लखनऊ। भेंगापन एक ऐसी अवस्था है जिसमें आंख की पुतली अपनी उचित जगह पर नहीं होती है। इसलिए दोनों आंखों को एक साथ देखने पर एक आंख की पुतली तिरछी नजर आती है, यह अवस्था बनी रहने पर व्यक्ति को दिक्कतें पैदा हो सकती है इसलिए आवश्यक है कि इसका समय रहते इलाज करा लिया जाये। इस बारे में सेहत टाइम्स ने किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्याल केजीएमयू के नेत्र विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो विनीता सिंह से बात की। प्रो. विनीता भेंगेपन के इलाज की विशेषज्ञ हैं तथा केजीएमयू भेंगेपन का इलाज करने वाला भारत का नम्बर वन सेंटर है।
प्रो.विनीता सिंह ने बताया कि भेंगापन दो प्रकार से होता है एक तो पैदाइशी तथा दूसरा बाद में होने वाला। पैदाइशी भेंगेपन का पता चलते ही इलाज करा लेना चाहिये क्योंकि इलाज न होने पर इसका प्रभाव आंख की रोशनी के सम्पूर्ण विकास मेंटल और साइकोसोशल पर पड़ता है। उन्होंने बताया कि इसी प्रकार बाद में होने वाले भेंगेपन की भी तुरंत ही जांच करानी चाहिये। उन्होंने बताया कि कभी-कभी इसका इलाज बिना सर्जरी किये दवाओं से ही हो जाता है।
भेंगापन होने के कारणों के बारे में पूछने पर प्रो विनीता सिंह ने बताया कि आंख की अंदरूनी मसल्स के असंतुलन के चलते भेंगापन हो जाता है। इसके इलाज के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि सर्जरी के द्वारा मसल्स को एडजस्ट किया जाता है। इसमें विशेष प्रकार के लेंस और प्रिजम के माध्यम से आंख की अंदरूरी मांसपेशियों को उपयुक्त जगह पर एडजस्ट किया जाता है। उन्होंने बताया कि ऑपरेशन के बाद ठीक होने में एक हफ्ते से छह हफ्ते का समय लग जाता है। निगाह को सामान्य होने में छह माह भी लग सकते हैं। उन्होंने बताया कि कभी-कभी अन्य बीमारियों की वजह से आंख की रोशनी में वृद्धि नहीं होती है।
प्रो. विनीता सिंह ने बताया कि भेंगेपन के इलाज के प्रति लोगों में जागरूकता काफी जरूरी है। उन्होंने बताया कि अभी बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्हें पता ही नहीं है कि भेंगेपन का इलाज हो सकता है। वह अपने इस शारीरिक दोष को अपनी नियति मानकर चलते रहते हैं और तकलीफ भरा जीवन व्यतीत करते हैं। उन्होंने बताया कि भेंगापन की स्थिति के चलते पायलट, ड्राइवर, सेना आदि जगहों पर नौकरी के लिए अर्हता रखने में विफल हो जाते हैं इसलिए आवश्यक है कि इसका इलाज तुरंत करा लिया जाये।