-दूसरे वर्गों को आर्थिक मदद, तो वित्तविहीन शिक्षकों का ध्यान क्यों नहीं ?

लखनऊ। उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रवक्ता एवं प्रदेशीय मंत्री डॉ० महेंद्र नाथ राय ने बताया कि सरकार जहां कोरोना महामारी में सभी वर्गों को राहत दे रही है वहीं प्राथमिक से लेकर विश्वविद्यालय तक के वित्तविहीन शिक्षकों एवं कर्मचारियों की तरफ आंख बंद किए हुए हैं। हाल ही में कानून मंत्री ने वकीलों को भी ₹5000 आर्थिक सहायता देने की घोषणा की है, यह स्वागतयोग्य है लेकिन शिक्षा मंत्री को वित्तविहीन शिक्षक क्यों दिखाई नहीं दे रहे हैं। सरकार को उन्हें भी आर्थिक मदद देनी चाहिये।
यह बात उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ चंदेल गुट के प्रदेशीय मंत्री, कालीचरन इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य व लखनऊ खंड शिक्षक एमएलसी प्रत्याशी डॉ महेन्द्र नाथ राय ने एक विज्ञप्ति में कही है। ट्रांस्पोर्टेशन शुल्क माफ किये जाने पर उनका कहना है कि विद्यालयों द्वारा लोन पर ली हुई गाडि़यों की किस्त कैसे जायेगी, उनके ड्राइवर को वेतन कैसे दिया जायेगा, सरकार इसके लिए भी कुछ प्रावधान करे।
उन्होंने कहा है कि सरकार प्रबंधक एवं प्रधानाचार्य से मार्च माह का प्रमाण पत्र देयक मांग रही है। सरकार चाहती है कि शिक्षक और प्रबंधक आपस में लड़ें और सरकार के ऊपर कोई देनदारी न रहे यानि कि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे। उन्होंने कहा कि प्रबंधक वेतन दे रहे थे या नहीं दे रहे थे इसका पता सरकार ने आज तक क्यों नहीं लगाया। अगर प्रबंधक अब तक अपने शिक्षकों को वेतन देते रहे है़ं तो इस समय भी अवश्य देगें। वित्तविहीन व्यवस्था में दो प्रकार के विद्यालय हैं एक तरफ शहरों के सीबीएसई और आईसीएससी बोर्ड के विद्यालय हैं जहां के प्रबंधक मुख्यमंत्री के केयर फंड में भी लाखों रुपए दान दे रहे हैं, उनके यहां वेतन देने की कोई समस्या होगी ही नहीं, वहीं दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद से मान्यता प्राप्त विद्यालय हैं, जो अधिकांशतः ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित है।
चूंकि पहले प्रकार के विद्यालय में एडमिशन के लिए मारामारी होती है, अतःउन विद्यालयों के पढ़ने वाले छात्रों की फीस जमा नहीं होगी, इसकी तो कोई संभावना ही नहीं है। जबकि दूसरे प्रकार के विद्यालयों में गरीब किसान और मजदूरों के बच्चे पढ़ते हैं, जो हर महीने कमाते हैं और अपने बच्चे की फीस जमा करते हैं। इसमें लेटलतीफी भी होती है लेकिन उनके भरोसे ही विद्यालय चलाना रहता है अतः विद्यालय उनको फीस जमा करने में छूट प्रदान करते रहते हैं। सरकार द्वारा जो 3 महीने फीस न लेने का आदेश हुआ है उसका पालन इन्हीं ग्रामीण कस्बे के विद्यालयों में होगा क्योंकि वहां पढ़ने वाले छात्रों के अभिभावक कभी भी ऑन लाइन माध्यम से फीस नहीं जमा किए हैं।
डॉ राय का कहना है कि विद्यालय जो फीस प्राप्त करता है उसी से वेतन देते हैं, उसी से विद्यालय के भवन बनाने के लिए जो लोन लिया है, उसकी किस्ते जमा करते हैं, उसी के द्वारा किस्तों पर ही ट्रांसपोर्ट के साधनों की भी व्यवस्था करते हैं।
ऐसे में वित्तविहीन शिक्षकों को आर्थिक राहत प्रदान करने की आवश्यकता है। शासन द्वारा प्रमाण पत्र देयक मांगने से क्या वित्तविहीन शिक्षकों को राहत मिल जाएगी? प्रबंधक कभी नहीं लिख कर देगें कि हमने वेतन नहीं दिया है, दूसरी ओर शिक्षक भी अपने प्रबंधक के खिलाफ नहीं जाएगें क्योंकि उसे भी अपना भविष्य देखना है। रोजगार तो उसे सरकार ने दिया नहीं है, वह उसे प्रबंधन ने दिया है ऐसे में जो रोजगार मिला है उसे भी वह छोड़ने का साहस नहीं कर पाएगा। इसके अलावा विद्यालय के प्रबंधक एवं उसके शिक्षक एक ही गांव के या अगल-बगल के गांव के होते हैं। प्रबंधक की आर्थिक दशा शिक्षक जानते हैं और शिक्षक की आर्थिक दशा प्रबंधक जानते हैं।प्रबंधक अपने शिक्षकों को भुखमरी में नहीं जीने देगें अगर उनके पास पैसा होगा तो जरूर देगें, कुछ अपवादों को छोड़कर।
डॉ राय का कहना है कि मांग आर्थिक राहत प्रदान करने की हो रही है न कि वेतन की। जिस तरह से सरकार समाज के हर वर्ग को राहत प्रदान कर रही है उसी तरह प्राथमिक से लेकर डिग्री कॉलेज तक के वित्तविहीन शिक्षकों को भी राहत प्रदान करना सरकार की जिम्मेदारी है। एक तरफ सरकार कहती है कि फीस नहीं लेना है, और दूसरी तरफ आप वेतन का प्रमाण पत्र मांग रहे हैं। इस बात की पूरी संभावना है कि अधिकारीगण सारे विद्यालयों से लिखवा कर दिला देंगे कि वेतन दिया जा चुका है जबकि धरातल पर शिक्षक को कुछ भी नहीं मिला रहेगा।
उन्होंने बताया कि लॉक डाउन हुए लगभग 1 महीने होने जा रहा है शिक्षक साथियों को अभी तक कोई भी राहत प्रदान नहीं की गई केवल वादों का झुनझुना ही पकड़ाया जा रहा है। ऐसे में अनुरोध यह है कि उन्हें प्रबंधकों से लड़ाने का कार्य बंद कर तत्काल उनके खाते में ₹5000 कम से कम आर्थिक सहायता प्रदान करने की व्यवस्था की जाये। शिक्षक और प्रबंधक मिलकर के ही विद्यालय को आगे ले जा सकेंगे आपस में लड़कर नहीं।
उन्होंने कहा कि इसके अलावा सरकार द्वारा ट्रांसपोर्टेशन शुल्क भी नहीं लेने का आदेश हुआ है, ऐसे में बड़ा सवाल यह भी है कि क्या विद्यालय की जो गाड़ियां लोन पर ली गई होंगी उनकी किस्तें शासन द्वारा माफ कराने का भी कोई प्रस्ताव है? उन गाड़ियों को चलाने वाले ड्राइवरों को वेतन कहां से मिलेगा, इसके बारे में भी कोई प्रस्ताव है? अगर नहीं है तो उन्हें भी आर्थिक सहायता प्रदान करके उनको भी भुखमरी में जाने से बचाने का कार्य शासन को करना चाहिए।

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