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गुटखा खाने वाले लोग कुछ-कुछ दिनों में गोलगप्‍पे भी खाया करें

– समय रहते लगाया जा सकता है मुंह के कैंसर का पता

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। जो लोग पान मसाला, गुटखा खाते हैं, उनके लिए यह सलाह है कि बीच-बीच में गोलगप्‍पे (चाट वाले पानी के बताशे) भी खा लिया करें, आप सोच रहे होंगे कि पान मसाले से गोलगप्‍पे का क्‍या सम्‍बन्‍ध, जी हां सम्‍बन्‍ध है। यह सम्‍बन्‍ध है बताशे खाने के लिए मुंह खोलने का।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन लखनऊ के अध्‍यक्ष (2017) व वरिष्ठ पैथोलॉजिस्ट डॉ पीके गुप्‍ता ने विश्‍व कैंसर दिवस के मौके पर कहा कि एक सलाह हम चिकित्सक उन लोगों को अक्सर देते हैं कि गुटखे का लगातार सेवन करते हैं। उन्‍होंने कहा कि इस सलाह के अनुसार गुटखा का सेवन करने वालों को समय-समय पर जांच तो करानी ही चाहिये, बीच-बीच में चाट वाले पानी के बताशे जरूर खायें। उन्‍होंने कहा कि बताशे खाने के लिए यदि आपका मुंह पूरा नहीं खुल रहा है, मुंह खोलने में दिक्‍कत हो रही है तो यह कैंसर की पहली अवस्‍था हो सकती है, जिसे म्‍यूकोसल फाइब्रोसिस कहते हैं, ऐसी स्थिति में गुटखा खाना छोड़कर तुरंत चिकित्‍सक से सम्‍पर्क करना चाहिये।

उन्‍होंने बतया कि यह दिवस वर्ष 2000 से मनाया जाता है इसकी शुरुआत फ्रांस की राजधानी पेरिस से हुई तब से हर वर्ष इस दिन कैंसर के विषय मे जागरूकता अभियान चलाया जाता है जिसमे कैंसर के जांच और इलाज से जुड़े डॉक्टर्स  इंडियन मेडिकल एशोसिएशन और बहुत से आम लोगो से जुड़ी संस्थाएं भाग लेती हैं। इस बार की थीम है आई कैन एंड आई विल मतलब है हर व्यक्ति अपने स्तर पर भी कैंसर की जानकारी बढ़ा कर इस रोग से लड़ कर जीत सकता है।

डॉ गुप्‍ता ने कहा कि मैं विशेष रूप से कैंसर के प्ररंभिक जांच के विषय मे लोगों को जागरूक करना चाहूंगा इस जांच में पैथोलॉजिस्ट की भूमिका होती है जो कि इस विधा में पारंगत होते हैं बिना टिश्यू निदान के कोई भी सर्जन या मेडिकल अथवा रेडियो ऑन्कोलॉजिस्ट इलाज को आगे नहीं बढ़ा सकता है यह जरूरी है कि आम जन कैंसर जाँच के विशेषज्ञ की भी जानकारी बढ़ाये आम लोगो मे ये धारणा है कि किसी गाँठ की सुई द्वारा अथवा बॉयोप्सी से कैंसर फैलने की संभावना बढ़ जाती है जबकि ये भ्रान्ति है ऐसा कुछ भी नहीं होता बल्कि जाँच द्वारा कैंसर प्राम्भिक अवस्था मे निदान होने से इलाज के सफल होने का प्रतिशत बढ़ जाता है।

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उन्‍होंने बताया कि कैंसर कई प्रकार के होते हैं आम जानकारी के लिए इसे कार्सिनोमा सार्कोमा लिंफोमा मायलोमा ल्यूकेमिया आदि कहते है। डॉ गुप्‍ता ने बताया कि जाँच के नमूनों में रक्त बोन मेरो गाँठ की टिश्‍यू या उत्तक बॉडी फ्लूइड यूरिन सुई द्वारा निकाला गया द्रव्य आदि हो सकता है।

डॉ गुप्‍ता ने बताया कि आज के दिन कैंसर जागरूकता का उद्देश्य आम लोगों को इससे बचने के उपाय, कैंसर के प्रारम्भिक लक्षण तथा इलाज की जानकारियां को साझा करना भी होता है जिससे लोगों में कैंसर का भय खत्म किया जा सके। कैंसर का चिन्ह केकड़ा होता है जिसे देख कर लोगों मे भय व्याप्त हो जाता था उसे कई चिकित्सा केंद्रों ने अपने यहाँ से हटा दिया है, मकसद है कैंसर होने के बाद इलाज के लिए आगे आना है।

डॉ गुप्‍ता ने कहा कि इसका तात्पर्य यह नहीं कि आम जन कैंसर से बचाव के लिए तत्पर न रहे, युवाओं में मुख का कैंसर गुटखा सेवन करने वालो को बड़ी संख्या में हो रहा है। इसका भयंकर चित्र युवाओं को गुटखे से बचने के लिए प्रेरित कर सकता है मुख के कैंसर होने की अवस्था मे मरीज को बहुत बड़ी सर्जरी से गुजरना पड़ता है जो कि समाज और सरकार पर बहुत बड़ा आर्थिक बोझ है कैंसर के इलाज के लिए मानवीय संसाधन की बहुत कमी है, इसलिए बचाव एक कारगर कदम है जो लगातार चलता रहना चाहिए।