-लिम्ब सेंटर को कोविड अस्पताल बनाने के प्रस्ताव पर चर्चायें जारी, बन रहीं रणनीतियां
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। दिव्यांगों को शारीरिक रूप से मददगार बनाने वाले सस्ते व विश्व स्तरीय उपकरणों को बनाने वाले करीब पांच दशक पुराने लिम्ब सेंटर को यहां से हटाया जाता है तो इससे इस भवन में स्थित पांच विभागों के मरीजों को दिक्कत हो सकती है वहीं दिव्यांगों के उपकरण बनाने वाली मशीनें जो कि जमीन में फिक्स्ड हैं, उन्हें उखाड़ना और उखाड़ कर फिर से लगाना आसान नहीं होगा।
ज्ञात हो किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय की इस बिल्डिंग में पांच डिपार्टमेंट हैं, ये हैं डिपार्टमेंट ऑफ पी एम आर, डिपार्टमेंट ऑफ आर्थोपेडिक, डिपार्टमेंट ऑफ रिह्यूमैटोलोजी, डिपार्टमेंट ऑफ स्पोर्ट्स इंजरी तथा डिपार्टमेंट ऑफ पीडियाट्रिक ऑर्थोपेडिक। यहां दिव्यांग, असहाय एवं हड्डी तथा ऑटोइम्यून डिजीज एवं इम्यूनोलॉजिकल बीमारियों से जूझ रहे लगभग पौने दो लाख से दो लाख मरीजों का इस बिल्डिंग के सभी विभागों द्वारा इलाज होता है।
यहां के वर्कशॉप मैनेजर रह चुके अरविन्द कुमार निगम, जो कि ऑर्थोटिक एंव प्रॉस्थिटिक एसोसिएशन के यूपी चैप्टर के सचिव भी हैं, बताते हैं कि बेहद कम दाम पर विश्वस्तरीय उपकरणों को बनाने वाली यहां कई ऐसी मशीनें हैं जो जमीन में फिक्स्ड हैं, उन्हें उखाड़ने और वापस लगाने का मतलब है, धन, समय की बर्बादी। इसी के साथ ही मशीनों को नुकसान होने की भी आशंका है। आर्टीफिशियल लिम्ब मैन्युफैक्चरिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एलिम्को) जैसी कम्पनियों की कुछ मशीनें तो ऐसी हैं जिनका निर्माण ही अब नहीं होता है। ऐसे में अगर ये ‘लोहालाट’ मशीनें खराब हुईं तो इसका सीधा असर दिव्यांगों के बनने वाले उपकरणों के उत्पादन पर पड़ेगा । ऐसे दिव्यांग फिलहाल लॉकडाउन के चलते घरों में रहकर समय काट रहे हैं। उनके हाथ, पैर के लिए सहायक उपकरण की नापें लॉकडाउन से पहले ले ली गयी थीं, अब उन्हें इंतजार लॉकडाउन खुलने का है। अपने अनुभव के आधार पर वे बताते हैं कि अनेक बार ऐसा होता है जब दिव्यांग उपकरण लेने आते हैं और जब उन्हें उपकरण फिट किये जाते हैं तो कहीं चुभने, कसने के चलते उन्हें उसी समय एडजस्ट किया जाता है, जिनमें इन मशीनों की खासी भूमिका होती है।
युद्ध में दिव्यांग हुए सैनिकों से जुड़ा है लिम्ब सेंटर का इतिहास
भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 में हुए युद्ध के बाद सैनिकों के पुनर्वास को ध्यान में रखते हुए डालीगंज में स्थापित इस पुनर्वास एवं कृत्रिम अंग केंद्र (आरएएलसी) की स्थापना की गयी थी। जो वर्तमान में किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्व विद्यालय (केजीएमयू) के अधीन होकर डिपार्टमेंट ऑफ फिजिकल, मेडिसिन एंड रिहैबिलिटेशन के रूप में कार्य कर रहा है।
केजीएमयू प्रशासन इसमें कोविड हॉस्पिटल बनाना चाहता है, इसकी खबर लगते ही यहां स्थित पांच विभागों के लोगों ने इस पर अपनी नाखुशी जतायी है। कर्मचारियों में आक्रोश को प्रतिनिधित्व देने के लिए कर्मचारी-शिक्षक संयुक्त मोर्चा ने भी अपना मोर्चा सम्भा्ल लिया है। हालांकि केजीएमयू प्रशासन की बात को मानें तो इसे कोविड अस्पताल बनाये जाने का प्रस्ताव जरूर है पर अंतिम रूप से कोई फैसला नहीं लिया गया है।
कर्मचारियों का कहना है कि अगर यह बिल्डिंग पूर्ण रूप से कोविड- 19 या कोरोना वार्ड की बिल्डिंग में तब्दील हो जायेगी, तो इन पाँचों विभागों का क्या होगा? इन पाँचों विभागों में अध्ययनरत एवं कार्यंरत लगभग 75 विद्यार्थियों के भविष्य का क्या होगा? इन पाँचों विभागों में आने वाले लाखों की संख्या में मरीजों का क्या होगा? गरीब, असहाय एवं दिव्यांग मरीजों के लिए एक बड़ी आफत होगी।
यहां के कर्मचारियों का कहना है कि कोविड अस्पताल के लिए ऐसी दूसरी जगह का चयन किया जाय जिससे यहां वर्तमान में चल रहे विभागों / दिव्यांगजन के पुनर्वास, एवं कृत्रिम अंग निर्माण के कार्यो में बाधा भी न पहुंचे, अवरोध भी न उत्पन्न हो, और न ही तोड़ फोड़ में करोड़ो की आधुनिक मशीनों को क्षति पहुंचे, और कोविड अस्पताल का निर्माण भी बिना किसी अवरोध के संपन्न भी हो जाये। केजीएमयू के पास ऐसे कई अन्य प्रांगण भी हैं, जो आबादी से थोड़ा हटकर भी है, और जिनका वर्तमान में कोई खास प्रयोग भी नहीं हो रहा है, उन प्रांगण का उपयोग भी बहुत सुगमता से किया जा सकता है, जैसे, पीजीआई के निकट माती में एस पी एम विभाग का निर्मित बड़़ा़ा प्रांगण, जैसे बंथरा में केजीएमयू के एस पी एम विभाग का प्रांगण एवं इमारत।
इस बीच पता चला है कि इस बिल्डिंग में कोविड हॉस्पिटल बनाने के खिलाफ यहां स्थित विभागों के सभी सीनियर और जूनियर रेजीडेंट्स कुलपति को शुक्रवार को एक ज्ञापन देंगे।