इन्हेलर से दवा लेने का मतलब कम दवा से सही जगह निशाना : डॉ सूर्यकांत
लखनऊ। इनहेलर थैरेपी से अस्थमा पर अच्छा कंट्रोल होता है लेकिन इसके प्रति लोगों का रुझान बहुत कम है नतीजा यह है कि सिर्फ 30 फीसदी लोग इनहेलर का इस्तेमाल करते हैं उन 30 फीसदी लोगों में भी सिर्फ 9 फीसदी ऐसे हैं जो इसका रेगुलर इस्तेमाल करते हैं। इनहेलर का इस्तेमाल अपने मन से छोड़ने की जरूरत नहीं है। दरअसल इनहेलर अस्थमा के खिलाफ वह हथियार है जिसके वार के आगे दुश्मन अस्थमा लाचार है। इसलिए दुश्मन अस्थमा के सामने बेहथियार न हों, ऐसा करने से दुश्मन अस्थमा को एक बार फिर सिर उठाने का मौका मिलेगा और वह मरीज पर दोगुनी ताकत से वार करेगा। यानी अस्थमा अटैक पहले से दोगुनी ज्यादा ताकत से शरीर पर वार करेगा।
यह जानकारी केजीएमयू के पल्मोनरी विभाग के हेड व इंडियन कॉलेज ऑफ एलर्जी अस्थमा एंड एप्लाइड इम्यूनोलॉजी के अध्यक्ष डॉ सूर्यकांत ने विश्व अस्थमा दिवस पर आयोजित प्रेस वार्ता में दी। उन्होंने बताया कि यह बड़ी दिक्कत है कि व्यक्ति जब ठीक होने लगता है और उसे अस्थमा के लक्षण भी नहीं दिखते हैं तो वह समझता है कि अब वह ठीक हो गया और इन्हेलर लेना बंद कर देता है। उन्होंने बताया यही गलत है दरअसल अस्थमा के लक्षण इसी लिए नहीं दिख रहे होते हैं क्योंकि रोगी दवा खाता रहा है। नतीजा यह होता है कि इनहैलर छोड़ने के बाद रोग फिर से ज्यादा तेजी से पकड़ लेता है। उन्होंने कहा कि अगर व्यक्ति को लगता है कि अब ठीक हो गया है तो उसे डॉक्टर की सलाह के बगर इनहेलर लेना बंद नहीं करना है।
डॉ सूर्यकांत ने कहा कि दरअसल अस्थमा एक दीर्घकालिक बीमारी है जो सांसों की नलियों में सूजन और नली का रास्ता सिकुड़ने से होती है। पुरुषों में यह बीमारी ज्यादा यानी 65 प्रतिशत पायी जाती है, देखा यह जा रहा है कि बच्चों में भी यह तेजी से बढ़ रही हैं, बच्चों में हर माह करीब 25 से 30 मामले नये पाये जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि करीब 20 फीसदी बच्चे किशोरावस्था में या उससे पहले इन्हेलर छोड़ देते हैं। उन्होंने कहा कि इन्हेलर थैरेपी की सबसे खास बात यह है कि इसकी दवा सीधे फेफड़े में पहुंचती है जिससे तुरंत और कारगर असर करती है।
इन्हेलर के बारे में लोगों को शिक्षित करने का अच्छा प्रयास : डॉ बीपी सिंह
वरिष्ठ चेस्ट फिजीशियन डॉ बीपी सिंह ने कहा कि अस्थमा जैसी दीर्घकालिक बीमारी से निपटने के लिए इससे बचाव और इन्हेलर के प्रयोग के बारे में लोगों को शिक्षित करने के लिए बेरोक जिन्दगी अभियान एक अच्छा प्रयास है। लोगों के शिक्षित होने से वे चिकित्सक के साथ सहयोग करते हुए जब उपचार लेंगे तो उन्हें निश्चित ही कारगर लाभ मिलेगा। उन्होंने कहा कि इन्हेलर को लेकर लोगों के अंदर बहुत सारी भ्रांतियां भी हैं, वे इसे सामाजिक लांछन की दृष्टि से देखते हैं। इसके अलावा इसके खर्च, साइड इफेक्ट जैसी बातें भी लोग सोचते हैं, इस बारे में लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि लोगों को बताना होगा कि भारत जैसे देश में अस्थमा का उपचार मात्र 4 से 6 रुपये प्रतिदिन के खर्च पर उपलब्ध है, यानी अगर पूरे साल समय से दवा लें तो भी वह एक रात के लिए अस्पताल में भर्ती होने के खर्च से कम है। कहने का तात्पर्य है कि चिकित्सक की सलाह के अनुसार इलाज लगातार लेते रहना ज्यादा सस्ता पड़ेगा बजाय इलाज छोड़ने के कारण ज्यादा बीमार होने पर अस्पताल में भर्ती होने से।
अस्थमा को रोकने की आधारशिला है इन्हेल्ड कोर्टिकोस्टराइड थैरेपी : डॉ एस निरंजन
वरिष्ठ बाल चिकित्सक डॉ एस निरंजन ने इन्हेल्ड कोर्टिकोस्टराइड थैरेपी के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यह थैरेपी अस्थमा को रोकने की आधारशिला है। इन्हेलर में दवा चूंकि सीधे फेफड़े में पहुंचती है इसलिए उसका साइट इफेक्ट शरीर के किसी अन्य अंग में होने की संभावना नहीं रहती है। यही नहीं दवा जो ओरल खायी जाती है उसमें इन्हेलर के मुकाबले ज्यादा दवा होती है जिससे उसके अन्य अंगों में पहुंचने की संभावना और ज्यादा होती है। उन्होंने कहा कि अस्थमा और सीओपीडी के मरीजों के लिए कोर्टिकोस्टराइड जीवनरक्षक हो सकते हैं।