-22 अप्रैल को व्हाइट डे और 23 अप्रैल को ब्लैक डे मनायेंगे देश भर के चिकित्सक
-अध्यादेश लाकर विशेष केंद्रीय कानून लाने की मांग
धर्मेन्द्र सक्सेना
लखनऊ। दुनिया भर में फैले कोरोना वायरस से जंग लड़ रहे भारत में अग्रिम पंक्ति में खड़े योद्धाओं यानी चिकित्सकों व चिकित्सा कर्मियों पर देश के अनेक हिस्से में हो रहे दुर्व्यवहार, मारपीट की घटनाओं को लेकर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने चिंता जताते हुए कहा है कि बस अब बर्दाश्त की सीमा समाप्त हो रही है। डॉक्टर जो मरीजों का इलाज कर रहा है उसकी मौत के बाद भी कुछ लोगों का नजरिया ऐसा नकारात्मक कि उसके शव के अंतिम संस्कार को लेकर सवाल उठाया जा रहा है। अब समय आ गया है कि केंद्र सरकार एक अध्यादेश के जरिये डॉक्टरों, नर्सों, स्वास्थ्य देखभाल कर्मचारियों और अस्पतालों पर हिंसा के खिलाफ एक विशेष केंद्रीय कानून लाया जाये। इसके लिए 22 अप्रैल को देश भर के व्हाइट डे मनायेंगे और फिर भी हमारी मांग पर ध्यान नहीं दिया गया तो अगले दिन 23 अप्रैल को आईएमए ब्लैक डे मनायेगा।
आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ राजन शर्मा और राष्ट्रीय महासचिव डॉ आरवी असोकन ने आज 20 अप्रैल को मुख्यालय से आईएमए के सभी राज्य अध्यक्षों, सचिवों, सभी स्थानीय शाखा अध्यक्षों, सचिवों, सभी राष्ट्रीय पदाधिकारी, सभी पूर्व अध्यक्षों व सचिवों तथा केंद्रीय कार्यकारिणी कमेटी किे सदस्यों को पत्र भेज कर कहा है कि अब तक इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने अत्यधिक संयम और धैर्य बनाए रखा है। डॉक्टर्स के साथ्ज्ञ दुर्व्यवहार, मारपीट, उनकी रहने वाले सोसाइटी में उनके प्रवेश, उनको रहने में बाधा हो रही है। अब तो हद यह हो गयी जो डॉक्टर इलाज करते है, उनकी मृत्यु होने के बाद सोसाइटी वाले उनका अंतिम संस्कार न करने दें, यह बर्दाश्त होना मुश्किल है।
दोनों डॉक्टर्स ने अपने पत्र में कहा है कि हम डॉक्टरों, नर्सों, स्वास्थ्य देखभाल कर्मचारियों और अस्पतालों द्वारा हिंसा के खिलाफ अध्यादेश लाकर एक विशेष केंद्रीय कानून की मांग करते हैं।उन्होंने कहा कि कई हिंसक घटनाओं के बाद आज हम वहीं हैं जहां हमने अपनी यात्रा शुरू की थी। कोविद 19 ने हमें नासमझ दुर्व्यवहार और हिंसा के खिलाफ हमारी बेबसी के बारे में जागरूक किया है। हमारा धैर्य और संयम हमारी शक्ति का संकेत है। पत्र में कहा गया है कि सुरक्षित कार्यस्थलों के लिए हमारी वैध जरूरतों को पूरा करना होगा। दुरुपयोग और हिंसा तुरंत बंद होनी चाहिए।
पत्र में कहा गया है कि 22 अप्रैल को व्हाइट डे एक प्रकार की चेतावनी है, इस दिन सभी डॉक्टर सफेद एप्रन पहनकर विरोध और सतर्कता के रूप में एक मोमबत्ती जलायेंगे। उन्होंने कहा है कि बेहतर होगा कि हमारे सफेद को लाल न होने दें, डॉक्टरों को सुरक्षित रहने दें, अस्पतालों को सुरक्षित रहने दें।
यदि सरकार व्हाइट डे के बाद भी डॉक्टरों और अस्पतालों के खिलाफ हिंसा पर केंद्रीय कानून लागू करने में विफल रहती है तो फिर हम गुरुवार 23 अप्रैल को काला दिवस मनायेंगे। इस दिन देश के सभी डॉक्टर्स काला फीता बांध कर काम करेंगे। पत्र में कहा गया है कि यदि काला दिवस के बाद भी सरकार द्वारा उचित कदम नहीं उठाए गए तो आगे के निर्णय लिए जाएंगे।
इन घटनाओं ने किया विचलित
आपको बता दें कि चेन्नई में कोरोना वायरस से जान गंवाने वाले डॉक्टर का अंतिम संस्कार स्थानीय लोगों ने रोका था, जिसके बाद शहर के एक अन्य इलाके में उनका अंतिम संस्कार किया गया था। हुआ यूं कि 13 अप्रैल को एक निजी अस्पताल में 56 वर्षीय एक डॉक्टर की मौत हो गई थी। डॉक्टर के शव को अम्बत्तूर क्षेत्र में श्मशान घाट ले जाया गया जहां स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया और कहा कि इससे उनके क्षेत्र में कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने की आशंका है। इसके बाद आंध्र प्रदेश के नेल्लुर के रहने वाले इस व्यक्ति के शव को वापस अस्पताल के मुर्दाघर में ले जाया गया, जिसके बाद उसी रात उनका अंतिम संस्कार शहर के किसी अन्य क्षेत्र में किया गया।
अड़ोसी-पड़ोसी ही लगा रहे अड़ंगा
इसी प्रकार एक घटना उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की है, यहां एक निजी मेडिकल कॉलेज में काम करने वाले वृंदावन योजना निवासी डॉक्टर दम्पति का बच्चा बहुत छोटा है, पहले तो ड्यूटी का समायोजन करते हुए काम चलता रहा, एक ड्यूटी करता था तो दूसरा सम्भाल लेता था, लेकिन जब कोरोना का कहर बढ़ा तो दोनों की ड्यूटी लग गयी, ऐसे में बच्चे की देखरेख के लिए दम्पति ने कामवाली बाई को रख लिया, बताया जाता है कि इस पर अगल-बगल रहने वाले लोगों ने विरोध जताया। इसी प्रकार मेरठ में भी एक डॉक्टर पर पड़ोसियों द्वारा हमला किये जाने की घटना दो दिन पूर्व हुई है।