राज्यपाल और मुख्यमंत्री से कार्रवाई करने की अपील
लखनऊ। संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान एसजीपीजीआई में फैकल्टी फोरम ने संस्थान में की गयी पुनर्नियुक्तियों में नियमों की अनदेखी पर आपत्ति जतायी है, इसके अतिरिक्त निदेशक के एक से अधिक प्रशासनिक पदों पर काबिज रहने तथा कुछ विभागों में विभागाध्यक्षों की मनमानी पर भी फोरम ने सवाल उठाये हैं। इन सभी मुद्दों को लेकर फोरम ने मुख्यमंत्री और राज्यपाल से काररवाई की सिफारिश की है।
पुनर्नियुक्तियों को लेकर संस्थान मेंं कोई समान नीति नहीं
यहां जारी विज्ञप्ति के अनुसार फैकल्टी फोरम के अध्यक्ष प्रो. अशोक गुप्ता की अध्यक्षता में बीती 5 मई को जनरल बॉडी की बैठक हुई, इस बैठक में 50 से अधिक सदस्यों ने महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की। विज्ञप्ति के अनुसार बैठक में संस्थान से रिटायर होने वाले दो फैकल्टी सदस्यों की पुनर्नियुक्ति पर घोर आपत्ति जतायी गयी। बैठक में सदस्यों का कहना था कि दो फैकल्टी की पुनर्नियुक्तियों को लेकर जारी ऑफिस ऑर्डर से यह दिखता है कि संस्थान में पुनर्नियुक्तियों को लेकर कोई समान नीति नहीं है। बैठक में कहा गया कि केंद्र व राज्य सरकारों के नियमों के अनुसार सेवानिवृत्ति के बाद फिर से नियुक्ति उसी दशा में होनी चाहिये जबकि कोई योग्य व्यक्ति उपलब्ध न हो, साथ ही रिटायर होने से छह माह या एक साल पूर्व से दूसरे फैकल्टी की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू कर देनी चाहिये। यही नहीं अगर पुनर्नियुक्ति की भी जाती है तो छह माह के लिए ही की जायेगी और इन छह माह में दूसरी फैकल्टी की नियुक्ति कर ली जानी चाहिये। नियम में यह भी है कि यदि अपरिहार्य रूप से पुनर्नियुक्ति की जाती है तो सिर्फ उतने ही समय के लिए होती है जितने समय में दूसरी नयी नियुक्ति न कर ली जाये। इसके लिए भी विस्तृत औचित्य के साथ संस्थान के सांविधिक मंडल के पास अनुमोदन के लिए भेजा जाना चाहिये। इस मामले में संजय गांधी संस्थान प्रशासनिक निकाय और उसके बाद स्टेट कैबिनेट को कम से कम तीन माह पूर्व इस संदर्भ मेें जानकारी दिया जाना आवश्यक है।
बैठक में इस नियम का भी जिक्र किया गया कि पुनर्नियुक्ति की दशा में निर्धारित वेतन न्यूनतम स्तर पर किया जाना चाहिये और यही नहीं जिस पद पर पुनर्नियुक्ति की जा रही है उस पद के अन्य लोगों से उसे सबसे जूनियर समझा जाना चाहिये, यानी यदि प्रोफेसर पद पर पुनर्नियुक्ति की गयी है तो उस समय कार्यरत अन्य प्रोफेसरों से उसे सबसे जूनियर माना जायेगा।
निदेशक के साथ विभागाध्यक्ष के पद पर रहने पर भी फैकल्टी फोरम ने जतायी आपत्ति
बैठक में इस बात पर भी चर्चा की गयी कि नियमानुसार एक समय में एक ही व्यक्ति एक से ज्यादा प्रशासनिक पदों पर कार्यरत नहीं रह सकते क्योंकि यह मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की गाइडलाइन्स की अवमानना है। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के संशोधित 1998 एक्ट में कहा गया है कि मेडिकल कॉलेज या संस्थान में डीन, प्रिंसिपल, डाइरेक्टर एवं मेडिकल सुपरिन्टेन्डेंट के पदों पर रहते हुए कोई भी अधिकारी विभागाध्यक्ष नहीं हो सकता। इस सम्बन्ध में उच्चतम न्यायालय व राज्यपाल उत्तर प्रदेश के भी साफ निर्देश हैं। इसके विपरीत निवर्तमान एवं मौजूदा निदेशकों ने अपने पद पर रहते हुए विभागाध्यक्ष का पद नहीं छोड़ा। बैठक में यह भी कहा गया कि इस तरह के कृत्यों से विभाग में मौजूद योग्य फैकल्टियों में रोष है तथा कई प्रतिभाएं दूसरे कॉरपोरेट संस्थानों में पलायन भी कर गयीं।
रोटेशन हेडशिप की प्रक्रिया शुरू करने की सिफारिश
सदस्यों ने एक और महत्वपूर्ण मुद्दे पर बात करते हुए कहा कि कुछ विभाग खराब नेतृत्व के कारण अच्छा कार्य नहीं कर पा रहे हैं। यह देखा गया है कि विभागाध्यक्ष दूसरे प्रतिभावान फैकल्टी की प्रतिभा की चिंता नहीं करते और मनमाने ढंग से विभाग में कार्य चलाना चाहते हैं। बैठक में कहा गया कि यही सही समय है जब विभाग में सीमित समय के रोटेशन हेडशिप की प्रक्रिया शुरू की जाये।
संकाय सदस्यों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर पूरी आस्था रखते हुए इन सभी मुद्दों पर उचित कार्रवाई करने की मांग की है जिससे संस्थान का कार्य नियमानुसार एवं सुचारु रूप से चल सके। सदस्यों ने राज्यपाल से भी इस विषय में ध्यान देने का आग्रह किया है।