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यूं ही किसी को हीरो नहीं मानती है, ये पब्लिक है, सब जानती है…

-बुद्धिजीवियों, राष्‍ट्रवादियों, साधु-संतों सहित आम जनता के बीच नायक बनकर उभरे हैं अर्णब गोस्‍वामी

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

देश और विदेशों से भी जिस तरह रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क के एडिटर-इन-चीफ अर्णब गोस्वामी को उनकी संविधान विरुद्ध की गयी गिरफ्तारी के मसले जिस तरह जनता का समर्थन मिला है वह किसी पत्रकार को उसकी पत्रकारिता के चलते शायद ही कभी मिला हो। भारत की जनता ने यह दिखा दिया है कि उसके आंख, कान सब खुले हैं, वह देख रही है सारे खेल को, न सिर्फ देख रही है बल्कि समझ भी रही है। इसीलिए बिना किसी नेतृत्‍व के जनता सड़कों पर उतरने को तैयार हो जाती है, यह इस बात का सबूत है कि नेतृत्‍व बहुत ज्‍यादा मायने नहीं रखता, गलत बात का विरोध करने के लिए इसकी अपरिहार्यता नहीं हैं। यह बात इससे पहले निर्भया कांड में भी भारत की जनता ने दिखायी थी। भारत की जनता की दीवानगी बॉलीवुड के हीरो, बड़े क्रिकेट खिलाडि़यों, बड़े राजनेताओं के पीछे ही नहीं चलती बल्कि वह उसी शिद्दत से अर्णब जैसे राष्‍ट्रवादी पत्रकार के भी पीछे भी खड़ी होती है। अर्णब को भी जनता ने एक हीरो का दर्जा दिया है। न सिर्फ जनता पूर्व सैनिक, साधु-संत आदि भी खुलकर अर्णब के समर्थन में सामने आये। उसकी रिहाई के लिए यज्ञ हुए।

मीडिया रिपोर्ट्स बता रही हैं कि अब जब अर्णब की रिहाई हो चुकी है, तो इसे लेकर पूरे देश में खुशी का माहौल है। अर्नब गोस्वामी के समर्थक पूरे देश में खुशियां मना रहे हैं,  मिठाईयां बांट रहे हैं, नाच रहे हैं, खुशियां मना रहे हैं, पटाखे बजा रहे हैं। दिल्ली के जंतर मंतर पर अर्णब के समर्थक नाच रहे हैं, ढोल बजा रहे हैं। दीपक जला रहे हैं। वहीं अयोध्या में संत समाज मिठाई बांट रहा है। वृंदावन में भी खुशी का माहौल है। महाराष्ट्र के भाजपा विधायक राम कदम भी मिठाई बांट रहे हैं। एक समर्थक ने कहा कि ‘हमारे लिए आज ही दीपावली है। हम आज ही दीपक जला रहे हैं, खुशियां मना रहे हैं। हमारे लिए आज खुशी का दिन है। सत्य जीत की हुई है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर हम लोग बहुत खुश हैं। आज न्याय की जीत हुई है। अर्णब गोस्वामी को जमानत मिल गई। वहीं समर्थक अर्णब की एक झलक पाने को बेकरार थे, उनका कहना था कि हमारे अर्णब को जल्दी भेजिए। हम अर्णब को देखकर ही आज खाना खाएंगे। उन्हें जल्दी भेजिए। इस दौरान समर्थकों ने नारे भी लगाये। 

