केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने जारी की अधिसूचना, 2025 तक सफाए के लिए एक और कदम
वर्षों से एक जटिल समस्या बनी हुई ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) को जड़ से समाप्त करने के लिए केंद्र सरकार ने एक अलग ही कदम उठाया है, इस कदम के तहत अब टीबी के मरीज की जानकारी छुपाना डॉक्टर और अस्पताल प्रबंधन से लेकर दवा दुकानदारों तक को मंहगा पड़ सकता है. दोषी पाए जाने पर जेल जाने की नौबत भी आ सकती है. आपको बता दें कि वर्षों से सरकार द्वारा चलाए जा रहे आभियान के बावजूद छिपे हुए टीबी मरीजों की जानकारी समय-समय पर आती रहती है. छिपे हुए मरीजों की वजह से टीबी उन्मूलन में बाधा उत्पन्न हो रही है. इसी लिए सरकार ने यह कदम उठाया कि प्राइवेट डॉक्टर भी अगर इलाज करें तो उसकी सूचना सरकार तक जरूर पहुंचे, लेकिन इसके बावजूद इस निर्देश का लगातार उल्लंघन हो रहा है, इसीलिए सरकार ने अब इस निर्देश का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ आईपीसी की धाराओं का प्रयोग करते हुए जेल भेजने जैसी सख्त काररवाई का फैसला किया है.
आपको बता दें कि टीबी ऐसा रोग है जिसके इलाज के लिए अवधि निश्चित होती है और अगर इस अवधि के बीच में मरीज इलाज छोड़ देता है तो फिर मरीज उस अवधि में ली गयी दवाओं के प्रति रेसिस्टेंट हो जाता है, और नतीजा यह होता है कि इसके बाद जब दोबारा उसका इलाज शुरू होता है तब पहले दी गयीं दवाएं फायदा नहीं करती हैं. यह रोग संक्रमित होता है और थोड़ी सी लापरवाही के चलते दूसरों को पकड़ लेता है.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अधिसूचना जारी करते हुए कहा है कि अगर डॉक्टरों के द्वारा टीबी मरीज की जानकारी नोडल अधिकारी या स्थानीय स्वास्थ्य कार्यकर्ता के साथ साझा नहीं की जा सकती हो तो संबंधित डॉक्टर, अस्पताल प्रबंधन और दवा दुकानदार पर कार्रवाई होगी. उन्हें आईपीसी की धारा 269 और 270 के तहत छह माह से लेकर दो साल तक की सजा और जुर्माना भुगतना पड़ सकता है.
वर्ष 2012 में ही टीबी को सूचनात्मक रोग घोषित किया गया था. इसके तहत टीबी के मरीज की सूचना नोडल अधिकारी और स्थानीय स्वास्थ्य कार्यकर्ता के साथ साझा करना जरूरी है. हालांकि अभी तक इस मामले में दोषियों के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई या सजा का प्रवाधान नहीं था.
मंत्रालय ने प्रयोगशाला और अस्पताल में प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों को, अस्पताल, क्लिनिक और नर्सिंग होम प्रबंधन को रिपोर्टिंग करने के लिए एक अलग प्रारूप जारी किया है. इसके तहत अब टीबी मरीज की पूरी जानकारी साझा करनी पड़ेगी. नए प्रारूप के तहत अब टीबी मरीज का नाम और पता, उन्हें दी जाने वाली चिकित्सीय सुविधा, नोडल अधिकारी और स्थानीय स्वास्थ्य कार्यकर्ता को दी गई जानकारी की सूचना और जिला स्वास्थ्य अधिकारी या सीएमओ का नाम तक की जानकारी देनी होगी.
आपको बता दें कि दुनियाभर में बीमारियों से मौत के 10 शीर्ष कारणों में टीबी को प्रमुख बताया गया है. एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में प्रतिवर्ष टीबी से मरने वाले मरीजों की संख्यां 4 लाख 80 हजार है. इसके अलावा साल में तकरीबन 10 लाख से अधिक मरीजों की जानकारी सरकार के पास नहीं होती है.
पिछले वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भारत 2025 तक टीबी की बीमारी से मुक्त हो जाएगा. साथ ही उन्होंने कहा था कि दुनिया की तुलना में हमारे यहां टीबी के मरीजों की संख्या बहुत है. टीबी से अगर मुक्ति पानी है तो सही उपचार और पूर्ण उपचार चाहिये. सही उपचार हो और पूरा उपचार हो. बीच में छोड़ दिया तो वो नई मुसीबत पैदा कर देता है. यह ऐसी बीमारी है कि जिसकी जल्द जांच की जा सकती है.
पीएम मोदी ने कहा था कि इस दिशा में बहुत काम हो रहा है. तेरह हजार पांच सौ से अधिक माइक्रोस्कोपी केंद्र हैं. चार लाख से अधिक डॉट प्रदाता हैं. अनेक आधुनिक प्रयोगशालाएं हैं और सारी सेवाएं मुफ्त में हैं. आप एक बार जांच करा लीजिए. ये बीमारी जा सकती है. बस सही उपचार हो और बीमारी नष्ट होने तक उपचार जारी रहे.
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