्धीकरण के लिए बड़े ही लुभावने और महंगे वाटर प्यूरीफायर मिलते हैं जिनके द्वारा 100% जल की शुद्धिकरण की गारंटी होती है। इन्हें व्यक्ति बाजारों से बड़े ही विश्वास के साथ खरीदता है, किंतु कोई भी यह नहीं सोचता कि इन प्यूरीफायर्स में आखिरकार होता क्या है? ऐसी कौन सी दवाई या रसायन मिलाया जाता है, जिससे यह कीटनाशक की तरह कार्य करता है।
पानी के शुद्धिकरण की अब तक सबसे सस्ती, प्रभावी और विश्वसनीय तकनीक क्लोरोनीकरण (chlorination) अर्थात पानी में क्लोरीन का प्रयोग, को माना गया है। और इसे सार्वजनिक रूप से स्वीकार भी किया गया है। पानी का क्लोरोनीकरण बहुत ही पुरानी तकनीक है, जिसकी शुरुआत 1900 से भी पहले मानी जाती है, परंतु उस समय इसका विस्तार नहीं हुआ था। 1905 में गंदे पानी के कारण टाइफाइड एपिडेमिक (typhoid epidemic) पूरे इंग्लैंड (England) में फैला हुआ था। जिसे रोकने के लिए वहां के एक डॉक्टर ने पानी को शुद्ध करने के लिए क्लोरीन का प्रयोग किया। जिससे वहां के लोग ठीक होने लगे अर्थात मृत्यु दर कम हो गई जिसे देख 1908 में यूनाइटेड स्टेट (United State) ने भी पानी के शुद्धिकरण के लिए क्लोरीन का प्रयोग शुरु कर दिया। मुंसिपल वाटर प्यूरीफायर में क्लोरीन एक कोर(हर प्रकार की गंदगी को हटाने वाला) की तरह होता है।
क्लोरीन का प्रयोग हमारे लिए कहीं न कहीं आवश्यक है इससे रो वाटर (Row water) में मिलाया जाता है। जिससे यह पानी में से हैवी आयन तथा आयरन को हटा देता है। इसके अलावा यह बायोलॉजिकल ऑर्गेनेज्म जैसे- बैक्टीरिया,कवक, प्रोटोजोआ आदि को भी खत्म कर देता है। क्लोरीन के प्रयोग से पानी में इसके बायप्रोडक्ट (by product) बनते हैं। जिन्हें फिल्टर करके निकाल दिया जाता है। क्लोरीन के प्रयोग में सावधानी इस बात की होती है कि क्लोरिनेशन के तुरंत बाद ही पानी को उपयोग में नहीं लाया जाता। बल्कि इससे बनने वाले बाय प्रोडक्ट को पहले फिल्टर करके हटा दिया जाता है, फिर इसे उपयोग में लाया जाता है। क्लोरीन का अधिकतम प्रयोग गंदे पानी को शुद्ध करने के लिए किया जाता है जैसे मिलिट्री क्षेत्रों में अथवा जहां पर गंदे पानी की समस्या अधिक हो। यह विधि लंबे समय के लिए उपयोगी नहीं मानी जाती।
क्लोरीन का प्रयोग पानी के शुद्धीकरण में एक प्रभावी, सस्ती, उपयोगी और विश्वसनीय विधि होने के बाद भी इसके प्रयोग पर आपत्ति जताई जा रही है तथा मानव के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक मानी जा रही है। वैज्ञानिकों के अध्ययनों से पता चला है कि क्लोरीन का स्वास्थ्य पर कई प्रकार से हानिकारक प्रभाव पड़ता है क्लोरोनीकृत पानी में एक प्रकार की गंध आने लगती है तथा पानी का स्वाद भी बदल जाता है, जो पीने में एक सामान्य पानी की तरह नहीं लगता। क्लोरीनीकरण की सबसे बड़ी समस्या अर्थात अगर कहा जाए कि क्लोरीन जो खूबी है वही उसकी सबसे बड़ी समस्या है कहने का अर्थ है कि यह ‘प्रोटक्शन अगेंस्ट रिइंफेक्शन’ देता है अर्थात जैसे किसी पाइप अथवा जल स्रोत में 99% पानी को क्लोरीन से शुद्ध कर देने के बाद भी दोबारा संक्रमण को रोकने के लिए दोबारा इसे जल में मिलाया जाता है। जिसकी अवस्था सक्रिय होती है। वहीं पर समस्या होती है,क्योंकि क्लोरीनेशन के रूप में इसके बाय प्रोडक्ट लगातार बनते रहते हैं और सफेद परत के रूप में वहीं जमा होते रहते हैं। इन बाय प्रोडक्ट्स को डिसइन्फेक्शन बाय प्रोडक्ट (DBPs) कहा जाता है,। जो एक बार निकालने के बाद दोबारा बन जाते हैं और जल स्रोतों में जैसे पाइप लाइंस आदि में एकत्रित हो जाती है। यह बायप्रोडक्ट स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक होती हैं बाय प्रोडक्ट के रूप में ट्राईहेलोमीथेन (THMs) तथा हेलोएसिटिकएसिड (HAAs) बनता है। इनमें से THMs को सामान्यतः कार्सिनोजेनिक (कैंसर उत्पन्न करने वाला कारक) माना जाता है।