शीघ्र मांग पूरी न किये जाने पर पूर्ण कार्य बहिष्कार का निर्णय लेने की चेतावनी

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के प्रांतीय चिकित्सा सेवा संघ के चिकित्सकों ने पूर्व घोषित कार्यक्रम के अनुसार आज काला फीता बांधकर काम करते हुए अपनी मांगों को लेकर विरोध जताया, यही नहीं इन चिकित्सकों ने मरीजों की चिकित्सा करते हुए अपनी पीड़ा भी मरीजों सहित अन्य लोगों तक पहुंचायी। चिकित्सकों ने सरकार के असंवेदनाशील रवैये और सेवानिवृत्ति जैसे मौलिक अधिकारों के हनन की पीड़ा मरीजों व उनके तीमारदारों के सामने रखते हुए बताया कि इस अव्यवस्था और दुर्दशा के लिए कौन जिम्मेदार है। किस तरह से चिकित्सक अपमानित और पीड़ित होकर भी अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहे हैं।
यह जानकारी देते हुए पीएमएस संघ के अध्यक्ष डॉ अशोक यादव ने बताया कि राज्य के सभी चिकित्सकों ने काला फीता बांधकर अपना कार्य किया। उन्होंने बताया राज्य की 22 करोड़ जनता की दिन-रात सेवा करने वाले चिकित्सकों को अपमान, प्रताड़ना और गुलामी का शिकार बना दिया गया है। उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में चिकित्सकों को प्रोत्साहन देने के बजाये उनके मौलिक अधिकारों तक का हनन कर दिया गया है। सेवा में योगदान के समय प्रवृत्त, अधिवर्षता आयु पर सेवा निवृत्त होने जैसे मौलिक अधिकारों से राज्य सरकार ने वंचित कर दिया है।

उन्होंने बताया इस रवैये के चलते जहां सेवारत चिकित्सक हताश, निराश और कुंठित हो रहे हैं वहीं नये चिकित्सक प्रांतीय चिकित्सा सेवा में नहीं आ रहे हैं क्योंकि वे डर गये हैं। यही वजह है कि राज्य सरकार की उन्हें सेवा में लाने की सरकार की सारी कोशिशें बेकार साबित हुई हैं।
उन्होंने कहा कि इस तरह की स्थिति से प्रांतीय चिकित्सा सेवा के लुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है जो कि लोक-कल्याणकारी राज्य सरकार के लिए चिंता का बड़ा विषय होना चाहिये। साथ ही ऐसी स्थिति को रोकने की जिम्मेदारी सभी की है। डॉ यादव ने मुख्यमंत्री से मांग की कि तत्काल वह इस मसले में हस्तक्षेप कर चिकित्सकों की जायज मांगों को पूरा करने की अपील की।

पीएमएस संघ के महांत्री डॉ अमित सिंह ने कहा कि गैर तकनीकी आधार पर आधारित नीतियों के कारण पटरी से उतरी चिकित्सा सेवाओं के लिए चिकित्सक और चिकित्सा कर्मियों को जिम्मेदार ठहराकर असली उत्तरदायी लोगों को बचाया जा रहा है, जबकि वास्तविकता यह है कि विभाग में दोहरी-तिहरी अव्यवहारिक व मनमानी व्यवस्थाओं के चलते चिकित्सा सेवायें, अराजकता और दिशाहीनता की तरफ बढ़ रही हैं। उन्होंने कहा कि राज्य में सरकार की घोषित प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक संख्या की अपेक्षा एक चौथाई चिकित्सक और चिकित्सा कर्मी उपलब्ध हैं। दोहरी व्यवस्था जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि स्थिति यह है कि मात्र आठ घंटे काम करने के लिए ढाई लाख रुपये माह तक पर चिकित्सक संविदा पर भर्ती किये जा रहे हैं, इन चिकित्सकों की जिम्मेदारी में न तो पोस्टमॉर्टम और न ही मेडिको लीगल केस शामिल है, जबकि इसके विपरीत नियमित चिकित्सकों को 60 से 70 हजार रुपये प्रतिमाह वेतन देकर दिन-रात मेडिकोलीगल कार्य सहित सभी राष्ट्रीय कार्यक्रमों को चलाने की भी जिम्मेदारी दी जाती है। उन्होंने कहा कि यदि यह दोहरी पॉलिसी जनहित में है तो हम सब सेवारत चिकित्सक कार्यमुक्त होकर इस व्यवस्था के तहत ढाई लाख रुपये माह के वेतन पर कार्य करने को तैयार हैं। डॉ अमित ने कहा कि प्रोन्नति सहित सेवा सम्बन्धी अन्य लम्बित मामलों व सातवें वेतन आयोग के अनुसार नॉन प्रैक्टिस भत्ता अब तक न दिये जाने से चिकित्सकों में गहरा आक्रोश है। उन्होंने कहा कि इस तरह से गुलामों की तरह चिकित्सकों के साथ व्यवहार सहन नहीं किया जायेगा, फिलहाल संघ शांतिपूर्ण तरीके से अपना कार्य करते हुए आंदोलन कर रहा है लेकिन यदि शीघ्र इसका हल सरकार ने नहीं निकाला तो पूर्ण कार्य बहिष्कार का निर्णय लेने के लिए संघ बाध्य होगा।

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