वर्ल्ड प्लास्टिक सर्जरी डे के मौके पर आईएमए में आयोजित हुई सीएमई
लखनऊ। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन लखनऊ के तत्वावधान में सोमवार को वर्ल्ड प्लास्टिक सर्जरी डे मनाया गया। आईएमए भवन में इस अवसर पर एक सतत् चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) का आयोजन किया गया। सीएमई में चार विशेषज्ञों ने अलग-अलग विषयों पर अपने लेक्चर दिये।
कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन से होने के बाद आईएमए, लखनऊ के अध्यक्ष डॉ जीपी सिंह ने आये हुए अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि केजीएमयू के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के हेड प्रो एके सिंह और विवेकानंद हॉस्पिटल के डॉ सुरजीत भट्टाचार्य के मॉडरेशन में आयोजित इस सीएमई के लिए मैं आप लोगों को बधाई देता हूं।
संजय गांधी पीजीआई के डॉ अंकुर भटनागर ने घाव प्रबंधन पर जानकारी देते हुए बताया कि किस तरह से घाव को हल्का नम रखते हुए घाव भरने की प्रक्रिया पूरी होने देनी चाहिये। उन्होंने कहा कि दुनिया में कोई भी दवा ऐसी नहीं है जो घाव भरती हो, उन्होंने कहा मरहम-पट्टी से घाव के आसपास की जगह को मेन्टेन रखने में मदद मिलती है, जिससे घाव भरने का रास्ता साफ हो जाता है। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार शिशु को पैदा करने के लिए मां के गर्भ में नौ माह का समय लगता है, कोई सोचे कि हम चार माह में शिशु पैदा कर लेंगे तो यह असंभव है इसी तरह घाव भी अपने आप ही निश्चित समय पर भरेगा।
केजीएमयू के प्रो बृजेश मिश्र ने टिशू ट्रांसप्लान्टेशन विषय पर बोलते हुए कहा कि ब्रेन डेड बॉडी से लिवर, किडनी जैसे अंगों की तरह अन्य अंग जैसे हाथ, पैर, गर्भाशय, चेहरे जैसे अंगों के प्रत्यारोपण की ओर भी जागरूकता लानी चाहिये। उन्होंने कहा कि लोगों को ब्रेन डेड मरीज की देहदान के प्रति जागरूकता और इसके लिए कानूनी रास्ता साफ करने के लिए काफी काम किये जाने की जरूरत है।
विवेकानंद हॉस्पिटल के डॉ अमित अग्रवाल ने टिशू रीजेनरेशन इंजीनियरिंग पर लेक्चर देते हुए कहा कि चोट लगने, डायबिटीज, कैंसर जैसी वजहों से ज्यादा मांस की भरपायी के लिए शरीर के किसी हिस्से से छोटा सा टुकड़ा लेकर उसके टिशू, स्टेमसेल को लैब में बढ़ाया जाता है, बाद में जब बड़ा हो जाता है तो उसे घाव को भरने में इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने बताया कि इस तरह शरीर के एक बड़े घाव को भरने के लिए दूसरी जगह से ज्यादा मांस निकाले जाने से पैदा होने वाली दिक्कतों से बचा जा सकता है।
विनायक कॉस्मेटिक सर्जरी एंड लेजर सेंटर के डॉ अनुपम सरन ने नॉन सर्जिकल फेशियल रेजुवेनेशन विषय पर अपनी प्रस्तुति में बताया कि आजकल महिलाओं में ही नहीं पुरुषों में भी सौंदर्य को बनाये रखने के प्रति काफी जागरूकता आयी है। उन्होंने बताया कि किस तरह चेहरे की झुर्रियों को मिटाने के लिए स्किन के नीचे से हीट देकर वहां नया टिशू जेनरेट किया जाता है। इस कार्य के लिए तीन से चार सिटिंग की जरूरत होती है। उन्होंने बताया कि इस ट्रीटमेंट का असर डेढ़ से दो साल रहता है, इसके बाद फिर से यही प्रक्रिया करनी होती है।
धन्यवाद भाषण आईएमए लखनऊ के सचिव डॉ जेडी रावत ने दिया। इस मौके पर वरिष्ठ प्लास्टिक सर्जन प्रो एसडी पाण्डेय, डॉ सुमित सेठ सहित कई चिकित्सक मौजूद रहे।