लखनऊ। कभी-कभी एक छोटी सी बात एक बड़े लक्ष्य तक पहुंंचने में बाधक बन जाती है। कुछ ऐसा ही हो रहा है, जारी गाइड लाइन कि गर्भावस्था में प्रत्येक स्त्री की डायबिटीज की जांच जरूरी है। यह बात यहां साइंटिफिक कन्वेंशन सेंटर में डायबिटीज इन प्रेगनेंसी स्टडी ग्रुप ऑफ इंडिया डिप्सी की 12वीं नेशनल कॉन्फ्रेंस में चिकित्सकों से बात करने में सामने आयी। कॉन्फ्रेंस का आयोजन 24 मार्च से 26 मार्च तक किया जा रहा है।
75 ग्राम ग्लूकोज की पैकिंग नहीं आती
चिकित्सकों ने यह माना कि पहली बात यह है कि इस तरह की जांच होनी चाहिये इस बात की जानकारी सरकारी चिकित्सालयों में काम करने वालों को है ही नहीं। इसके साथ ही एक और महत्वपूर्ण बात यह सामने आयी कि जिन चिकित्सकों को यह पता भी है कि इस तरह की जांच होनी चाहिये लेकिन वहां यह प्रॉपर तरीके से हो ही नहीं पाती है। अब आपको बताते हैं इसका कारण। चिकित्सकों बताते हैं कि दरअसल गाइड लाइन के अनुसार चिकित्सक के पास पहुंचने पर 75 ग्राम ग्लूकोज पिलाकर दो घंटे बाद महिला के रक्त में शुगर का लेवल जांचा जाता है। चिकित्सकों के अनुसार इसमें समस्या यह आती है कि बाजार में मिलने वाले ग्लूकोज की पैकिंग 75 ग्राम में आती ही नहीं है, यह साधारणतय: 100 ग्राम की पैकिंग में मिलता है, चूंकि बिजनेस के लिहाज से अगर कभी उस पर ऑफर चलता है तो 10 फीसदी और ज्यादा मिलता है। अब समस्या यह है कि 75 ग्राम की नाप कैसे की जाये। नतीजा यह है कि यह नाप एक अनुमान के नाम पर चलती है। जाहिर है जब अनुमान है तो मात्रा कम या ज्यादा होने की संभावना सौ फीसदी होती है। अब ऐसे में डायबिटीज की रिपोर्ट कितनी सही आती होगी, यह जांच का विषय है। चिकित्सकों ने कहा कि कम से कम इतना तो होना ही चाहिये कि पैकेट में पांच ग्राम नाप वाली चम्मच पड़ी हो जैसा कि कई दूसरी चीजों के पैकेटों में रहती भी है।
100 में से 13 गर्भवती माताओं को होती है डायबिटीज
कॉन्फ्रेंस के दूसरे दिन डॉ समीर गुप्ता ने महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए बताया कि गर्भावस्था में डायबिटीज होने का खतरा 13 फीसदी यानी 100 में से 13 गर्भवती माताओं को होता है, इसका अर्थ यह हुआ कि अगर लापरवाही होती रही तो सौ में 13 बच्चे डायबिटीज के साथ ही अन्य कई प्रकार के रोगों के खतरे में होंगे। इसकी वजह पूछे जाने पर डॉ समीर ने बताया कि डायबिटीज होने का एक बड़ा कारण है तनाव और गर्भावस्था भी एक तरह का तनाव ही है ऐसे में गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज की जांच अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने बताया कि बेहतर यह होगा कि बच्चे के लिए प्लान करने से पूर्व पति-पत्नी किसी चिकित्सक से काउंसलिंग करके पूर्व से ही महत्वपूर्ण जांचें करा लें उसके बाद ही गर्भ धारण करें।
शुरुआत में ही होनी चाहिये जांच
इस बारे में डॉ निरुपम प्रकाश ने बताया कि गर्भवती स्त्री की डायबिटीज की जांच शुरुआत में ही हो जानी चाहिये क्योंकि गर्भस्थ शिशु के महत्वपूर्ण अंग जैसे दिल, गुर्दे, आंख आदि गर्भावस्था के 12 हफ्ते में ही बन जाते हैं तो अगर गर्भवती महिला डायबिटिक है तो शिशु के इन महत्वपूर्ण अंगों पर असर पडऩा स्वाभाविक है।