लखनऊ। पेट स्कैन के सहयोग से अब उन मरीजों में एंजियोप्लास्टी संभव हो चुकी हैं, जिन्हें अमूमन अभी तक क्रॉनिक हार्ट डिजीज या लाइलाज बीमारी मानकर दवाओं के भरोसे छोड़ दिया जाता रहा है। पेट स्कैन से लाइलाज हृदय रोगियों की संख्या बहुत कम हो चुकी है। यह जानकारी मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व मेदांता हार्ट सिटी के निदेशक डॉ नरेश त्रेहान ने दी। डॉ त्रेहान यहां कन्वेंशन सेंटर में कार्डियोलॉजिकल सोसाइटी के दो दिवसीय 23वें वार्षिक अधिवेशन कार्डिकॉन 2017 में भाग लेने आये हुए थे।
हार्ट रोगियों में पेट स्कैन का महत्व बताते हुये डॉ.त्रेहान ने बताया कि कई हार्ट रोगियो में कोरोनरी आर्टरीज क्षतिग्रस्त हो चुकी होती हैं, उन मरीजों में एंजियोग्राफी से स्पष्ट नहीं हो पाता है कि किस हिस्से में एंजियोप्लाष्टी होनी या बाई पास होना है। ऐसे मरीजों को क्रॉनिक मानकर एंजियोप्लास्टी व सर्जरी के लिए अनफिट कर देते थे। मगर अब पेट स्कैन से स्पष्ट हो जाता है कि आर्टरी में किस हिस्से का बाई पास होना है। पेट स्कैन तकनीक से लाइलाज हार्ट रोगियो की संख्या में बहुत कमी आ चुकी है। दो दिवसीय कार्डिकॉन 2017 का उद्घाटन किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.रविकांत ने किया, इसमें डॉ.मंसूर हसन, न्यायाधीश डॉ.एस के द्विवेदी समेत सैकड़ों हृदय रोग विशेषज्ञ मौजूद थे।
स्टेम सेल तकनीक से स्वस्थ होंगे जटिल हार्ट रोगी
डॉ.नरेश त्रेहान ने बताया कि स्टेम सेल तकनीक के आने से हृदय रोगियों के इलाज में क्र ांतिकारी परिवर्तन आ जायेगा। इस तकनीक से उन मरीजों को भी ठीक किया जा सकेगा, जिन्हें इस समय लाइलाज मानकर भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है। उन्हेांने बताया कि इस तकनीक में मरीज की बोन मैरो से स्टेम सेल लेकर, क्षतिग्रस्त आर्टरी या हार्ट अटैक पडऩे वाले स्थान (नॉन वाइबल टिशू )पर प्रत्यारोपित किया जायेगा। इसके कुछ माह उपरांत नई आर्टरी या नये टिशू का निर्माण शुरू हो जायेगा। यह तकनीक बहुत महत्वपूर्ण है मगर पांच से 10 साल इंतजार करना पडेग़ा, अभी तकनीक का ट्रायल चल रहा है।
गर्भवती की सांस फूले तो वॉल्व चेक कराएं : डॉ.नारायण
लारी कार्डियोलॉजी के विभागाध्यक्ष डॉ.वीएस नारायण ने बताया कि अगर गर्भवती महिला की सांस फूलने लगे तो हार्ट (वॉल्व) चेक कराना चाहिये, क्योंकि रूमेटिक हार्ट डिजीज में वॉल्व सिकुड़ जाता है, अमूमन छह सेमी वाला वाल्व सिकुड़ कर डेढ़ सेमी तक हो जाता है। गर्भावस्था के दौरान शरीर में ब्लड व फ्लूड का वैल्यूम शरीर मे बढ़ जाता है, लिहाजा सिकुडे़ हुए वॉल्व पर दबाव पडऩे लगता है और हार्ट अटैक पड़ सकता है। गर्भावस्था के शुरुआती दिनों में बीमारी पकड़ में आने पर गर्भपात कराने की सलाह दी जाती है अन्यथा गर्भवस्था के तीन माह उपरांत दवाओं से वॉल्व को कंट्रोल रखते हैं। इसके अलावा बैलून प्रत्यारोपित कर वॉल्व को फुलाया जाता है। उन्होंने बताया कि जच्चा व बच्चा की सुरक्षा के लिए गर्भावस्था के दौरान वॉल्व बदलने के लिए ओपेन हार्ट सर्जरी का परहेज किया जाता है।
एरोटिक वॉल्व सिकुडऩे पर गर्भाधान की मनाही
लारी कार्डियोलॉजी के असिस्टेंट प्रो. डॉ.प्रवेश विश्वकर्मा ने बताया कि एरोटा वॉल्व के सिकुडऩे पर गर्भधान करने से मना किया जाता है। क्योंकि इसमें खून को पतला करने वाली दवाएं दी जाती हैं, इन दवाओं से गर्भस्थ में विकलांगता आ जाती है। एरोटा वाल्व सिकुडऩे से ऊपर एरोटा (धमनी)में खून का दबाव बढऩे एरोटिक डाइलेटेशन एफ्यूरिजम (गुब्बारे की तरह फूलना)बन सकता है। इसलिए गर्भवती को त्वचा में शुरूआती तीन माह तक लो डेन्सिटी वारफेरिन की डोज दी जाती है।
रोग की पारिवारिक पृष्ठभूमि वाले लोग करायें एलडीएल की जांच
अधिवेशन के आयोजन सचिव व असिस्टेंट प्रो.शरत चंद्रा ने बताया कि हार्ट रोग की परिवारिक पृष्ठभूमि रखने वाले और असंतुलित भोजन की वजह से कम उम्र में हार्ट अटैक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। अगर फैमिली में हार्ट रोगी रहे हैं तो उन्होंने बताया कि 20 की उम्र के बाद खून में एलडीएल (लो डेन्सिटी लाइपोप्रोट्रीन) की जांच करा लेनी चाहिये, अगर 190 मिलीग्राम प्रति डेसी होने पर धमनियों में कोलेस्ट्रॉल जमने लगता है। कोलेस्ट्रॉल जमने से ही एंजाइना पेन शुरू हो जाता है। क्योंकि 95 प्रतिशत हार्ट रोगियों में रोग का कारण एलडीएल बढऩा होता है। खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा 200 के नीचे होना चाहिये, 250 के ऊपर खतरे की घंटी है। डॉ.चन्द्रा ने बताया कि मीठा व चावल छोड़ देने से बढ़ा हुआ ट्राइग्लिसराइड कम हो जायेगा।