Saturday , April 20 2024

ग्लूकोमा से बचना है तो आंखों के प्रेशर की जांच करायें

प्रेसवार्ता में शामिल डॉक्टर समर्थ अग्रवाल और डॉक्टर आरती एलेहेन्स के साथ डॉक्टर पीके गुप्ता।

लखनऊ। ग्लूकोमा आंखों का एक ऐसा रोग है जिसमें आंखों से मस्तिष्क से जोडऩे वाली नस सूख जाती है, फलस्वरूप आंखों से देखने का दायरा कम होता जाता है,  इस रोग के शुरुआती लक्षण कोई खास नहीं होते हैं इसलिए इससे बचने का एक ही तरीका है कि समय-समय पर आंखों के प्रेशर की जांच करायें जिससे ग्लूकोमा होने से पूर्व ही पता चल जाये और उससे बच सकें। जिस तरह से हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज की जांच बिना किसी लक्षण के करायी जाती है उसी प्रकार से ग्लूकोमा की भी जांच करानी चाहिये।

क्या है ग्लूकोमा

यह महत्वपूर्ण जानकारी डॉ. सुबोध अग्रवाल मेमोरियल आई हॉस्पिटल के डॉ समर्थ अग्रवाल और डॉ आरती एलेहेन्स ने आईएमए भवन में संयुक्त रूप से एक प्रेस वार्ता में दी। उन्होंने बताया कि ग्लूकोमा को काला मोतिया कहते हैं, तथा यह आंखों की बीमारियों का समूह है जो आंखों की नस को खराब कर देता है। उन्होंने बताया कि इसका मुख्य कारण है आंखों के अंदरूनी दबाव में वृद्धि। एक स्वस्थ आंख से द्रव्य निकलता है, जिसे एक्सुअस हयूमर कहते हैं यह द्रव्य उसी गति से बाहर निकल जाता है। अंदरूनी दबाव में वृद्धि होने पर द्रव्य निकलने वाली प्रणाली में रुकावट आती है और द्रव्य सामान्य गति से बाहर नहीं निकल पाता। यह बढ़ा हुआ दबाव ऑप्टिक नर्व को धकेलता है जिससे धीरे-धीरे नुकसान होने लगता है और नतीजा यह होता है कि दृष्टि कम होने लगती है जो सामान्य तौर पर परिधि या बाह्य दृष्टि से शुरू होती है।

आईएमए में लगा नि:शुल्क नेत्र जांच शिविर

वल्र्ड ग्लूकोमा सप्ताह के अवसर पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की लखनऊ शाखा में आज प्रात: 9 बजे से 12 बजे तक एक नि:शुल्क नेत्र शिविर भी आयोजित किया गया जिसमें डॉ समर्थ अग्रवाल और डॉ आरती एलेहेन्स ने मरीजों की आंखों की जांच करते हुए उन्हें परामर्श दिया। पत्रकारवार्ता में डॉ समर्थ अग्रवाल ने बताया ग्लूकोमा रोग के 10 में से 8 मरीजों में कोई लक्षण नहीं दिखते हैं इसलिए जरूरी है कि 40 वर्ष से ज्यादा की उम्र वाले लोग साल में कम से कम एक बार अपनी आंखों की जांच अवश्य करवायें। उन्होंने यह भी कहा कि यदि किसी व्यक्ति के खून से जुड़े रिश्तों में ग्लूकोमा होने का इतिहास हो तो ऐसे व्यक्ति को ग्लूकोमा होने की आशंका ज्यादा रहती है इसलिए ऐसे लोगों को साल में दो बार आंखों की जांच करानी चाहिये।

सरकार में है सुस्ती

उन्होंने बताया कि भारत में हर वर्ष करीब सवा लाख लोग ग्लूकोमा के शिकार हो जाते हैं। भारत सरकार ने अपनी पंचवर्षीय योजना में ग्लूकोमा की जांच किये जाने को शामिल किया है लेकिन हकीकत यह है कि योजना कागजों में ही दिखायी देती है, सरकारी स्तर पर इसके क्रियान्वयन में ढिलाई है। उन्होंने बताया कि जहां तक इसके इलाज की बात है तो जितनी जल्दी इसका पता चल जाता है तो दवाओं और लेजर विधि से इलाज हो जाता है लेकिन यदि रोग एडवांस स्टेज में पहुंच जाता है तो फिर इसका ठीक होना फिलहाल संभव नहीं है।

इन्हें रहता है ज्यादा खतरा

ग्लूकोमा होने का खतरा किन लोगों को ज्यादा रहता है इस बारे में डॉ समर्थ ने बताया कि जिनके परिवार में किसी को काला मोतिया हो, मधुमेह से पीडि़त हो, लम्बे समय तक स्टरॉयड लिया हो तथा जिनकी आंखों में चोट लगी हो, ऐसे लोगों को ग्लूकोमा होने का खतरा ज्यादा रहता है।

प्री मेच्योर शिशुओं की करायें रेटिनोपैथी जांच

बच्चों में होने वाले ग्लूकोमा रोग के बारे में डॉॅ आरती एलेहेन्स ने बताया कि प्री मेच्योर यानी आठ माह से कम गर्भ में रहने वाले शिशुओं, दो किलो से कम वजन वाले बच्चों, ज्यादा समय तक वेंटीलेटर पर रह चुके शिशुओं को ग्लूकोमा होने का काफी डर रहता है इसलिए यह आवश्यक है कि ऐसे शिशुओं के पैदा होने के 30 दिनों के भीतर रेटिनोपैथी ऑफ प्री नेचुरोपैथी आरओपी करानी चाहिये।

स्टरॉयडयुक्त आई ड्रॉप बड़ा कारण

डॉ आरती ने यह भी कहा कि अक्सर देखा गया है कि बच्चों की आंखों में किसी भी तरह की एलर्जी होने पर लोग चिकित्सक के पास न जाकर सीधे दवा की दुकान से दवाएं खरीद लेते हैं इनमें ज्यादातर वे दवाएं होती हैं जिनमें स्टरॉयड शामिल होता है, इसके अधिक मात्रा में सेवन करने से ग्लूकोमा और मोतियाबिंद होने का डर बना रहता है।
इस मौके पर आईएमए लखनऊ शाखा के अध्यक्ष डॉ पीके गुप्ता ने बताया कि आज का आयोजन आईएमए के वेेलनेस अभियान के तहत किया गया। उन्होंने बताया कि आईएमए भविष्य में भी स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता अभियान को आगे बढ़ाने के लिए तरह-तरह के कार्यक्रम आयोजित करता रहेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Time limit is exhausted. Please reload the CAPTCHA.