-सीओपीडी के 40 फीसदी रोगी ऐसे जो धूम्रपान नहीं करते हैं
-केजीएमयू के पल्मोनरी विभाग की स्टडी में आया सामने
लखनऊ। जरूरी नहीं है धुआं सिगरेट का ही हो, कोई भी धुआं फेफड़ों के लिए खतरनाक है, और यह क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज का कारण बनता है। स्टडी में यह पाया गया है कि 40 फीसदी सीओपीडी के मरीज ऐसे थे जो धूम्रपान नहीं करते थें, इनमें भी महिलाएं 70 प्रतिशत और पुरुष 30 फीसदी हैं। बायोमास फ्यूल का धुआं भी व्यक्ति के लिए नुकसादायक है, यह धुआं चूल्हे, स्टोव, अंगीठी आदि से निकलता है, एक भारतीय महिला औसतन छह से सात घंटे रोज रसोई में गुजारती है, ऐसी स्थिति में रोजाना सौ सिगरेट के बराबर धुआं उसके शरीर में चला जाता है। यह स्टडी किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के पल्मोनरी विभाग द्वारा की गयी है, इसका प्रकाशन इंटरनेशनल जरनल में हाल ही में हुआ है।
इस बारे में जानकारी आज एक पत्रकार वार्ता में पल्मोनरी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो सूर्यकांत ने दी। प्रो सूर्यकांत ने बताया कि अगस्त 2014 से जुलाई 2016 तक दो साल तक आये सीओपीडी के 360 मरीजों को स्टडी में शामिल किया गया। इनके विश्लेषण में पाया गया कि इनमें धूम्रपान करने वाले 216 तथा धूम्रपान न करने वाले 144 लोग थे, यानी 40 फीसदी सीओपीडी के मरीज ऐसे थे जो धूम्रपान नहीं करते थे। धूम्रपान न करने वाले लोगों में सीओपीडी की शुरुआत 51 से 60 साल के बीच हुई और धूम्रपान करने वालों को सीओपीडी की शुरुआत 60 से 70 वर्ष की आयु के बीच हुई।
नॉनस्मोकर्स को सीओपीडी स्मोकर्स की अपेक्षा 10 साल पहले होने के कारणों के बारे में उन्होंने बताया कि आम तौर पर करीब 10 साल की बच्ची अपनी मां का हाथ बंटाने के लिए किचन में काम करना शुरू कर देती है, यानी बायोमास फ्यूल वाले धुएं की चपेट में आ जाती है, इसके विपरीत लड़के धूम्रपान की शुरुआत 20 वर्ष की आयु में करते हैं। यानी धुएं के सम्पर्क में लड़कों से पहले लड़कियां आ जाती हैं। इसीलिए आमतौर पर नॉन स्मोकर्स में 50 साल के बाद और स्मोकर्स में 60 वर्ष की आयु के बाद सीओपीडी की शिकायत पायी जाती है।
धूम्रपान न करने वाले सीओपीडी के मरीजों में खांसी-बलगम की शिकायत और स्मोकर्स में सांस की शिकायत ज्यादा पायी गयी। उन्होंने कहा कि रोग की तीव्रता स्मोकर्स में पायी गयी जबकि नॉन स्मोकर्स में इतनी तीव्रता नहीं थी, क्योंकि 25 फीसदी नॉन स्मोकर्स की सीओपीडी एक्सरे में पकड़ में ही नहीं आयी।
उन्होंने कहा कि ग्लोबल इनीशिएटिव फॉर ऑब्सट्रक्टिव लंग डिजीज की स्टडी में पाया गया है कि नॉन स्मोकर्स में ग्रेड 2 की स्मोकर्स में ग्रेड 3 की सीओपीडी ज्यादा पायी गयी। यानी सीओपीडी की तीव्रता स्मोकर्स में ही है, क्योंकि बायोमास धुएं में 200 तरह के विषैले केमिकल निकलते है जबकि धूम्रपान के धुएं में 7000 प्रकार के विषैले तत्व हैं। यानी बीड़ी-सिगरेट पीने वाला व्यक्ति 7000 प्रकार के विषैले तत्व अपने शरीर में अंदर कर रहा है।