और क्लोरोनीकृत पानी में जब शरीर में जाता है तब यह शरीर की सेल्स कोशिकाओं को भी नुकसान पहुंचाता है। जैसे हम देखते हैं कि स्विमिंग पूल में आंखें और त्वचा लाल हो जाती हैं क्योंकि उसके पानी में क्लोरीन होता है इसका कारण यह है कि त्वचा क्लोरीन को बहुत ही जल्दी अवशोषित करती है। कहने का अर्थ यह है कि क्लोरीन का अधिक उपयोग स्वास्थ्य के लिए उचित नहीं है।
पानी में क्लोरीन को एक निश्चित अनुपात में मिलाने पर स्वास्थ्य पर ज्यादा हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता। मात्रा अधिक होने पर मानव स्वास्थ्य पर कई प्रकार के हानिकारक प्रभाव पढ़ते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ के अनुसार भारत में 2010 तक जल के शुद्धिकरण में क्लोरीन का उपयोग बंद किया जाना था। विकसित देशों में इसे लगभग 10-15 साल पहले ही बंद कर दिया गया है। जल के क्लोरोनिकरण के दुष्प्रभावों के बारे में कुछ विषय विशेषज्ञ बताते हैं-
• डॉक्टर जेएम प्राइज के अनुसार, क्लोरोनीकृत जल पीने वाले लोगों में कैंसर का खतरा 93% अधिक होता है।
• साइंस न्यूज़ वॉल्यूम 130 जेनेट रेल ऑफ के अनुसार, क्लोरीन एथेरोसिलेरोसिस और उसके परिणाम स्वरूप हार्ट अटैक और स्ट्रोक का कारण भी है।
• डॉक्टर एंड डब्ल्यू वॉकर डीसी बताते हैं, कि क्लोरीन युक्त पानी आपकी सेहत को खोखला कर सकता है।
• यूएस काउंसिल ऑफ एनवायरमेंटल क्वालिटी के अनुसार दो दशक पूर्व 1904 में जब से पेयजल का क्लोरोनीकरण शुरू किया तभी से दिल की बीमारियां, कैंसर और असमय बुढ़ापा जैसी बीमारियां पनपने लगीं।
भारत देश में क्लोरोनीकृत पेयजल की अधिक समस्या है। यहां के पानी में क्लोरीन अधिक मात्रा में पाया जाता है, क्योंकि यहां के पानी में कई हानिकारक बैक्टीरिया (जैसे कॉलीफॉर्म) पाए जाते हैं, जिन्हें नष्ट करने के लिए क्लोरीन का उपयोग आवश्यक है इसी कारण क्लोरीन से होने वाली बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है।
हेल्थ विशेषज्ञ तथा ब्यूटीशियन के अनुसार ज्यादा पानी पीने से त्वचा में नमी रहती है किंतु वर्तमान में यह फैक्ट गलत साबित हो रहा है। पानी में झोंकी जाने वाली क्लोरीन के चलते बाल झड़ने और गैस्ट्रिक की समस्या पैदा हो रही है क्लोरीन पानी के कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया तथा अन्य हानिकारक सूक्ष्माजीवों को नष्ट तो करता है किंतु इसका अधिक उपयोग स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी है।
अतः भारत देश में जल की समस्या के चलते क्लोरीन के उपयोग को तो पूरी तरह से नहीं रोका जा सकता लेकिन कुछ अन्य उपायों को कर स्वास्थ्य पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभाव को कम किया जा सकता है, जैसे -पानी को उबालकर पीना(सबसे लाभकारी), अल्ट्रावायलेट किरणों से पानी साफ करने की तकनीक को अपनाना (किंतु यह तकनीक महंगी है), आयोडीन मिलाकर भी पानी को पीने योग्य बनाया जाता है पर जिन्हें एलर्जी है गर्भवती महिलाओं और थायराइड की समस्या से ग्रस्त व्यक्तियों को इस तरीके का इस्तेमाल डॉक्टर की सलाह पर करना चाहिए।