इस पूरे प्रकरण में एक बड़ा और चिंता में डालने वाली बात यह सामने आयी कि लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था को चलाने वाले लोगों पर नजर रखने की जिम्‍मेदारी निभाने वाली आंखों (मीडिया) पर आखिर पट्टी क्‍यों बंधी रही। संजय दत्‍त, सलमान खान को जेल, बेल, अमिताभ बच्‍चन की बीमारी हो या उनके घर की खुशी (अभिषेक बच्‍चन की शादी, जिसमें निमंत्रण तक नहीं था) जैसे समाचारों को पूरा-पूरा दिन दिखाने वाले चैनल, कथित बड़े पत्रकार अपने साथी के साथ होती ऐसी अमानवीयता पर चुप क्‍यों रहे, क्‍यों नहीं महाराष्‍ट्र सरकार की धज्जियां उड़ा दीं, एकाध चैनल ने बाद में जरूर इस मसले को अपने समाचारों में जगह दी लेकिन यह मैसेज नहीं दे पाये कि अर्णब की लड़ाई पूरे पत्रकार जगत की लड़ाई है, अर्णब की लड़ाई को अपनी लड़ाई नहीं माना। क्‍या उन्‍हें यह इल्‍म नहीं था कि स्‍पर्धा के चक्‍कर में वे अपनी एकता की उस डाल को काट रहे हैं, जिस पर वे खुद भी बैठे हैं, जाहिर है जब यह डाल कटती है तो गिरता डाल को काटने वाला भी है। अफसोस की बात है कि आतंकवादी के दर्द तक को खबरों में लम्‍बे समय तक कवर करने वाली मीडिया को अपना एक जुझारू साथी नहीं दिखायी दिया। ईमानदार व्‍यावसायिक प्रतिस्‍पर्धा के तहत चाहिये यह कि आप अर्णब से बड़ी लकीर खींचिये, हो जायेगी अर्णब की लकीर छोटी, लेकिन लकीर को मिटाकर छोटा करना तो ठीक नहीं है।

आपको बता दें कि अर्णब गोस्‍वामी को बुधवार को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली और रात तक अर्नब जेल से बाहर आ गये। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार पर जो सवाल उठाए हैं वे दूसरों की आंखें खोलने के लिए काफी हैं, लेकिन खोलना चाहेंगे तो। न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी की पीठ ने कहा कि इस तरह से किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत आजादी पर बंदिश लगाया जाना न्याय का मखौल होगा। पीठ ने राज्य सरकार से जानना चाहा कि क्या गोस्वामी को हिरासत में लेकर उनसे पूछताछ की कोई जरूरत थी क्योंकि यह व्यक्तिगत आजादी से संबंधित मामला है।

पीठ ने टिप्पणी की कि भारतीय लोकतंत्र में असाधारण सहनशक्ति है और सरकार को इन सबको नजरअंदाज करना चाहिए। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘उनकी जो भी विचारधारा हो, विचारधारा में मतभेद हो सकते हैं और अगर विचारधारा अलग है तो चैनल न देखें लेकिन अगर संवैधानिक न्यायालय आज इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा तो हम निर्विवाद रूप से बर्बादी की ओर बढ़ रहे होंगे।’’

पीठ ने कहा कि सवाल यह है कि क्या आप इन आरोपों के कारण व्यक्ति को उसकी व्यक्तिगत आजादी से वंचित कर देंगे। गोस्वामी ने बंबई उच्च न्यायालय के 9 नवंबर के आदेश को चुनौती दी है जिसमें उन्हें और दो अन्य को अंतरिम जमानत देने से इनकार कर दिया था और उन्हें राहत के लिए निचली अदालत जाने का निर्देश दिया गया था। 

कोर्ट के आदेश की सराहना करते हुए, बीजेपी नेता किरीट सौमेया ने कहा कि ‘ये महाराष्ट्र सरकार के लिए एक बड़ा झटका है।’ उन्होंने ट्विटर पर लिखा- “अर्नब गोस्वामी को जमानत, यानी ठाकरे सरकार को झटका लगा है। अब तो ठाकरे सरकार अपनी सत्ता का राक्षसी उपयोग बंद करेगी?” एक वीडियो जारी करते हुए उन्होंने कहा- “ये दमन के ऊपर न्याय की जीत है। जिस तरह मुंबई पुलिस कमिश्नर, गृह मंत्री अनिल देशमुख से लेकर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने अपनी राक्षसी शक्ति का दुरुपयोग किया है, कोर्ट ने आज उनकी सरकार को एक तमाचा दिया है।”

गौरतलब है कि अर्नब गोस्वामी को 4 नवंबर को उनके घर से एक बंद हुए केस में गिरफ्तार किया गया था। जिसके बाद महाराष्ट्र पुलिस ने उन्हें अलीबाग कोर्ट में पेश किया था। कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए अर्नब गोस्वामी को 14 दिनों के लिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया था। जिसके बाद उन्हें अलीबाग क्वारंटाइन सेंटर में रखा गया था। हालांकि 8 नवंबर को अर्नब गोस्वामी को तलोजा जेल शिफ्ट कर दिया गया था।