लखनऊ। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्व विद्यालय के दो चिकित्सकों पर लगे किडनी चोरी के आरोप पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की लखनऊ शाखा ने आपत्ति जताते हुए इसे गलत भावना से किया गया कार्य बताया है तथा इस सम्बन्ध में लिखी गयी एफआईआर को रद्द करने के लिए एक अनुरोध पत्र भेजा है पत्र के साथ आरोपों को निराधार बताने के पीछे दिये गये तर्क भी दिये गये हैं।
एफआईआर लिखते समय सुप्रीम कोट की व्यवस्था का पालन नहीं किया गया
आज आईएमए भवन पर आयोजित एक पत्रकार वार्ता में आईएमए लखनऊ शाखा के अध्यक्ष डॉ पीके गुप्ता और सचिव डॉ जेडी रावत ने यह जानकारी पत्रकारों को दी। चिकित्सकद्वय ने बताया कि पुलिस महानिदेशक को भेजे पत्र में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था के अनुसार डिग्रीधारी चिकित्सक के खिलाफ शिकायत आने पर मेडिकल बोर्ड की जांच के पश्चात ही एफआईआर लिखी जा सकती है जिसका इस केस में एफआईआर लिखते समय पालन नहीं किया गया।
ज्ञात हो डॉ आनंद मिश्र और डॉ संदीप तिवारी के खिलाफ किडनी चोरी के आरोप में बाराबंकी के थाने पर प्राथमिकी दर्ज करायी गयी है जिसमें एक व्यक्ति, जिसका ढाई साल पूर्व केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर में इलाज हुआ था, की किडनी चोरी का आरोप लगाया गया है। पत्रकार वार्ता में दोनों आरोपी चिकित्सक डॉ आनंद मिश्र व डॉ संदीप तिवारी के साथ ही केजीएमयू के प्रवक्ता डॉ नरसिंह वर्मा भी मौजूद थे।
किडनी चोरी के आरोप बिल्कुल निराधार
पत्रकार वार्ता में बताया गया कि ढाई साल पूर्व 19 फरवरी, 2015 की शाम करीब 7 बजे पृथ्वीराज नाम के मरीज को पेट की गंभीर इंजरी के साथ बहुत सीरियस स्थिति में ट्रॉमा सेंटर में भर्ती किया गया था उसका ब्लड प्रेशर काफी कम था। मरीज का तुरंत ही इलाज शुरू किया गया तथा करीब रात करीब पौने बारह बजे ऑपरेशन थियेटर में ले जाया गया। बताया गया कि ऑपरेशन के दौरान पाया गया कि मरीज के पेट में चारों तरफ मल और आंतों का गंदा पानी भरा हुआ था तथा आंत का ऊपरी हिस्सा पूरी तरह से कटा-फटा था साथ ही आंत के बीच का हिस्सा भी फटा हुआ था। बताया गया कि उसकी आंतों को रिपेयर किया गया तथा तेजाब को डायवर्ट करने के लिए आंत के ऊपरी हिस्से में एक नली तथा खाना देने के लिए आंत के बीच के हिस्से में नली लगा दी गयी। इसके अतिरिक्त पेट का गंदा पानी निकालने के लिए दोनों तरफ नलियां डाल दी गयीं। यही नहीं इस दौरान खून की जरूरत पडऩे पर जूनियर रेजिडेंट ने खून भी दिया।
अथक मेहनत से बचाया गया था मरीज को, खून भी डॉक्टरों ने दिया था
चिकित्सकों ने बताया कि इस ऑपरेशन के दौरान उसकी किडनी का कोई ऑपरेशन नहीं किया गया। उन्होंने बताया कि अतिगम्भीर स्थिति में आये मरीज को अथक मेहनत करने के बाद बचाया जा सका था तथा 17 मार्च 2015 को उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गयी थी।
चिकित्सकों ने बताया कि ढाई साल बाद अब मरीज का यह आरोप लगाना कि डॉक्टरों ने किडनी चुरा कर बेच दी, पूर्णत: असत्य एवं निराधार है, क्योंकि उसके गुर्दे का ऑपरेशन किया ही नहीं गया था। साथ ही इतनी गंभीर स्थिति में आये मरीज की किडनी निकालकर उसका प्रत्यारोपण किया ही नहीं जा सकता तथा आंत फटे होने और चारों तरफ मल और गंदा पानी पड़ा होने के कारण इन्फेक्शन होने की स्थिति में गुर्दा प्रत्यारोपण की स्थिति में नहीं होता।
चिकित्सकों ने कहा कि गुर्दा प्रत्यारोपण के लिए दोनों मरीजों के गुर्दे का मिलान कराने के लिए करीब 7 से 10 दिनों का वक्त लगता है ये सभी प्रक्रियायें इमरजेंसी में आये मरीज में संभव ही नहीं हैं। साथ ही गुर्दा प्रत्यारोपण एक बड़ी प्रक्रिया है और ऐसी सर्जरी ट्रॉमा सेंटर की ओटी में संभव ही नहीं है। साथ ही ऐसी सर्जरी के लिए विशेष ट्रेनिंग की आवश्यकता होती है जो कि जनरल सर्जरी विभाग में संभव ही नहीं है। सन 2015 में लखनऊ में संजय गांधी पीजीआई के अलावा कहीं गुर्दा प्रत्यारोपण की सुविधा ही उपलब्ध नहीं थी। बाहर ले जाने के लिए विशेष व्यवस्थाओं की जरूरत पड़ती है जो कि रात में संभव ही नहीं है।
चिकित्सकों की प्रतिष्ठा एवं सम्मान पर आघात
चिकित्सकों ने कहा कि इस तरह का आरोप लगाना प्रतिष्ठित संस्थान और प्रतिष्ठित डॉक्टरों की प्रतिष्ठा एवं सम्मान पर आघात है, साथ ही इलाज की प्रक्रिया का अपराधीकरण करने की कोशिश है। चिकित्सकों ने बताया कि एफआईआर रद्द करने और आरोपों के झूठ को बेनकाब करने के लिए तथ्यों को रखते हुए भेजा गये पत्र की प्रतिलिपि उत्तर प्रदेश के राज्यपाल और मुख्यमंत्री को भी भेजी गयी है।