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स्वीमिंग पूल में 12 फीट नीचे पड़े हुए थे डॉ अजीत

फरिश्ते से कम नहीं साबित हुए पीजीआई के डॉ देवेन्द्र

लखनऊ। डॉ अजीत के लिए किसी फरिश्ते से कम नहीं हैं डॉ देवेन्द्र। क्योंकि जिस तरह से स्वीमिंग पूल में अचेत पड़े डॉ अजीत को मौत के मुंह से वापस निकालने में डॉ देवेन्द्र ने भूमिका निभायी है उसे डॉ अजीत पूरी जिंदगी याद रखेंगे। यह वाक्या यहां के संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान एसजीपीजीआई का है। डॉ देवेन्द्र और डॉ अजीत दोनों ही यहीं पीजीआई में कार्यरत हैें।

लाइफ गार्ड और पत्नी की मदद से बाहर निकाला

इस बारे में डॉ देवेन्द्र से ‘सेहत टाइम्स’ ने बात की। उन्होंने बताया कि वह हमेशा की तरह बीती 12 जून को भी अपनी पत्नी के साथ पीजीआई परिसर में ही बने स्वीमिंग पूल आये थे। जब वह स्वीमिंग कर रहे थे तो देखा पूल के अंदर 12 फीट नीचे एक व्यक्ति बेहोश पड़ा हुआ है।  बस फिर क्या था इसके बाद डॉ देवेन्द्र ने तत्काल लाइफ गार्ड जितेन्द्र को बुलाया और पत्नी और उसकी मदद से व्यक्ति को पूल से बाहर निकाला, पूल से बाहर निकाला गया व्यक्ति कोई और नहीं वह पीजीआई के त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ.अजीत थे।

कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन के जरिये सांसें और धडक़न वापस लौटीं

उन्होंने बताया कि जब डॉ अजीत की न तो दिल की धडक़न थी न ही सांस आ रही थी। दूसरों को जान बचाने का प्रशिक्षण देने वाले डॉ देवेन्द्र ने अपनी पत्नी डॉ शैली गुप्ता की मदद से कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (दिल की धडक़नों और सांस को सामान्य लाने की प्रक्रिया) देकर उनकी दिल की धडक़नों और सांस को वापस लाने में सफलता प्राप्त की। इस प्रक्रिया में छाती को दबाकर तथा मुंह से मुंह लगाकर कृत्रिम सांस दी जाती है। डॉ देवेन्द्र ने बताया कि इस प्रक्रिया में करीब 12 से 15 मिनट लगे।
डॉ देवेन्द्र ने बताया कि इस बीच में पत्नी ने फोन कर एम्बुलेंस बुला ली थी चूंकि डॉ अजीत स्वयं आईसीयू के इंचार्ज हैं। वे तुरंत डॉ अजीत को आईसीयू में ले गये तथा उनका इलाज शुरू किया उनके फेफड़ों में पानी भर गया था और निमोनिया हो गया था, इलाज के बाद तीन दिन में डॉ अजीत ठीक हो गये।

पुतलों के जरिये बच्चों को दिया बीएलएस का प्रशिक्षण

डॉ देवेन्द्र ने बताया कि आज 17 जून को उन्होंने एसजीपीजीआई के स्वीमिंग पूल के बगल स्थित जगह पर कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन के बारे में बच्चों को प्रशिक्षण दिया। यह प्रशिक्षण उन्होंने पुतलों के जरिये दिया। स्वीमिंग पूल में आने वाले बच्चों और उनके दोस्तों को दिये गये प्रशिक्षण में बताया गया कि डूबते हुए व्यक्ति को बाहर निकालने के बाद किस तरह व्यक्ति की छाती को दबाकर हार्ट बीट वापस लायी जाती है तथा किस प्रकार  कृत्रिम सांसों के जरिये व्यक्ति की थम चुकी सांसों को वापस लाकर उसकी जान बचायी जा सकती है।

सभी लोगों को लेना चाहिये बीएलएस प्रशिक्षण

डॉ देवेन्द्र ने अपील की है कि प्रत्येक व्यक्ति को बेसिक लाइफ सपोर्ट बीएलएस का प्रशिक्षण लेना चाहिये जिससे कि जरूरत पडऩे पर किसी भी व्यक्ति की जान बचायी जा सके। उन्होंने बताया कि चाहे दिल का दौरा पड़ा हो अथवा डूब रहा हो, ऐसे व्यक्ति को कोई भी आदमी उसे रिससिटेशन देकर बचा सकता है। उन्होंने बताया कि वे इस तरह का प्रशिक्षण लोगों को देते रहते हैं। इसके लिए हालांकि अभी कोई एक स्थान नियत नहीं है फिलहार वह स्कूलों के बुलाने पर जाते हैं और बच्चों को प्रशिक्षण देते हैं। उन्होंने बताया कि यह प्रशिक्षण 12 वर्ष से ऊपर का कोई भी व्यक्ति ले सकता है।

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